प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- राष्ट्रकूट प्रशासन में राजा के दायित्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्रकूट प्रशासन में राजा का दायित्व
राष्ट्रकूट प्रशासन में राजा का स्थान उसकी जिम्मेदारियों के कारण महत्वपूर्ण समझा जाता था। वह समस्त शासन का केन्द्र बिन्दु था। शासन की समस्त शक्ति उसके हाथ में केन्द्रित थी। उसके अधिकार असीमित थे। वह प्रशासन का कार्य प्रजा की कुशलता को देखते हुए करता था और इस कार्य को अपना उत्तरदायित्व समझता था। शासन-तन्त्र का प्रधान अधिकारी राजा होता था। साम्राज्य के शासन का शीर्षस्थ होने के कारण शासन कार्य का मुख्य उत्तरदायित्व उसी पर केन्द्रित था। राजपद आनुवंशिक होता था। राजा का बड़ा पुत्र ही उसकी मृत्यु के बाद राज्य का उत्तराधिकारी बनाया जाता था। लेकिन ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि कभी-कभी दूसरे योग्य व्यक्ति को भी शासक बना दिया जाता था।
राजा अपने साथ युवराज को रखता था जो राजधानी में रहकर प्रशासनिक अनुभव प्राप्त करता था तथा आवश्यकता पड़ने पर वह अपने पिता के सामरिक एवं प्रशासनिक कार्यों में सहयोग प्रदान करता था। राष्ट्रकूट राजवंश के इतिहास में राजसिंहासन को लेकर अनेक गृहयुद्धों के उदाहरण प्राप्त होते हैं।
राजा अपनी उपलब्धियों एवं वैभव के कारण बड़ी-बड़ी उपाधियों को धारण करने का अधिकारी होता था। राजदरबार तथा केन्द्रीय शासन - तन्त्र के कार्यालयों को राजधानी में ही स्थापित किया जाता था। शासन कार्यों में राजा अपने मन्त्रियों की राय लेता था। शासन संचालन के लिए एक मन्त्रिपरिषद् थी। मन्त्रियों तथा उनके विभागों का स्पष्टतः उल्लेख तो नहीं मिलता लेकिन प्रधानमंत्री विदेश मंत्री राजस्व मंत्री, कोषाध्यक्ष, प्रधान न्यायाधीश, महासेनापति और पुरोहित जैसे अधिकारियों की उपस्थिति की सूचना मिलती है । मन्त्रियों की योग्यता क्या थी या उनका चुनाव कैसे किया जाता था, ज्ञात नहीं है। पर उनकी नियुक्ति अच्छी तरह सोच-विचार कर की जाती थी । मन्त्रियों की चयन प्रक्रिया को देखते हुए यह सिद्ध हो जाता है कि शासन कार्य के प्रति राजा का कितना उत्तरदायित्व था। राजा की संस्तुति, स्वीकृति तथा आदेश लिये बिना कोई भी मन्त्री आदेश पत्र जारी नहीं कर सकता था।
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