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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण प्रथम के जीवन तथा व्यक्तित्व का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-

अशोक के अभिलेख में रठिको का उल्लेख प्राप्त होता है। सातवाहन के नागनिका के नानाघाट अभिलेख में महरठियों का उल्लेख किया गया है। राष्ट्रकूट उन्ही रठिको की सन्तान थे। इनका मूल स्थान लूटमार अर्थात् आधुनिक लाटूर जिला वीदर था। सन् 752 ई. में दंतिदुर्ग ने राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की। इसने हिरणगर्भ ( महादान) यज्ञ किया।

दंतिदुर्ग के पश्चात इनका उत्तराधिकारी तथा इनके चाचा कृष्ण प्रथम (शुभतुंग तथा अकाल वर्ष) ने चालुक्यों से युद्ध करके लगभग 760 ई. में चालुक्य राज्य का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। कृष्ण प्रथम ने बादामी के चालुक्यों को परास्त करने के पश्चात् वैंगी के चालुक्यों तथा मैसूर के गंगों को भी अपनी प्रभुसत्ता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। उन्होंने मैसूर के गंगों को भी अपनी प्रभुसत्ता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। उन्होंने मैसूर के गंगों की राजधानी मान्यपुर पर कुछ समय के लिए अधिकार कर लिया। युवराज गोविन्द को उन्होंने वैंगी के चालुक्यों के विरुद्ध भेजा। सन्- 772 ई. तक प्राचीन हैदराबाद राज्य का क्षेत्र उनके आधिपत्य में आ गया। कृष्ण प्रथम ने किसी रहस्य नामक एक शासक को हराया और दक्षिण कोंकण को जीत लिया। कृष्ण प्रथम ने मध्य प्रदेश के सम्पूर्ण महरठी क्षेत्र को भी अपने अधिकार में कर लिया । कृष्ण प्रथम विजेता होने के साथ-साथ एक निर्माता भी था। इसने एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर जिसे गुहा मन्दिर भी कहा जाता है, का निर्माण करवाया था। किन्तु उसका उत्तराधिकारी गोविन्द द्वितीय एक निर्बल शासक सिद्ध हुआ। इसके पश्चात् गोविन्द का भाई ध्रुव (धारावद्ध) 780 ई. में स्वयं शासक बन गया। पल्लव नरेश दन्ति वर्मन तथा वेंगी नरेश विष्णु वर्धन चतुर्थ ने ध्रुव की शक्ति के सामने नतमस्तक होकर शान्ति समझौता कर लिया। इस प्रकार कृष्ण प्रथम ने जो साम्राज्य स्थापित किया था उसे ध्रुव ने और विस्तृत किया। कृष्ण प्रथम ने शुभतुंग तथा अकाल वर्ष की उपाधियाँ धारण की थी। इस प्रकार वह विजेता तो था ही लेकिन अपने साम्राज्य मे मंदिरों का भी निर्माण करवाया। कृष्ण प्रथम के द्वारा निर्मित एलोरा का कैलाश मंदिर अत्यन्त ही प्रसिद्धि को प्राप्त था। राष्ट्रकूटों के प्रधान शाखा की राजधानी मान्यखेन्द थी।

अनेक अभिलेखों से प्रकट होता है कि कृष्ण प्रथम ने राहप्प को हराकर राजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि राहप्प कौन था? डॉ अल्तैकर के अनुसार यह सम्भवतः मेवाड़ का राजा था क्योंकि मेवाड़ के कुछ राजाओं के साथ 'प्प' जुड़ा है यथा- धवलप्पदेव। कृष्ण प्रथम ने चालुक्य नरेश कीर्तिवर्मन को पूर्णरूपेण हराया। चालुक्य राज्य के ऊपर अधिकार करने के पश्चात् कृष्ण प्रथम ने गँगवडी पर आक्रमण किया। इस समय वहाँ श्री पुरूप नामक राजा का राज्य था। वह गंगवंश का शासक था। कृष्ण प्रथम ने गंगनरेश को हराकर उसकी राजधानी मण्णे पर अधिकार कर लिया था। अब कृष्ण प्रथम वैंगी के चालुक्यों पर आक्रमण करने के लिए अपने पुत्र गोविन्द को भेजा। उस समय वैंगी का चालुक्य नरेश विष्णुवर्धन चतुर्थ था। वह गोविन्द द्वारा पराजित हुआ। इस विजय के परिणामस्वरूप वेंगी राज्य का बहुत बड़ा भाग राष्ट्रकूटों के हाथ में आ गया। खरेपटन ताम्रपत्र से प्रकट होता है कि कृष्ण प्रथम ने कोंकण के ऊपर भी अधिकार कर लिया तथा वहाँ उसने सणुकुल्ल को अपना गर्वनर नियुक्त किया था।

इस प्रकार अपनी विजयों के परिणामस्वरूप कृष्ण प्रथम ने अपने राज्य का विस्तार मेवाड कोंकण और भूतपूर्व हैदराबाद राज्य तक किया था। उसने निश्चित रूप से गंगवड़ी के गंगवंश को और वेंगी के चालुक्य वंश को पराजित किया। कुछ विद्वानों का मत है कि उसने पल्लव वंश को भी पराजित किया था। इस वंश की राजधानी कांची थी। इस अनुमान का आधार तलेगाँव ताम्रपत्र है जिसमें निम्नलिखित वाक्य है कांचीगुणालंकृता विश्वंभरा निजवनितेव सा तेन मुक्ता। विजेता होने के साथ ही साथ वह एक महान निर्माता भी था। राष्ट्रकूट कृष्ण प्रथम ने एलोरा के कैलाश मन्दिर को बनवाया था। एलोरा के कैलाश मन्दिर इस काल की कला का उत्कृष्ट नमूना है। डॉ. अल्तेकर के अनुसार कैलाश मन्दिर का निर्माण सम्भवतः पल्लवों की राजधानी कांची से बुलाए गए कलाकारों के द्वारा किया गया था। इसमें गुहा स्थापत्य का दर्शन होता हैं। गुहा मन्दिर पर्वत की गहराई तक खोदकर बनाए जाते थे। मन्दिर के चारों ओर पत्थर काटे गए है। बीच में पर्वत खण्ड का जो शेष भाग बचा है उसे सजाया गया है। इस प्रकार कृष्ण प्रथम एक महत्वाकांक्षी शासक था तथा उसके साथ वह एक निर्माता भी था। यही राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण प्रथम के जीवन के कृत्य है।

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