प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- इन्द्र तृतीय राष्ट्रकूट राजगद्दी पर कब बैठा? उसकी राजनैतिक गतिविधियों पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
अथवा
राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय की सामरिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
इन्द्र तृतीय की विजयों का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय के विषय में बताइये।
2. इन्द्र तृतीय और परमारों के मध्य हुए युद्ध का वर्णन कीजिए।
3. राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय की सैनिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
4. राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय के उत्तरी अभियान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
5. इन्द्र तृतीय द्वारा वेंगी पर अधिकार किस प्रकार किया गया?
6. इन्द्र तृतीय की उपलब्धियों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय (914-928 ई.)
कृष्ण द्वितीय के पश्चात् उसका पौत्र इन्द्र तृतीय 914 ई. में राष्ट्रकूट राजगद्दी पर बैठा। करहाड तथा देवली से प्राप्त ताम्रपत्रों के अनुसार कृष्ण द्वितीय के पुत्र जगत्तुंग की मृत्यु पहले ही हो गयी थी, अतः जगत्तुंग के पुत्र इन्द्र तृतीय को राष्ट्रकूट राजगद्दी सौंपी गई। उसके नौसारी दानपत्रों से पता चलता है कि 915 ई. में राज्याभिषेक के लिये वह करूंदकतीर्थ भी गया था, परन्तु करूंदकतीर्थ की पहचान के सम्बन्ध में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। नीलकण्ठ शास्त्री इस स्थान को दक्षिणी मराठावाड़ा क्षेत्र में स्थित वर्तमान करुन्दवाड़' मानते हैं जबकि डी. आर. भण्डारकर ने उक्त स्थान का समीकरण ताप्ती नदी के तटवर्ती 'कन्डोदा' नामक स्थान से किया है। इसी प्रकार अल्तेकर ने इसकी पहचान कोल्हापुर जनपद के कुरन्दवाड़ से की है। विद्वानों का मानना है कि राज्याभिषेक के समय उसने 'नित्यवर्ष' की उपाधि धारण की थी।
सामरिक उपलब्धियाँ
परमारों से युद्ध - इन्द्र तृतीय के सम्बन्ध में परमार गुर्जर प्रतिहारों के अधीन शासक थे। परमार वंश के राजा उपेन्द्र ने नासिक जिले के गोवर्धन नामक स्थान पर आक्रमण कर दिया। इन्द्र तृतीय ने उपेन्द्र से लोहा लिया और उसे पराजित करके अपने अधीन बना लिया। डॉ. नीलकान्त शास्त्री का मत है कि इन्द्र तृतीय ने यह कार्य अपने पितामह कृष्ण द्वितीय के युवराज के रूप में किया। परन्तु डॉ. अल्तेकर इस मत से सहमत नहीं हैं। उनका मत है कि इन्द्र तृतीय ने उपेन्द्र को अपने शासन के प्रारम्भिक काल में हराया था। उन्होंने स्पष्ट लिखा है, "ऐसा प्रतीत होता है कि इन्द्र के शासन के प्रारम्भिक दिनों में उपेन्द्र ने गोवर्धन जिले पर आक्रमण किया। इन्द्र ने उसे पराजित कर दिया।'
उत्तरी अभियान - इन्द्र तृतीय ने उत्तरी भारत पर भी आक्रमण किया था। वह अपने पूर्ववर्ती राजाओं की भाँति कन्नौज पर अधिकार करना चाहता था। उस समय कन्नौज उत्तरी भारत का सर्वप्रधान नगर था जहाँ प्रतिहार शासकों का अधिकार था। इन्द्र कन्नौज पर अधिकार करने को लालायित था। महेन्द्रपाल की मृत्यु के बाद कन्नौज की गद्दी के लिये उसके दो पुत्रों भोज द्वितीय तथा महीपाल के बीच संघर्ष छिड़ गया। सर्वप्रथम चेदि नरेश कोक्कल की मदद से भोज ने गद्दी प्राप्त कर ली लेकिन बाद मैं महीपाल ने चन्देल शासक हर्ष की मदद से उसे गद्दी से अपदस्थ कर दिया और स्वयं राजा बन गया। इन्द्र तृतीय ने महीपाल को दण्डित करने के उद्देश्य से 916 ई. में कन्नौज पर आक्रमण कर दिया। ऐसा अनुमान है कि उसकी सेनाएँ संभवतः भोपाल-झांसी कालपी के मार्ग से गईं थीं। कालपी में यमुना नदी पार -करके इन्द्र तृतीय ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया जिसमें प्रतिहार नरेश महीपाल पराजित हुआ। इस प्रकार कन्नौज पर इन्द्र तृतीय का अधिकार स्थापित हो गया।
कन्नौज पर अधिकार करना इन्द्र तृतीय की महानतम सैनिक उपलब्धि थी। अल्तेकर के अनुसार, " दक्कन के इतिहास में यह बड़े महत्व की और अद्वितीय घटना थी क्योंकि ऐसे अवसर कम ही आये हैं जब दक्कन के किसी राजा ने उत्तर भारत की राजधानी पर कब्जा किया हो।' उसकी यह विजय स्थायी न रह सकी और 917 ई. तक महीपाल ने कन्नौज पर पुनः अधिकार कर लिया।
वेंगी पर अधिकार - कृष्ण तृतीय के शासनकाल में वेंगी के चालुक्य शासक भीम ने राष्ट्रकूट सेनाओं को अपने राज्य से बाहर भगा दिया था। इन्द्र तृतीय वहाँ अपना अधिकार करना चाहता था। इस समय तक भीम की मृत्यु हो चुकी थी तथा इसके पश्चात् विजयादित्य उसका उत्तराधिकारी बना। उसके समय में इन्द्र तृतीय ने वेंगी पर आक्रमण किया। वीरजापुर के युद्ध में विजयादित्य मारा गया तथा वेंगी के एक भाग पर राष्ट्रकूटों का आधिपत्य हो गया।
अन्य विजये - जिस समय इन्द्र तृतीय उत्तरी भारत के विजय अभियानों में व्यस्त था उसी समय उसके महासेनानायक श्रीविजय ने राष्ट्रकूट विरोधी अनेक राज्यों को जीत लिया। शक संवत 838 के हत्तिमत्तूर लेख से ज्ञात होता है कि धारवाड़ में इन्द्र तृतीय ने सेनानायक लेड्यरस को वहाँ का महासामान्त नियुक्त किया।
इन्द्र तृतीय ने लगभग 14 वर्ष तक राष्ट्रकूट राज्य पर शासन किया। सम्भवतः 928 ई. के अन्तिम चरण में उसकी मृत्यु हो गई। उसने रट्ठकन्दर्प, नित्यवर्ष राजमार्त्तण्ड्य, महाराजाधिराज, परमेश्वर आदि उपाधियाँ धारण कीं। अपने शासनकाल में उसने एक बार फिर से राष्ट्रकूट राजवंश की प्रतिष्ठा को स्थापित कर दिया था।
मूल्यांकन - इन्द्र तृतीय अपने पितामह की अपेक्षा अधिक योग्य और प्रतिभाशाली शासक था। उसने यद्यपि अल्पकाल तक ही राज्य किया परन्तु उस अल्पकाल में ही उसने राष्ट्रकूट वंश की खोयी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर लिया। यदि वह कुछ वर्ष और जीवित रहता तो राष्ट्रकूट वंश की पताका सर्वत्र फहरने लगती। डॉ. अल्तेकर ने उसके विषय में लिखा है "इस प्रकार इन्द्र तृतीय अत्यन्त वीर, योग्य और दैदीप्यमान सेनापति था. उसके अल्पकालीन शासन में राजकीय प्रतिहारों की प्रतिष्ठा थी और वह राष्ट्रकूटों की सेना को छिन्न-भिन्न करने में सफल हो गया और उत्तर में भी एक खौफ बन गया।
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