लोगों की राय

प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष प्रथम कौन था? उसकी सामरिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।

अथवा
राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष प्रथम की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
अमोघवर्ष प्रथम की विजयों का वर्णन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अमोघवर्ष प्रथम की राजनैतिक विजयों को बताइए।
2. अमोघवर्ष की चालुक्यों पर विजय बताइये।
3. अमोघवर्ष की ऐतिहासिकता का वर्णन कीजिए।
4. राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष प्रथम की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर-

अमोघवर्ष (814878 ई.)

जब गोविन्द तृतीय उत्तरी भारत में वापस लौट रहा था तो उसी समय 808 ई. के लगभग उसके एक पुत्र हुआ जिसका नाम अमोघवर्ष रखा गया। गोविन्द तृतीय की मृत्यु के पश्चात् सन- 816 ई. में अमोघवर्ष सिंहासनारूढ़ हुआ। उस समय उसकी आयु मात्र 6 वर्ष की थी। कुछ इतिहासकार गोविन्द तृतीय के भारत के अभियान की तिथि 810-812 स्वीकार करते हैं। यह कहा जाता है कि अमोघवर्ष का जन्म सन् 803 ई. में हुआ था।

विद्रोह तथा अशान्ति - अमोघवर्ष की अल्पायु के फलस्वरूप राजाओं ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। गंग नरेश ने अपने को स्वतन्त्र कर लिया। वेंगी के लेख से ज्ञात होता है कि कुछ समय के लिए अमोघवर्ष को सिंहासन से अलग कर दिया था। परन्तु यह घटना कब और किन परिस्थितियों में घटी इस विषय में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। बड़ौदा और सूरत लेखों से ज्ञात होता है कि कर्क ने अमोघवर्ष को पुनः सिंहासनारूढ़ किया । नवसारी लेख, जो 815 ई. का है, में विद्रोह का और अमोघवर्ष के सिंहासन से पदच्युत किये जाने का उल्लेख नहीं हुआ है। सन् 821 ई. के सूरत अभिलेख में इस बात का उल्लेख है कि कर्क की वीरता के कारण अमोघवर्ष ने पुनः सिंहासन प्राप्त किया, अतएव यह घटना 816-821 ई. के मध्य घटित हुई होगी।

चालुक्यों पर विजय - अमोघवर्ष के पिता गोविन्द तृतीय ने चालुक्य राजा विक्रमादित्य को हराया था । अमोघवर्ष के सिंहासनारूढ़ होने पर विजयादित्य ने राष्ट्रकूटों से बदला लिया और अमोघवर्ष को पराजित कर दिया। बेगुम्राह लेख में स्पष्ट लिखा है कि राष्ट्रकूट वंश की कीर्ति चालुक्य सागर में डूब गयी थी । परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि सिंहासन को पुनः प्राप्त करने पर अमोघवर्ष ने चालुक्यों को पूर्ण रूप से पराजित कर दिया । साँगली, कईद और सिरपुर लेख अमोघवर्ष की विजय के साक्षी हैं परन्तु अमोघवर्ष ने विजयादित्य द्वितीय को पराजित नहीं किया बल्कि उसने तत्कालीन चालुक्य राजा गुणग विजयादित्य को पराजित किया था। डॉ. अल्तेकर का मत है कि 860 ई. के लगभग अमोघवर्ष ने चालुक्यों को हराया था। उन्होंने लिखा है-

"Thus success of Amoghavarsha against the vengi forces has to be placed sometime about 860 A.D."

गंगों से मित्रता - अमोघवर्ष के शासनकाल के प्रारम्भिक काल में गंगों ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। अमोघवर्ष ने गंगों से युद्ध किया परन्तु सफल न हुआ । अन्त में दोनों की मित्रता हो गई और अमोघवर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह गंग वंश के एक राजकुमार से कर दिया।

गुर्जर प्रतिहारों से युद्ध - उस समय गुर्जर-प्रतिहार वंश में मिहिरभोज नाम का अत्यन्त प्रतिभाशाली सम्राट राज्य कर रहा था। उसने उज्जैन पर अधिकार किया और अपने राज्य की सीमाओं को नर्मदा नदी तक फैला लिया। सम्भवतः उसने राष्ट्रकूटों से भी लोहा लिया। राष्ट्रकूटों के लिए मिहिरभोज बड़ा भारी खतरा बन गया।

पालों से युद्ध - इस समय बंगाल के पाल वंश का शासन था। पाल लेखों से यह जानकारी प्राप्त होती है कि उस समय वहाँ नारायणपाल राज्य कर रहा था। उसने किसी द्रविड़ राजा को हराया था। कुछ लोगों का मत है कि यह द्रविड़ राजा अमोघवर्ष हुआ था। परन्तु आरम्भ में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।

मृत्यु - अमोघवर्ष का शासनकाल दक्षिण भारत के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यद्यपि सैनिक दृष्टि से अमोघवर्ष को एक सफल शासक नहीं कहा जा सकता, परन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से वह अवश्य ही एक वह एक सफल शासक था। डॉ. अल्तेकर सैनिक दृष्टि से उसे एक सफल शासक बताते हैं।

अमोघवर्ष स्वयं तो विद्वान था ही साथ ही वह विद्वानों का आश्रयदाता भी था। उसके दरबार में महावीराचार्या, जिनसेन और शकटायन आदि विद्वान थे। महावीराचार्य ने 'गणितसार संग्रह' और शकटायन ने 'अमोघवृत्ति' नामक ग्रन्थों का सृजन किया। जिनसेन ने 'आदिपुराण की रचना की। संजन लेख में अमोघवर्ष को विक्रमादित्य से भी अधिक ज्ञानी बतलाया गया है। कहा जाता है कि अमोघवर्ष का झुकाव जैन धर्म की ओर था और महावीराचार्य के अनुसार यह स्यादवाद (जैन सिद्धान्त) का अनुयायी था। श्री नालकान्त शास्त्री ने लिखा है, "यह कहा जाता है कि उसने अपने सिंहासन को एक से अधिक बार जैन साधुओं के साथ समय बिताने के लिए छोड़ दिया था।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book