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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय के विषय में बताते हुए उसकी राजनैतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय की राजनैतिक गतिविधियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
राष्ट्रकूट शासक गोविन्द III के विषय में बताइए।
अथवा
गोविन्द तृतीय की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
गोविन्द तृतीय की विजयों का वर्णन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. गोविन्द तृतीय कौन था?
2. राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
3. राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द तृतीय की विजयों का मूल्यांकन कीजिए।
4. गोविन्द तृतीय के उत्तर भारत अभियान का उल्लेख कीजिए।

उत्तर -

राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय (सन् 793-814 ई.)

ध्रुव के चार पुत्र थे - स्तम्भ, कर्क, गोविन्द और इन्द्र। ये चारों ही उसके शासनकाल में किसी न किसी प्रदेश के गवर्नर रहे थे। ध्रुव ने गोविन्द को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया था, सूरत अभिलेख से इसकी जानकारी प्राप्त होती है। इससे स्पष्ट होता है कि ध्रुव ने स्वयं गोविन्द तृतीय को सिंहासनारूढ़ करके संन्यास ले लिया था।

उत्तराधिकारी का युद्ध - गोविन्द को सिंहासनारूढ़ करने के थोड़े ही दिनों के पश्चात् ध्रुव की मृत्यु हो गयी। उसका सबसे बड़ा पुत्र स्तम्भ था जो गंगवाड़ि का गवर्नर था। वह अपने को सिंहासन का उत्तराधिकारी समझता था। इस कारण उसने गोविन्द के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। संजन अभिलेख से ज्ञाल होता है कि शिवमार बड़ा कृतज्ञ था, क्योंकि वह गोविन्द की कृपा से ही ध्रुव के कारागार से मुक्त हुआ था और उसी के विरुद्ध विद्रोह में उसने स्तम्भ का साथ दिया। इस उत्तराधिकार के युद्ध में गोविन्द की विजय हुई और गोविन्द ने अपने भाई स्तम्भ के प्रति दया का भाव प्रदर्शित करके उसे गंगवाड़ि का गवर्नर नियुक्त कर दिया। सन् 802 ई. के मण्णे ताम्रपत्र में इस बात का उल्लेख है कि स्तम्भ ने गोविन्द की आज्ञा से भूमिदान किया था।

गोविन्द तृतीय की उपलब्धियाँ

कांची विजय - उत्तराधिकार के युद्ध में काँची के पल्लव नरेश दन्तिवर्मन ने स्तम्भ का पक्ष लिया था। अतएव गोविन्द तृतीय ने उस पर आक्रमण करके उसे पराजित कर दिया।

चालुक्यों पर राजनीति - राधनपुर और संजन लेखों से यह ज्ञात होता है कि गोविन्द तृतीय ने वेंगी के चालुक्य राजा विजयादित्य पर आक्रमण करके उसे पराजित किया। इस प्रकार दक्षिण भारत से गोविन्द तृतीय पूर्ण रूप से निश्चिन्त हो गया।

उत्तरी भारत की विजय में हस्तक्षेप - ध्रुव ने उत्तरी भारत के गुर्जर प्रतिहारों और पालों को पराजित किया था। ध्रुव के वापस चले जाने के पश्चात् बंगाल के राजा धर्मपाल ने कन्नौज पर आक्रमण करके वहाँ के राजा इन्द्रायुद्ध को पराजित कर दिया और वहाँ चक्रायुद्ध को जो उसके हाथ की कठपुतली था, राजा बनाया। प्रतिहारों की पराजय से बंगाल के पाल राजा धर्मपाल और कन्नौज के राजा चक्रायुद्ध बहुत अधिक भयभीत हो गये और उन्होंने भी गोविन्द के सम्मुख नतमस्तक होना स्वीकार कर लिया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि गोविन्द तृतीय को उत्तरी भारत में बहुत अधिक सफलता मिली। उसने उत्तरी भारत के समस्त राजाओं से 'कर' लिया और दक्षिण की ओर वापस चला गया।

अन्य विजयें - संजन लेख से यह जानकारी प्राप्त होती है कि गोविन्द तृतीय के सेनापतियों ने मध्य भारत के भी समस्त राजाओं को राष्ट्रकूट वंश की अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया था। मालवा के गुर्जरों प्रतिहारों का सामंत शासक राज्य कर रहा था। डिण्डौरी लेख से ज्ञात होता है कि गोविन्द तृतीय ने मालवा राज्य को पराजित करके उसके राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया। भड़ौंच के श्रीभवन राज्य का राजा शर्व भी गोविन्द के सम्मुख नतमस्तक हुआ और उसने उसको अधिक भेंटें दीं।

दक्षिणी राज्यों के संघ का विनाश - संजन लेख से ज्ञात होता है कि जब गोविन्द उत्तरी भारत में था तो दक्षिण के गंगवाड़ि केरल, चोल, पाण्ड्य और कांची राज्यों ने उसके विरुद्ध एक विरोधी संघ का निर्माण किया। गोविन्द इससे अत्यधिक क्रोधित हुआ और उसने इन संघों को अपनी शक्ति से छिन्न-भिन्न कर दिया।

लंका नरेश का नतमस्तक होना - गोविन्द तृतीय की वीरता को देखकर लंका नरेश बहुत अधिक डर गया और उसने उसकी आधीनता को स्वीकार कर लिया।

मृत्यु - गोविन्द तृतीय की मृत्यु 814 ई. के लगभग हुई।

मूल्यांकन - गोविन्द तृतीय राष्ट्रकूट वंश का एक अत्यन्त साहसी राजा था। उसने गंगवाड़ि और मालवा के प्रदेशों को अपने राज्यों में मिलाया और हिमालय से लेकर कुमारी अन्तरीप के मध्य अपने राजाओं को पराजित किया। दक्षिण भारत और उत्तरी भारत के दोनों ही राज्य उसका लोहा मानते थे। वह राष्ट्रकूट वंश का योग्य और प्रतिभाशाली शासक था। बड़ौदा लेख में उसकी तुलना महाभारत के प्रसिद्ध धनुर्धर अर्जुन से की गयी है। गोविन्द तृतीय के शासनकाल में राष्ट्रकूट शक्ति अपने चरम शिखर पर पहुँच गयी थी। डॉ. अल्तेकर के शब्दों में "निःसन्देह गोविन्द तृतीय राष्ट्रकूट शासकों में योग्यतम एवं शक्ति- सम्पन्न, सेनापतित्व, कूटनीतिज्ञता और सैन्य अभियानों में बेजोड़ था।'

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