प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पल्लव साम्राज्य के पतन के विषय में संक्षेप में बताइए।
उत्तर-
पल्लव साम्राज्य का पतन
चोलों की बढ़ती हुई शक्ति के फलस्वरूप नृपतुंग के स्थान पर अपराजित को पल्लव- राजसिंहासन प्राप्त हुआ था। अपराजित पल्लव राजवंश का अन्तिम ज्ञात शासक है जिसने पल्लव इतिहास के अवसान काल में कुछ सैनिक सफलताएँ प्राप्त की परन्तु उसकी ये सफलताएँ क्षणिक रहीं। चोल शासक आदित्य प्रथम अपराजित के शासन-ग्रहण के समय से ही अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था, अतः उसने अपराजित की शक्ति को निरन्तर क्षीण करके अन्ततः उसकी हत्या कर दी। आदित्य प्रथम के नेतृत्व में चोलों ने तोंडमंडलम् पर अधिकार कर लिया।
अपराजित की मृत्यु के तुरन्त बाद नन्दिवर्मन् चतुर्थ (904-926 ई.) तथा कम्पवर्मन् (948-980 ई.) ने पल्लव-सत्ता को स्थायित्व देने का प्रयत्न अवश्य किया परन्तु चोलों की शक्ति के समक्ष वे लगातार पंगु बने रहे। पल्लव शासक कम्पवर्मन् के अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं। इनके प्राप्ति-स्थानों से पता चलता है कि उसने पल्लव-साम्राज्य को शक्तिशाली बनाने का प्रयास अवश्य किया परन्तु सफल न हो सका। अन्ततोगत्वा लगभग 980 ई. में उसकी मृत्यु के बाद पल्लव राज्य चोल शासकों द्वारा जीतकर अपने राज्य में मिला लिया गया। इस प्रकार पल्लव राज्य शक्तिशाली चोल साम्राज्य का अभिन्न अंग बन गया।
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