प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पल्लवकालीन मूर्तिकला पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर-
पल्लवकालीन मूर्तिकला
पल्लवकालीन मूर्तिकला के हमें विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। रेने ग्रोसे जैसे विद्वान इनकी प्रारम्भिक मूर्तियों पर आन्ध्र-मूर्ति शैली का प्रभाव बताते हैं, परन्तु ऐ.के. मजूमदार का मानना है कि पल्लव-मूर्किकला पर आन्ध्र-मूर्ति शैली के साथ-साथ समकालीन गंगा-यमुना घाटी, मालवा तथा दकन की कला शैलियों का भी प्रभाव पड़ा था। किन्तु दूसरे विद्वान न तो प्रारम्भिक पल्लव शैली पर आन्ध्र कला शैली का ही प्रभाव मानने के पक्ष में हैं और न गुप्तकला के प्रभाव को ही। सुविख्यात कलामर्मज्ञ शिवराममूर्ति का विचार है कि प्रारम्भिक पल्लव-कला शैली आदि की दृष्टि से शालंकायन, वाकाटक तथा विष्णुकुण्डिन् कलाओं से निकट से सम्बन्धित थी। जो भी हो, पल्लव-कला वस्तुतः मौलिक रूप में विकसित होकर द्राविड़-वास्तु एवं स्थापत्यकला की सुकुमार प्रस्तुति प्रतीत होती है।
पल्लवकालीन कला-शैली के अन्तर्गत निर्मित मूर्तियाँ अपने कलात्मक कौशल के कारण अधिक प्रसिद्ध हुईं। पेड्डुमुडियम से प्राप्त गणेश, ब्रह्मा, नरसिंह, शिवलिंग, विष्णु, उमामाहेश्वर, देवी, नन्दी, लक्ष्मी आदि मूर्तियाँ प्रारम्भिक पल्लव-कला' के आदर्श उदाहरणों में हैं तथा इनकी शिल्प-शैली का परवर्ती मूर्तिकला पर अच्छा प्रभाव दिखाई देता है। माडुगुल से शिव तथा ब्रह्मा की प्रतिमाएँ मिली हैं। शिव को उनके परिवार के साथ दिखाया गया है। ब्रह्मा द्विभुजी हैं। इससे भी आकर्षक श्वेत संगमरमर से निर्मित पशुधारी शिव की मूर्ति है, जो विजयवाड़ा संग्रहालय में सुरक्षित है।
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