प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पल्लव राज्य काल में कौन-सा विदेशी यात्री आया था तथा उसने अपने यात्रा लेख में किस प्रकार लिखा?
उत्तर-
ह्वेनसांग की यात्रा
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने हर्ष के शासनकाल में भारत की यात्रा की थी। उसने अपनी यात्रा 29 वर्ष की अवस्था में 629 ई. में प्रारम्भ की। यात्रा के दौरान ताशकन्द, समरकन्द होता हुआ ह्वेनसांग 630 ई. में 'चन्द्र की भूमि' भारत के गान्धार प्रदेश पहुँचा। गान्धार पहुँचने के पश्चात् ह्वेनसांग ने कश्मीर, पंजाब, कपिलवस्तु, बनारस, गया एवं कुशीनगर की यात्रा की। कन्नौज के राजा हर्ष के निमन्त्रण पर वह उसके राज्य में लगभग 8 वर्ष (635-643 ई.) तक रहा और इसके पश्चात् 643 ई. में उसने स्वदेश जाने के लिए प्रस्थान किया। काशगर, यारकन्द, खोतान होता हुआ 645 ई. में वह चीन पहुँचा। वह अपने साथ
भारत से लगभग 150 बुद्ध के अवशेषों के कण, सोने, चाँदी एवं चन्दन द्वारा बनी बुद्ध की मूर्तियाँ और 657 पुस्तकों की पाण्डुलिपियों को ले गया था।
ह्वेनसांग की भारत यात्रा का वृत्तान्त हमें चीनी ग्रन्थ 'सी-यू' कीं वाटर्ज की पुस्तक 'On Yuan Chuangs Travels in India' एवं ह्यली की पुस्तक Life of Liven Trang' में मिलता है। ह्वेनसांग के विवरण से तत्कालीन भारत के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं प्रशासकीय पक्ष • पर प्रकाश पड़ता है। ह्वेनसांग ब्राह्मणों का 'सर्वाधिक पवित्र' एवं सम्मानित जाति के रूप में उल्लेख करता है, क्षत्रियों की कर्तव्यपरायणता की प्रशंसा करता हुआ उसे 'राजा की जाति' बताता है और वैश्यों का व्यापारी के रूप में उल्लेख कस्ता है। ह्वेनसांग के विवरण के अनुसार उस समय महामारों, कसाई, जल्लाद, भंगी जैसी जाति नगर की सीमा के बाहर निवास करती थी। नगर में भवनों की दीवारों का निर्माण ईंट एवं टायलों से किया जाता था।
ह्वेनसांग कन्नौज की धर्म सभा का अध्यक्ष था तथा उसने प्रयाग छठे वर्ष महामोक्ष परिषद में भाग लिया था, तत्कालीन भारत में ब्राह्मण धर्म (वैष्णव-शैव) बौद्ध धर्म के साथ-साथ शाक्ल धर्म के प्रचलन का संकेत मिलता है। देवी दुर्गा को शिव की शक्ति मानते हुए बलि की प्रथा का भी प्रचलन था।
ह्वेनसांग ने तत्कालीन भारत को हर क्षेत्र में समृद्धिशाली बताया है। इस समय गाय का माँस खाने परं पूर्णतः प्रतिबन्ध था । ह्वेनसांग ने पाटलिपुत्र के पतन एवं उत्तर भारत के नवींन नगर कन्नौज के उत्थान पर प्रकाश डाला है। उसके अनुसार कन्नौज में लगभग 100 संघराम एवं 200 हिन्दू मन्दिर थे। ह्वेनसांग ने रेशम तथा सूत से निर्मित 'कौशेय' नामक वस्त्र का भी वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त उसने क्षौम, लिनन कम्बल जैसे वस्त्रों का भी वर्णन किया है। ह्वेनसांग के अनुसार इस समय औद्योगिक क्षेत्र में व्यावसायिक श्रेणियों एवं नियमों की पकड़ मजबूत थी, तथा शूद्र लोग खेती का कार्य करते थे। ह्वेनसांग के अनुसार इस समय अन्तर्जातीय विवाह, विधवा विवाह एवं पर्दे की प्रथा का प्रचलन नहीं था जबकि सती- प्रथा का प्रचलन था। शिक्षा पर प्रकाश डालते हुए ह्वेनसांग ने बताया है कि शिक्षा धार्मिक थी, लिपि ब्राह्मी एवं भाषा संस्कृत थी जो विद्वानों की भाषा थी। इस समय शिक्षा ग्रहण करने की आयु 1 से 30 वर्ष तक थी। नालन्दा विश्वविद्यालय में डेढ़ वर्ष तक निवास कर उसने योगशास्त्र का अध्ययन किया था। ह्वेनसांग ने इस विश्वद्यिालय का उल्लेख अन्तर्जातीय विश्वविद्यालय के रूप में किया है जिसे हर्ष ने 200 प्रान्तों का अनुदान किया था।
ह्वेनसांग ने दक्षिण में काँची एवं चालुक्य राज्य की यात्रा भी की थी। पुलकेशिन द्वितीय की शक्ति की उसने प्रशंसा की है। हर्ष के प्रशासन एवं प्रजा कल्याण की भावना का वह प्रशंसक था। ह्वेनसांग ने यहाँ अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की संख्या के कम होने की बात कही है। शारीरिक दण्ड की प्रथा का प्रचलन कम था तथा सामाजिक बहिष्कार एवं दण्ड के रूप में अर्थदण्ड तथा शारीरिक दण्ड भी दिया जाता था। ह्वेनसांग के अनुसार राजा वर्ष में अधिकांश समयों में निरीक्षण तथा यात्रा पर रहता था। यात्रा के समय में राजा अस्थायी निर्माण करवाकर उस आवास में रहता था। सम्राट हर्षवर्धन का सम्पूर्ण दिन भागों में विभाजित रहता था। दिन का प्रथम भाग राजा के कार्यों में तथा शेष दो भाग धर्मार्थ कार्यों में व्यतीत होता था। ह्वेनसांग ने हर्ष की सैन्य व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि उसकी सेना में 50,000 पैदल सैनिक, लगभग 1 लाख घुड़सवार एवं 60 हजार हाथियों की संख्या थी, सेना का महत्वपूर्ण भाग रथ सेना होती थी।
नरसिंहवर्मन प्रथम के राज्यकाल में ह्वेनसांग ने पल्लव राज्य की यात्रा की। उसने इस राज्य का रुचिपूर्ण वर्णन किया, उसके अनुसार कांची परिधि में लगभग 6 मील थी। राज्य में 100 से अधिक बौद्ध विहार थे, उनमें 10,000 से अधिक भिक्षु रहते थे, अस्सी अबौद्ध मन्दिर थे, उनमें से अधिकांश जैनी थे। लोग विद्वानों का आदर करते थे। राजधानी के निकट एक बहुत बड़ा विहार था और वहाँ देश के प्रकाण्ड विद्वानों की भेटें होती थीं। यह सम्भवतः राज-विहार था। पल्लव राज्य की परिधि लगभग 1000 मील थी । भूमि उपजाऊ थी और उस पर उत्तम खेती की जाती थी। पैदावार की अधिकता थी। उसने यह भी लिखा है कि नालन्दा विश्वविद्यालय का धर्मपाल कांची का ही निवासी था।
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