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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पल्लव शासक नन्दिवर्मन् द्वितीय 'पल्लवमल्ल' के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी राजनैतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
'नन्दिवर्मन् द्वितीय पल्लव वंश का शक्तिशाली शासक था? क्या आप इस कथन से सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. नन्दिवर्मन् द्वितीय के विषय में बताइये।
2. पल्लव शासक नन्दिवर्मन् द्वितीय की राजनैतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
3. नन्दिवर्मन् द्वितीय का चालुक्यों के साथ संघर्ष पर टिप्पणी लिखिए।
4. पल्लव नरेश नन्दिवर्मन् द्वितीय की विजयों का उल्लेख कीजिए।
5. नन्दिवर्मन् की सांस्कृतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर- 

नन्दिवर्मन द्वितीय 'पल्लवमल्ल' (730-796 ई.)

730 ई. के लगभग परमेश्वरवर्मन् द्वितीय की आकस्मिक मृत्यु के उपरान्त पल्लव राज्य में 'राजनीतिक एवं प्रशासनिक अस्थिरता उत्पन्न हो गई। परमेश्वरवर्मन् द्वितीय के पुत्र चित्रमाय के अल्प आयु होने के कारण उसे राजसिंहासन के लिये अयोग्य समझा गया। फलतः पल्लव शासन को नियन्त्रित करने के लिए सिंहविष्णु के भाई भीमवर्मन् के वंशज, हिरण्यवर्मन् प्रथम के पुत्र नन्दिवर्मन् द्वितीय पल्लवमल्ल' को 730 ई. में सिंहासन पर अभिषिक्त किया गया।

नन्दिवर्मन द्वितीय तथा परवर्ती पल्लव शासकों के अभिलेखों में उसके राज्याभिषेक की परिस्थितियों एवं उस समय के उच्च पदाधिकारियों द्वारा उसके शासन-कार्य को संभालने की बात का उल्लेख मिलता है।

प्रारम्भिक कठिनाइयों पर सफलता - परमेश्वरवर्मन् के पुत्र चित्रमाय के नाबालिग होने के कारण राज्य के श्रेष्ठ जनों ने हिरण्यवर्मन् प्रथम के पुत्र नन्दिवर्मन द्वितीय को राजगद्दी पर बैठाया। पैतृक अधिकार से वंचित कर दिये जाने के कारण चित्रमाय तथा परिवार के अन्य सदस्यों ने नन्दिवर्मन से विद्रोह प्रारम्भ कर दिया। इस विद्रोह में उसे पाण्ड्य, पश्चिमी गंग तथा चालुक्यों से भी सहायता मिली। पाण्ड्य नरेश राजसिंह ने चित्रमाय की सहायता हेतु नन्दिवर्मन द्वितीय के विरुद्ध अभियान किया। उसने तन्जौर के आस-पास कई युद्धों में पल्लव नरेश को हराया तथा नन्दिपुर के दुर्ग में उसे बन्दी बना लिया। परन्तु नन्दिवर्मन् के सेनापति उदयचन्द्र ने युद्ध में चित्रमाय की हत्या कर दी तथा तंजौर जिले में कई युद्धों में पाण्ड्यों को पराजित किया और अपने स्वामी नन्दिवर्मन द्वितीय को कैद से मुक्त कराया।

चालुक्यों से संघर्ष - चालुक्य लेखों तथा विक्रमादित्य द्वितीय के कैलाशनाथ मन्दिर में उत्कीर्ण एक अभिलेख से नन्दिवर्मन् द्वितीय के चालुक्यों के साथ सम्बन्धों पर प्रकाश पड़ता है कैलाशनाथ मन्दिर के अभिलेख के अनुसार, "विक्रमादित्य द्वितीय ने अपने पुराने शत्रु पल्लवों से बदला लेने के उद्देश्य से तण्डक प्रदेश तक धावा बोलकर नन्दिवर्मन् द्वितीय को युद्धभूमि में पराजित कर उसे राजधानी से भागने के लिए विवश कर दिया ' वास्तव में नरसिंहवर्मन प्रथम द्वारा बादामी को आक्रान्त करने तथा राजधानी में विजयी शासक द्वारा अभिलेख उत्कीर्ण करवाने की बात विक्रमादित्य द्वितीय के हृदय में कांटे के समान चुभ रही थी। इसी कारण उसने कांचीपुरम् के सुविख्यात मन्दिर में अपना लेख उत्कण करवाया था। टी.बी. महालिंगम का विचार है कि कांची से निष्कासित किये जाने के बाद नन्दिवर्मन् द्वितीय ने राष्ट्रकूट शासक दन्तिदुर्ग के यहाँ शरण ली। उसने वहाँ रहते हुए राष्ट्रकूट शासक के साथ उसके सामरिक अभियानों में सहयोग दिया। इसी बीच उसने शबर शासक उदयन्, निषादराज पृथ्वीव्याघ्र तथा सैंधवों के विरुद्ध सफलता प्राप्त की। इससे प्रसन्न होकर राष्ट्रकूट नरेश ने नन्दिवर्मन् द्वितीय को पुनः पल्लव राजसिंहासन पर बैठाया।

राष्ट्रकूटों से संघर्ष - नन्दिवर्मन द्वितीय के शासनकाल की एक अन्य महत्वपूर्ण घटना पल्लव राज्य पर राष्ट्रकूटों का आक्रमण है। कडव-लेख के अनुसार राष्ट्रकूट शासक दन्तिदुर्ग ने अपने साम्राज्य के विस्तार हेतु नन्दिवर्मन् से युद्ध किया जिसमें नन्दिवर्मन् द्वितीय पराजित हुआ और राष्ट्रकूट नरेश का कांची पर अधिकार हो गया। एलोर एवं वेगुम्रा अभिलेखों से भी दन्तिदुर्ग द्वारा कांची पर आक्रमण तथा नन्दिवर्मन् द्वितीय की पराजय का समर्थन मिलता है। परन्तु दन्तिदुर्ग के आक्रमण का उद्देश्य पल्लव नरेश को दण्डित करना या उसके राज्य पर अधिकार करना नहीं, बल्कि अपनी शक्ति प्रदर्शित कर उससे मित्रता स्थापित करना था। अतः दन्तिदुर्ग ने कांची पहुँचकर नन्दिवर्मन् द्वितीय से मैत्री-सम्बन्ध स्थापित किया तथा अपनी पुत्री रेवा का विवाह नन्दिवर्मन् के साथ कर दिया।

गंगों से संघर्ष - तंडनतोट्टम् दानपत्र से ज्ञात होता है कि नन्दिवर्मन् द्वितीय ने गंग राज्य पर आक्रमण कर उसके दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था तथा गंग शासक शिवमार या श्रीपुरुष को पराजित कर उससे बहुत-सा धन तथा बहुमूल्य उग्रोदय मणि वाला हार छीन लिया था। परन्तु गंग लेखों में उल्लेख मिलता है कि श्रीपुरुष ने पल्लवों पर सफलता प्राप्त की थी। इन परस्पर विरोधी दावों के परिप्रेक्ष्य में कुछ विद्वानों की मान्यता है कि शायद दोनों शासकों को बारी-बारी से सफलताएँ मिली होंगी। एस.के. आयंगर तथा नीलकंठ शास्त्री के अनुसार इस सफलता के पश्चात् पल्लव शासक ने श्रीपुरुष के कुछ प्रदेशों को अपने बाण सामन्त जयसिंह वर्मा को दे दिया था।

पाण्ड्यों के विरुद्ध संघ का निर्माण - पाण्ड्य शासक मानवर्मा राजसिंह ने नन्दिवर्मन द्वितीय के विरुद्ध चित्रमाय की सहायता की थी। 765 ई. में राजसिंह की मृत्यु हो गई तथा उसका पुत्र जटिलपरान्तक उत्तराधिकारी हुआ। जटिलपरान्तक से भी नन्दिवर्मन् द्वितीय को उतना ही खतरा था जितना कि उसके पिता से। अतः नन्दिवर्मन द्वितीय ने दक्षिण में जटिलपरान्तक की शक्ति-विस्तार को रोकने के लिए उसके विरुद्ध कोंगु, केरल तथा तगदूर के आदिगैमन शासकों के साथ एक संघ का निर्माण किया। परन्तु नन्दिवर्मन द्वितीय को इसमें कोई विशेष सफलता नहीं मिली और वह पाण्ड्यों की बढ़ती हुई शक्ति को रोक न सका। नन्दिवर्मन द्वितीय ने राष्ट्रकूट शासक गोविन्द द्वितीय के साथ मिलकर गंग शासक श्रीमार को उसके भाई दुग्गमार ऐरयप्प के विरुद्ध राजसिंहासन पर बैठाने में भी सहायता की। नन्दिवर्मन् द्वितीय ने श्रीमार के साथ गोविन्द द्वितीय की भी उसके भाई ध्रुव के विरुद्ध सहायता की थी। लेकिन जब गोविन्द द्वितीय को पराजित कर ध्रुव ने राष्ट्रकूट गद्दी पर अधिकार कर लिया तो उसने नन्दिवर्मन् द्वितीय तथा उसके मित्रों को दण्डित करने की योजना बनायी। उसने नन्दिवर्मनं द्वितीय के विरुद्ध आक्रमण कर उसे आत्मसमर्पण तथा लड़ाकू हाथियों का उपाहर देने के लिये विवश किया तथा श्रीमार को बहुत दिनों तक बन्दी बनाये रखा।

मूल्यांकन - नन्दिवर्मन् द्वितीय ने बहुत लम्बी अवधि तक पल्लव साम्राज्य पर शासन किया। उसके शासनकाल के 65 वें वर्ष का एक अभिलेख महाबलिपुरम् से प्राप्त हुआ है। इस लेख के आधार पर उसका सम्पूर्ण शासनकाल 65वें वर्ष के आस-पास माना जा सकता है। उसका राजनीतिक जीवन उथल- पुथल तथा विरोधियों के प्रतिशोध एवं प्रतिकार में व्यतीत हुआ। विजेता के रूप में मात्र उसने गंगों को ही आक्रान्त किया तथा शेष संघर्षों में उसने अपनी सुरक्षा की दृष्टि से ही युद्ध किये। उसकी सामरिक शक्ति को सुदृढ़ बनाये रखने का पूरा श्रेय महान सेनानायक उदयचन्द्र को दिया जा सकता है, फिर भी इतनी लम्बी अवधि तक पल्लव साम्राज्य को सुरक्षित रखने का श्रेय नन्दिवर्मन् द्वितीय को ही प्राप्त है।

सांस्कृतिक उपलब्धियाँ - नन्दिवर्मन् द्वितीय वैष्णव मतानुयायी था। उसके समय में तिरुमंगै आलवार ने वैष्णव धर्म का अत्यधिक प्रचार-प्रसार किया। नन्दिवर्मन द्वितीय ने कला, साहित्य एवं संस्कृति को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान किया। उसने अपनी देख-रेख में कांची के मुक्तेश्वर मन्दिर तथा बैकुण्ठ-पेरुमाल मन्दिर का निर्माण कराया था। राजधानी कांची के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण केन्द्रों में भी उसके द्वारा अनेक भव्य मन्दिरों का विन्यास किया गया। उसके समय में विद्या एवं साहित्य को प्रयाप्त प्रश्रय मिला। उसके शासन काल के विस्तृत अभिलेख तत्कालीन साहित्यिक अभिरुचि एवं प्रगति के जीवन्त प्रमाण हैं। उदयेन्दिरम् दानपत्र में उल्लेख किया गया है कि उसने अश्वमेध यज्ञ का भी अनुष्ठान किया था, परन्तु इसका अन्य कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है। नन्दिवर्मन द्वितीय ने अपनी उपलब्धियों के, अनुकूल पल्लवमल्ल, क्षत्रियमल्ल, परमेश्वर, राजाधिराज आदि उपाधियों को धारण किया, जिसकी पुष्टि कुशाक्कडि अभिलेख से होती है।

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