प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय की सामरिक उपलब्धियों का विवेचन कीजिए।
अथवा
होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय के विषय में बताते हुए उसकी राजनैतिक विजयों का उल्लेख कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय के विषय में बताइए।
2. होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय की पाण्ड्य शासक कामदेव पर विजय का उल्लेख कीजिए।
3. बल्लाल द्वितीय की मल्लिदेव पर विजय का उल्लेख कीजिए।
4. बल्लाल द्वितीय द्वारा वेलवा पर अधिकार का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
5. होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर-
होयसल नरेश बल्लाल द्वितीय ( 1173-1223 ई.)
नरसिंह प्रथम के बाद उसका पुत्र बल्लाल द्वितीय होयसल राजवंश की गद्दी पर बैठा। वह अपने वंश का एक महत्वाकांक्षी शासक था जिसने अपने वंश के गौरव को बढ़ाया और 'वीर बल्लाल' की उपाधि को ग्रहण किया। होयसलों को आत्म गौरव प्रदान करने के उद्देश्य से उसने अपने को स्वतन्त्र सम्राट घोषित कर दिया। उसने चालुक्यों के अधीन अपने साम्राज्य को दिखावटी मानक से हटाकर स्वतन्त्र होयसल साम्राज्य की स्थापना की। उसने अपनी स्वतन्त्र - सत्ता तथा गौरव की स्थापना के उपलक्ष में अपने शासन के प्रारम्भिक वर्षों में ही बड़ी-बड़ी उपाधियाँ धारण कर लीं।
राजनैतिक उपलब्धियाँ अथवा विजयें
अपने शासन काल के प्रारम्भिक तीन वर्षों में बल्लाल द्वितीय ने राज्य की आन्तरिक अशान्ति को दूर कर अपने प्रशासनिक ढाँचे को सुदृढ़ किया। चौथे वर्ष से उसने अपना सैन्य अभियान प्रारम्भ कर दिया।
पाण्ड्य नरेश कामदेव पर विजय - सर्वप्रथम 1175 ई. में उसने कोलतूर पर आक्रमण किया फिर 1177 ई. में उसने उच्छंगि राज्य पर आक्रमण करके वहाँ के शासक पाण्ड्य कामदेव को उसके दुर्ग में ही बन्दी बना लिया। इस विजय के उपलक्ष में उसने 'गिरिदुर्गमल्ल' की उपाधि धारण की। बाद में पाण्ड्य कामदेव ने बल्लाल द्वितीय के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और उसका सामन्त होना स्वीकार -कर लिया।
चोल शासक मल्लिदेव पर विजय - बल्लाल द्वितीय ने अपने विजयाभियान को आगे बढ़ाते हुए चोल शासक मल्लिदेव पर भी विजय प्राप्त की थी। तत्कालीन होयसल अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने मल्लिदेव चोल शासक द्वारा शासित भू-क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।
कल्चुरियों तथा नोलम्बों से संघर्ष - बल्लाल द्वितीय को कल्चुरियों तथा नोलम्बों से भी संघर्ष करना पड़ा था। होयसल नरेश को ये राज्य भारी पड़ रहे थे क्योंकि चालुक्यों के सामन्त होने के कारण उन्हें उनका समर्थन प्राप्त था। 1179 के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि कल्चुरि शासक संगम ने होयसलों को कई युद्धों में परास्त किया था। विद्वानों का मत है कि वीर बल्लाल ने अपनी पराजयों के परिणामस्वरूप अन्ततः कल्चुरियों से सन्धि कर ली थी। इसी बीच कल्चुरियों का देवगिरि के यादवों तथा काकतीयों से संघर्ष प्रारम्भ हो गया और राजसिंहासन पर अधिकार को लेकर गृहयुद्ध छिड़ गया। परिणामस्वरूप 1184 ई. तक कल्चुरि शक्ति कमजोर हो गई और बल्लाल द्वितीय की शक्ति एक बार पुनः बढ़ गई।
यादव नरेश भिल्लम से संघर्ष तथा वेलवा पर अधिकार - चालुक्य नरेश सोमेश्वर चतुर्थ वीर बल्लाल का प्रबल विरोधी परन्तु एक निर्बल शासक था। उसे देवगिरि के यादवों तथा काकतीयों से पर्याप्त खतरा पैदा हो गया था। अपनी कूटनीति के कारण बल्लाल द्वितीय ने सोमेश्वर चतुर्थ से मैत्री सम्बन्ध बनाये रखा। उधर 1189 ई. में यादव नरेश भिल्लम ने चालुक्य राज्य पर आक्रमण करके कुन्तल से उत्तरी भू-भाग पर अधिकार कर लिया। सोमेश्वर चतुर्थ ने पराजित होकर अपने साम्राज्य के दक्षिणी- पश्चिमी भाग में जाकर शरण ली। यादवों ने सोमश्वर चतुर्थ का पीछा करते हुए एक वर्ष के अन्दर तुंगभद्रा नदी के निकट स्थित हलसिंग एवं वेलबोल को भी हड़प लिया। उचित अवसर पाकर बल्लाल द्वितीय ने भिल्लम तथा यादव सेनाओं के विरुद्ध अभियान चलाकर सोरतुर के मैदान में उसे घेर लिया तथा पराजित भिल्लम को तुंगभद्रा क्षेत्र से भागने के लिए विवश कर दिया। इस प्रकार वेलवा पर होयसलों का अधिकार स्थापित हो गया। 1190 ई. में यादवों ने होयसलों के साथ सन्धि कर ली जिसके फलस्वरूप द्वारसमुद्र पर यादवों ने होयसलों का आधिपत्य मान लिया।
अन्य विजयें - वीर बल्लाल ने कदम्बों, सान्तरों तथा उनके सामन्तों को क्रमशः पराजित कर होयसलनाडु एवं कृष्णा नदी के मध्य सम्पूर्ण भू-क्षेत्र पर अपना शासन स्थापित कर लिया। 1192 ई. तक होयसलों ने क्रमशः वेलबोल, लोक्किगुण्डि तथा इरमबराज के सिन्दों को पराजित कर एक बार पुनः अपनी प्रभुसत्ता को प्रतिष्ठित किया।
उपरोक्त विजयों के फलस्वरूप दक्षिण भारत में वीर बल्लाल की राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ हो गई। उसने अपनी सामरिक शक्ति का आंकलन करते हुए चालुक्यों के पारम्परिक एवं औपचारिक सामन्तत्व को छोड़कर स्वयं को पूर्ण स्वतन्त्र राजा घोषित कर दिया। 1192 ई. में अपने साम्राज्य को पूर्ण स्वतंत्र घोषित करने के उपलक्ष्य में उसने 'समस्त भुवनाश्रय' की उपाधि धारण की। उसकी यह राजनीतिक स्थिति 1192-1200 ई. तक यथावत् स्थापित रही। 1202 ई. से 1204 ई. के मध्य उसे तुंगभद्रा नदी की उत्तरी घाटी में कदम्बों तथा यादवों के उग्र प्रतिशोध को झेलना पड़ा परन्तु बल्लाल द्वितीय ने इनके द्वारा चलाये गये अभियानों को बड़ी वीरतापूर्वक समाप्त कर दिया।
होयसलों की बढ़ती हुई शक्ति से चोल सम्राट अत्यन्त खिन्न हुआ परन्तु दोनों राज्यों में वैवाहिक सम्बन्ध होने पर 1207 ई. के पश्चात् मैत्री सम्बन्ध स्थापित हो गया। ऐसा अनुमान है कि वीर बल्लाल ने चोल राजुकमारी के साथ विवाह करके चोलों से मैत्री सम्बन्ध स्थापित कर लिया था। बाद में अपनी पुत्री सोलमा का विवाह वृद्ध चोल नरेश कुलोत्तुंग से करके अपनी मैत्री को और भी अधिक सुदृढ़ कर लिया।
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