प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- विष्णुवर्द्धन के जीवन-चरित्र एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
चोल चालुक्य साम्राज्य के पतन के बाद द्वार समुद्र के होयसलों ने सबसे अधिक समय तक शासन किया। होयसल प्रारम्भ मे कल्याणी के चालुक्यों के सामन्त थे। इसमें सर्वप्रथम नृपकाम ने 1022 से 1047 ई. तक शासन किया, फिर विनयादित्य इडियंग बल्लाल प्रथम तथा उसके पश्चात विष्णुवर्धन ( 1110 से 1152 ई.) तक शासन किया। विष्णुवर्धन (1170 से 1152 ई.) इस वंश का एक प्रमुख- शासक था जिसने कल्याणी के चालुक्यों के विरूद्ध सबसे पहले विद्रोह किया। होयसल नरेश बल्लाल प्रथम ( 1100 से 1110 ) निःसन्तान था। 1110 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के पश्चात् होयसल वंश की राजगद्दी को सम्भालने वाला तथा उसका उत्तराधिकारी उसका छोटा भाई विष्णुवर्धन होयसल वंश का शासक बना। वह एक महत्वाकांक्षी शासक था जिसने अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु उन्हीं राजाओं के विरूद्व अपना अभियान चलाया। चोलों द्वारा समर्थित सामन्त थे अथवा चालुक्य सत्ता के विरोधी थे। विष्णुवर्धन अपने शासन के प्रारम्भिक 8 वर्षो में अपनी आन्तरिक परिस्थितियों को सुदृढ़ किया। अपनी प्रशासनिक एवं सैनिक शक्ति को सुसंगठित कर लेने के पश्चात वह लगातार युद्धों में ही संलग्न रहा। 1110 ई. से 1128 ई. के मध्य उसके द्वारा चलाए गए सभी विजय अभियान पूर्ण रूप से सफल रहे। परन्तु 1128 ई. के बाद के अभियानों में उसे उतनी सफलता नहीं मिली जितनी कि पूर्व के अभियानों में मिली थी। विष्णुवर्धन इस वंश का एक प्रमुख शासक था। जिसने कल्याणी के चालुक्यों के विरुद्ध सबसे पहले विद्रोह किया। उसने चोलों और चालुक्यों दोनों के विरुद्ध संघर्ष किया। परन्तु चालुक्यों के विरुद्ध वह पूर्ण स्वतन्त्र सत्ता की स्थापना नहीं कर पाया। यद्यपि उसके शासनकाल में साम्राज्य पूर्णतः स्वतन्त्र तो नहीं हो पाया तथापि उसे होयसल साम्राज्य का वास्तविक निर्माता होने का श्रेय दिया जाता है।
विष्णुवर्धन अपने विजय अभियान के प्रथम चरण में नंगली को जीतकर तलकाड राज्य की सीमा तक पहुँच गया। वह तलकाड राज्य को जीतने से पहले अपनी स्थिति सुदृढ़ कर लेना चाहता था अतः तलकाड राज्य पर धावा बोलने से पहले उसने मुरुशुनाड एवं कोलार जनपदों को जीत लिया। इस युद्ध में उसे गंगों तथा नोलोलम्बों से सैनिक सहायता प्राप्त हुई। अपना अभियान आगे बढ़ाते हुए विष्णुवर्धन कोंड जनपद को आक्रान्त कर दिया। इसी बीच नोलम्ब के उलछंगी नरेश ने जिन्हें चालुक्यों का समर्थन प्राप्त था, होयसलों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। परन्तु विष्णुवर्धन ने अपने सैन्य बल से उच्छंगी को जीतकर उसे अपने अधीन कर लिया। इस विजय के परिणामस्वरूप उसने उच्छंगीकोण्ड तथा नोलम्बकोण्ड की उपाधि धारण की। आगे बढ़कर विष्णुवर्धन ने हनुंगला तथा कदम्ब राज्यों पर आक्रमण कर उन्हें भी जीत लिया। इस प्रकार हर तरफ से अपनी स्थिति मजबूत कर लेने के पश्चात् उसने तलकाड़ राज्य पर आक्रमण करना उचित समझ । इस प्रकार विष्णुवर्धन के महादण्डनायक गंगराज ने चालुक्यों द्वारा समर्थित तलकाड राज्य पर आक्रमण करके उसकी राजधानी दुर्ग अपने अधीन कर लिया। तलकाड उसके चोल समर्थित सामन्त ने अपनी राजधानी से भागकर काँची में जाकर शरण ली। विष्णुवर्धन ने तलकाड राज्य पर विजय प्राप्ति के परिणामस्वरूप तलकाडकोण्ड की उपाधि धारण की। विष्णुवर्धन की उपर्युक्त सफलताओं के पश्चात होयसल राज्य की एक विस्तृत एवं सुनिश्चित सीमा निर्धारित हो गयी। इस राज्य के पूर्व में ननगिल्लि पश्चिम में करबनूर उत्तर में साविमालै तथा दक्षिण में कोडगु स्थित थे। विष्णुवर्धन अपना सम्पूर्ण अभियान चोल राज्य अथवा उसके द्वारा समर्थित सामन्तों के विरोध में चलाया। यद्यपि वह निर्णय लेने में पूर्ण स्वतन्त्र था, फिर भी उसने अपने को हमेशा कल्याणी के चालुक्यों का अधीनस्थ ही घोषित किया । विष्णुवर्धन का सुनियोजित शक्ति विस्तार चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठ को उचित न लगा । उसे इस बात का भय था कि होयसल नरेश अपने राज्य के दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में तीव्रगति से बढ़कर शक्तिशाली राज्य की स्थापना करते जा रहे हैं। इस कारण विक्रमादित्य पष्ठ ने विष्णुवर्धन के विरुद्ध 1112 ई. में अपने विश्वासपात्र बारह सामन्तों को विद्रोह के लिए उकसा दिया। इन सामन्तों में गोआ के कदम्ब, हनुगंल, उच्छगी के पाण्डव, हेज्जेरु के चोल सौदन्ति के तथा इरमपरज के सिंध आदि प्रमुख थे। होयसलनाडु की सीमा पर कण्डेगाल के मैदान में विष्णुवर्धन का सामना इन सामन्तों के संयुक्त मोर्चे से हुआ। विष्णुवर्धन के वीर महादण्डनायक गंगराज ने बड़ी वीरतापूर्वक संयुक्त मोर्चे से युद्ध किया और अन्त में सभी को परास्त कर होयसल सेना के यश को और बढ़ा दिया। गंगराज्य के नेतृत्व में होयसलों ने आगे बढ़कर कदम्बों को आक्रान्त कर तैलप को पराजित किया तथा तुंगभद्रा नदी तक अपना सफल अभियान चलाया। इसी क्रम में उन्होंने विद्रोही हेज्जरू के चोल तथा उच्छंगी के पाण्ड्य शासकों को भी हराया। 1132 ई. में उसके योग्य पुत्र बल्लाल की मृत्यु हो गई जिससे वह बहुत दुःखी हुआ। इसी बीच उसकी पटरानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम नरसिंह रखा। विष्णुवर्धन ने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तथा अपनी पटरानी की अध्यक्षता में अपने विश्वासपात्र मन्त्रियों एवं दण्डनायकों को सम्मिलित कर एक प्रशासन समिति का गठन किया। इस प्रकार विष्णुवर्धन अपने वंश का प्रतापी एवं महत्वाकांक्षी शासक था जिसने अपनी आन्तरिक स्थिति को सुदृढ़ किया।
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