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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन के विषय में बताते हुए उसकी राजनैतिक उपलब्धियों / विजयों का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
विष्णुवर्द्धन का परिचय दीजिए। उसकी सामरिक उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. विष्णुवर्द्धन की राजनैतिक विजयों को बताइए।
2. होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन द्वारा तलकाड-राज्य की विजय का उल्लेख कीजिए।
3. विष्णुवर्द्धन ने विक्रमादित्य षष्ठ के सामन्तों के विद्रोह का दमन किस प्रकार किया? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

विष्णुवर्द्धन अथवा बिट्टिग ( 1108-1142 ई.)

होयसल नरेश बल्लाल प्रथम निःसन्तान था। 1108 में उसकी मृत्यु के पश्चात् होयसल - राजगद्दी को सम्भालने वाला तथा उत्तराधिकारी उसका छोटा भाई विष्णुवर्द्धन होयसल वंश का शासक बना। वह एक महत्वाकांक्षी शासक था जिसने अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु उन्हीं राजाओं के विरुद्ध अपना अभियान चलाया जो चोलों द्वारा समर्थित सामन्त थे अथवा चालुक्य सत्ता के विरोधी थे।

राजनैतिक उपलब्धियाँ / विजयें

विष्णुवर्द्धन ने अपने शासन के प्रारम्भिक 8 वर्षों में अपनी आन्तरिक परिस्थितियों को सुदृढ़ किया। अपनी प्रशासनिक और सैनिक शक्ति को सुसंगठित कर लेने के पश्चात् वह लगातार युद्धों में ही संलग्न रहा। 1108 ई. से 1128 ई. के मध्य उसके द्वारा चलाये गये सभी विजय अभियान पूर्ण रूप से सफल रहे। परन्तु 1128 ई. के बाद के अभियानों में उसे उतनी सफलता नहीं मिल सकी जितनी कि पूर्व के अभियानों में मिली थी।

तलकाड राज्य की विजय से पूर्व के आक्रमण - विष्णुवर्द्धन अपने विजय अभियान के प्रथम चरण में नंगली को जीतकर तलकाड राज्य की सीमा तक पहुँच गया। वह तलकाड राज्य को जीतने से पहले हर तरफ से अपनी स्थिति सुदृढ़ कर लेना चाहता था, अतः तलकाड राज्य पर धावा बोलने से पहले उसने मुरुशुनाड एवं कोलार जनपदों को जीत लिया। इस युद्ध में उसे गगों तथा नोलम्बों से सैनिक सहायता प्राप्त हुई। अपना अभियान आगे बढ़ाते हुए विष्णुवर्द्धन ने कोंड जनपद को आक्रान्त कर दिया इसी बीच नोलम्ब के उच्छंगी नरेश ने, जिन्हें चालुक्यों का समर्थन प्राप्त था, होयसलों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। परन्तु विष्णुवर्द्धन ने अपने सैन्य बल से उच्छंगी को जीतकर उसे अपने अधीन कर लिया। इस विजय के फलस्वरूप उसने 'उच्छंगीकोण्ड' तथा 'नोलम्बकोण्ड' की उपाधि धारण की। आगे बढ़कर विष्णुवर्द्धन ने हनुंगल तथा कदम्ब राज्यों पर आक्रमण कर उन्हें भी जीत लिया। इस प्रकार हर तरफ से अपनी स्थिति मजबूत कर लेने के उपरान्त विषणुवर्द्धन ने तलकाड राज्य पर आक्रमण करना उचित समझा।

तलकाड राज्य पर आक्रमण - विष्णुवर्द्धन के महादण्डनायक गंगराज ने चालुक्य समर्थित तलकाड राज्य पर आक्रमण कर उसकी राजधानी दुर्ग को अपने अधीन कर लिया। तलकाण्ड राज्य के चोल समर्थित सामन्त ने अपनी राजधानी से भागकर काँची में जाकर शरण ली। विष्णुवर्द्धन ने तलकाड पर विजय प्राप्ति के उपरान्त 'तलकाडकोण्ड' की उपाधि ग्रहण की।

विष्णुवर्द्धन की उपर्युक्त सफलताओं के पश्चात् होयसल राज्य की एक विस्तृत एवं सुनिश्चित सीमा निर्धारित हो गई। इस राज्य के पूर्व में ननगिल्लि, पश्चिम में बरकनूर, उत्तर में साविमालै तथा दक्षिण में कोङ्ग स्थित थे। विष्णुवर्द्धन ने अपना सम्पूर्ण अभियान चोल राज्य अथवा उसके द्वारा समर्थित सामन्तों के विरोध में चलाया था। यद्यपि वह निर्णय लेने में पूर्ण स्वतन्त्र था, फिर भी उसने अपने को हमेशा कल्याणी के चालुक्यों का अधीनस्थ ही घोषित किया।

विक्रमादित्य षष्ठ के सामन्तों के विद्रोह का दमन - विष्णुवर्द्धन का सुनियोजित शक्ति विस्तार चालुक्य नरेश विक्रमादित्य षष्ठ को उचित न लगा। उसे इस बात का भय था कि होयसल नरेश अपने राज्य के दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में तीव्र गति से बढ़कर शक्तिशाली राज्य की स्थापना करते जा रहे हैं। इस कारण विक्रमादित्य षष्ठ ने विष्णुवर्द्धन के विरुद्ध 1112 ई. में अपने विश्वासपात्र बारह सामन्तों को विद्रोह के लिये उकसा दिया। इन सामन्तों में गोआ के कदम्ब, हनुगंल, उच्छंगी के पाण्ड्य, हेज्जेरु के चोल, सौदन्ति के रट्ठ तथा इरमपरज के सिंध आदि प्रमुख थे। होयसलनाडु की सीमा पर कण्डेगाल के मैदान में विष्णुवर्द्धन का सामना इन सामन्तों के संयुक्त मोर्चे से हुआ। विष्णुवर्द्धन के वीर महादण्डनायक गंगराज ने बड़ी वीरतापूर्वक संयुक्त मोर्चे से युद्ध किया और अन्त में सभी को परास्त कर होयसल सेना के यश को और अधिक बढ़ा दिया।

गंगराज्य के नेतृत्व में होयसलों ने आगे बढ़कर कदम्बों को आक्रान्त कर तैलप को पराजित किया तथा तुंगभद्रा नदी तक अपना सफल अभियान किया। इसी क्रम में उन्होंने विद्रोही हेजेरु के चोल तथा उच्छंगी के पाण्ड्य शासकों को भी पराजित किया।

अन्य राजनैतिक विजयें - होयसलों की लगातार बढ़ती हुई शक्ति को देखकर चालुक्य एवं कदम्बों ने उनके प्रति विद्रोहों को प्रश्रय देना प्रारम्भ कर दिया। इन्होंने होयसलनाडु 'को आक्रान्त करने हेतु हर सम्भव प्रयास किया। परन्तु वे अपनी योजना में सफल न हो सके। 1128 ई. तक विष्णुवर्द्धन अपने विजित क्षेत्रों को बचाए रखने में पूर्ण सफल रहा।

चालुक्य नरेश विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिये अशान्ति एवं अराजकता की स्थिति पैदा हो गई जिसका लाभ कृष्णा नदी के तटवर्ती माण्डलिकों और सामन्तों ने उठाना प्रारम्भ कर दिया। विक्रमादित्य षष्ठ के उत्तराधिकारी सोमेश्वर तृतीय ने कृष्णा नदी के आस-पास अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिये 1129 ई. में सैनिक अभियान चलाया। इसी बीच होयसलों ने अपने राज्य पर सोमेश्वर तृतीय द्वारा किये जाने वाले आक्रमण को भांप लिया और उसके द्वारा समर्थित कदम्ब शासक तैलप तथा सान्तर राजवंशों पर आक्रमण कर दिया। संयोगवश 1130 ई. में कदम्ब शासक तैलप की मृत्यु हो गई। यद्यपि उसके उत्तराधिकारी मयूरशर्मन् ने कदम्बों की बिगड़ती हुई स्थिति को संभालने का प्रयास किया, परन्तु असफल रहा। अन्ततः विष्णुवर्द्धन ने कदम्बों को कृष्णा नदी के तट पर बुरी तरह परास्त कर दिया।

जिस समय विष्णुवर्द्धन कदम्बों तथा चालुक्यों से युद्ध करने में व्यस्त था, उसी बीच लगभग 1132 ई. में उसके योग्य पुत्र बल्लाल की मृत्यु हो गई। युवराज बल्लाल अपने पिता की अनुपस्थिति में बड़ी योग्यतापूर्वक राजकाज संभालता था। उसकी मृत्यु से 65 वर्षीय विष्णुवर्द्धन बड़ा दुःखी हुआ और वह मानसिक रूप से दुर्बल हो गया। अब उसे युद्ध क्षेत्र के साथ-साथ राजधानी पर भी दृष्टि रखना आवश्यक हो गया। इसी बीच उसकी पटरानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम नरसिंह रखा गया। पुत्र-प्राप्ति से प्रसन्न होकर विष्णुवर्द्धन ने राजधानी पहुँचकर उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तथा अपनी पटरानी की अध्यक्षता में अपने विश्वासपात्र मन्त्रियों एवं दण्डनायकों को सम्मिलित कर एक प्रशासन- समिति का गठन किया।

विष्णुवर्द्धन को 1135-36 ई. में लगातार कई स्थानों पर कदम्बों से संघर्ष करना पड़ा। इस बीच एक बार उसे कदम्बों से पराजित होने पर अपनी राजधानी भी छोड़नी पड़ी। इधर बल्लाल की मृत्यु के बाद होयसलों की आन्तरिक स्थिति भी धीरे-धीरे कमजोर हो रही थी। इस कारण विष्णुवर्द्धन को गहरा अघात पहुँचा और विषम परिस्थितियों को झेलते हुए 1142 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

मूल्यांकन - इस प्रकार विष्णुवर्द्धन अपने वंश का एक प्रतापी एवं महत्वाकांक्षी शासक था जिसने अपने चौंतीस वर्षीय लम्बे शासन के प्रारंभिक आठ वर्षों में अपनी आन्तरिक स्थिति को सुदृढ़ करने में लगाया। अपनी प्रशासनिक तथा सैनिक शक्ति को सुसंगठित कर वह लगातार युद्धों में ही संलग्न रहा। वह होयसल वंश का प्रथम शासक था जिसने चालुक्य नरेश सोमेश्वर तृतीय के समय में अपने को स्वतन्त्र शासक के रूप में प्रतिष्ठित किया। प्रारम्भ में विष्णुवर्द्धन जैन मतानुयायी था, परन्तु बाद में रामानुज के प्रभाव से वह वैष्णव हो गया था।

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