प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- यादव नरेश रामचन्द्र के विषय में बताते हुए उसकी राजनैतिक विजयों पर विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. यादव नरेश रामचन्द्र के मालवा के विरुद्ध अभियान पर टिप्पणी लिखिए।
2. देवगिरि के यादवों पर आलाउद्दीन के आक्रमण का वर्णन कीजिए।
3. रामचन्द्र ने होयसलों के विरुद्ध संघर्ष किस प्रकार किया? संक्षेप में बताइए।
उत्तर-
रामचन्द्र (1271-1311 ई.)
रामचन्द्र यादव वंश का अन्तिम स्वतन्त्र शासक था। वह लगभग 1271 ई. में देवगिरि की राजगद्दी पर पर बैठा। अपने शासनकाल में उसे मालवा के राजा और काकतीय नरेश प्रतापरुद्र द्वितीय से युद्ध करना पड़ा।
मालवा के विरुद्ध अभियान - लगभग 1270 ई. में मालवा के सिंहासन पर परमार नरेश अर्जुनवर्मन् के बैठते ही उसके मंत्री ने उसके विरुद्ध रक्तरंजित संघर्ष छेड़ दिया। मालवा नरेश आन्तरिक अशान्ति के साथ-साथ दिल्ली के सुल्तान तथा गुजरात के बघेल शासक से भी बहुत आक्रान्त था। इसी बीच रामचन्द्र ने मालवा पर आक्रमण करके मालवा सेना को बुरी तरह पराजित कर दिया। उसके थाना दानपत्र में उसे 'मालवों के दीपपुंजों को बुझा देने वाला प्रलयवायु' (मालवप्रदीपशमनप्रलयानिलः) कहा गया है।
गुर्जरों के विरुद्ध संघर्ष - रामचन्द्र के थाना दानपत्र में गुर्जरों पर उसकी विजय का उल्लेख मिलता है। गुजरात में तत्कालीन शासक बघेल अर्जुनदेव था। अल्तेकर के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि रामचन्द्र ने जब मालवों के विरुद्ध अभियान किया था तब इसी क्रम में उसने गुजरात के बघेलों के साथ भी संघर्ष किया होगा। परन्तु इन संघर्षों का क्या परिणाम रहा, इसके सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
होयसलों के विरुद्ध अभियान - राचमन्द्र को अपने चाचा महादेव की होयसलों से मिली पराजय का प्रतिशोध लेना था। उसने होयसलों की शक्ति को बुरी तरह से कुचलने की तैयारी आरम्भ कर दी। 1275 ई. में पूर्ण तैयारी के साथ यादव - सेना बनवासी तथा नोलंबवाड़ी से चलकर होयसल के क्षेत्र में घुस गयी । होयसल नरेश नरसिंह ने अपनी राजधानी द्वारसमुद्र को सुरक्षित रखने तथा यादव सेना को भगाने के लिये अपने सुयोग्य सेनापतियों अंकेय एवं भाईदेव को होयसल सेना के साथ विदा किया। परन्तु होयसलों की योजना तथा सामरिक नीति सुदृढ़ यादव सेना के सामने विफल रही। परन्तु होयसल लेखों से ज्ञात होता है कि अन्ततः 1276 ई. के अप्रैल माह में होयसल सेनापति अंकेय ने यादव सेना को हराकर उन्हें अपनी राज्य सीमा से बाहर खदेडने में सफलता प्राप्त की।
उत्तर-पूर्व में स्थित राज्यों के विरुद्ध संघर्ष - रामचन्द्र ने उत्तर-पूर्व भारत के कई छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य को विस्तृत करने का प्रयास किया। इसकी पुष्टि रामचन्द्र के 'पुरषोत्तमपुरि ताम्रपत्र से होती है। अपने इस अभियान में सर्वप्रथम उसने वज्राकर तथा भण्डागर के. शासकों पर आक्रमण किया तथा उन्हें पराजित करके उनके राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया। इसके पश्चात् रामचन्द्र ने त्रिपुरी के कलचुरि राज्य को आक्रान्त कर उसे जीत लिया। अपने सामरिक अभियान के इस क्रम में उसने वाराणसी पर भी आक्रमण किया और वहाँ की मुस्लिम सेना को परास्त कर सम्पूर्ण नगर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
कोंकण तथा माहिम के सामन्तों के विद्रोह का दमन - यादव सेना को उत्तर-पूर्वी भारत के गंगा के मैदानों में संघर्ष, शील देखकर कोंकण तथा माहिम के सामन्तों ने रामचन्द्र के विरुद्ध विद्रोह प्रारम्भ कर दिया। इन सामन्तों के विद्रोह का दमन करने हेतु यादव नरेश ने उनके विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का दायित्व अपने योग्य पुत्र को सौंपा जिसने बलपूर्वक इन सामंतों को कुचल दिया। इस प्रकार 1291 ई. तक रामचन्द्र का साम्राज्य विस्तार दक्षिण में कर्नाटक से लेकर उत्तर में मालवा एवं बनारस तक तथा पश्चिम में पश्चिमी कोंकण से लेकर पूर्व में विदर्भ तक हो चुका था।
देवगिरि पर अलाउद्दीन का आक्रमण - अलाउद्दीन दिल्ली पर एकछत्र शासन करने का अभिलाषी था। 1294 ई. में उसने देवगिरि पर आक्रमण करके अपनी महत्वाकांक्षा के लिये विपुल सम्पत्ति को अपहृत कर लेना आसान समझा और अपनी विशाल सेना के साथ उस पर आक्रमण कर दिया। 'आलाउद्दीन के आक्रमण के फलस्वरूप रामचन्द्र बड़ी सरलता से पराजित हो गया और भाग कर दुर्ग में छिप गया। अन्त में सुरक्षा का कोई रास्ता न पाकर उसने अलाउद्दीन से सन्धि कर ली और अपनी पुत्री का विवाह अलाउद्दीन से कर दिया। अब अलाउद्दीन अपने प्रदेश में वापस लौट आया और रामचन्द्र अलाउद्दीन को निर्धारित वार्षिक कर देता रहा।
1304 ई. में अलाउद्दीन की एक सैनिक टुकड़ी को प्रतापरुद्र ने पराजित कर दिया। रामचन्द्र के पुत्र शंकरदेव ने इसे अलाउद्दीन की कमजोरी मानकर उसे वार्षिक कर देना बन्द कर दिया। परिणामस्वरूप 1307 ई. में अलाउद्दीन ने यादवों को पराजित करने के लिए मलिक काफूर के नेतृत्व में अपनी सेना भेज दी।
इमामी के अनुसार - यादव शासक रामचन्द्र ने सेनापति मलिक काफूर को अपनी मजबूरी को बताते हुए यह गुप्त सूचना भेज दी थी कि उसका पुत्र शंकरदेव उसकी इच्छा के विरुद्ध विद्रोह कर रहा है। इस युद्ध में मलिक कफूर ने यादव सेना को पराजित किया तथा रामचन्द्र को कैद करके दिल्ली ले आया। बाद में अलाउद्दीन ने रामचन्द्र की बात से सन्तुष्ट होकर उसके साथ नम्रतापूर्वक व्यवहार किया तथा उसे मुक्त करके उसका राज्य उसे वापस कर दिया।
रामचन्द्र की मृत्यु के सम्बन्ध में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता परन्तु 1311 ई. में उसकी मृत्यु संभावित मानी जा सकती है।
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