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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- यादव वंश के स्वतन्त्र शासक भिल्लम पंचम के विषय में बताइए। उसकी राजनैतिक उपलब्धियों के विषय में भी चर्चा कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भिल्लम पंचम के विषय में बताइए।
2. यादव नरेश भिल्लम पंचम की उपलब्धियों की चर्चा कीजिए।
3. भिल्लम पंचम की गुजरात एवं मालवा की विजयों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

भिल्लम पंचम (1187-1191 ई.)

देवगिरि के यादव राजवंश को स्वतन्त्र एवं साम्राज्य विस्तारवादी गौरव दिलाने का श्रेय भिल्लम पंचम को दिया जाता है। उसके शासन के प्रारम्भिक काल में दक्षिणापथ की राजनीतिक परिस्थितियाँ बडी तेजी से परिवर्तित हो रही थीं। चालुक्य शासक सोमेश्वर चतुर्थ के साम्राज्य पर एक ओर से कलचुरियों का तथा दूसरी ओर से होयसलों का सामरिक दबाव बढ़ता जा रहा था जिसके फलस्वरूप चालुक्यों की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही थी। इधर आन्तरिक विद्रोह के कारण कलचुरियों की शक्ति का भी पर्याप्त ह्रास हो रहा था। अपने चतुर्दिक व्याप्त अस्थिर राजनीतिक परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए यादव नरेश भिल्लम की साम्राज्य विस्तारवादी की इच्छा प्रबल हो गई तथा उसने अपनी सेना को संगठित करके अपने साम्राज्य को विस्तृत करना आरम्भ कर दिया।

राजनैतिक उपलब्धियाँ / विजयें

महाकवि हेमाद्रि के अनुसार मिल्लम पंचम ने अपनी विजय यात्रा के दौरान सर्वप्रथम कोंकण के अन्तल नामक शासक से श्रीवर्द्धन नामक बन्दरगाह छीन लिया, राजा प्रत्यंडक को युद्ध में हराया, शोलापुर के शासक विल्लण की समरभूमि में हत्या की, तथा कल्याणी के शक्तिशाली दुर्ग को जीत लिया। इसके साथ ही अपना सामरिक दबाव बढ़ाकर उसने तत्कालीन होयसल नरेश को न केवल पराजित किया बल्कि उसका वध भी कर दिया।

गुजरात एवं मालवा की विजय - भिल्लम पंचम अपनी पैतृक भूमि (सेउणदेश, उत्तरी महाराष्ट्र) की प्राप्ति से ही सन्तुष्ट नहीं हुआ क्योंकि वह अपने साम्राज्य का और अधिक विस्तार करना चाहता था। अल्तेकर के अनुसार, उसने सर्वप्रथम गुजरात एवं मालवा की विजय हेतु अभियान प्रारम्भ किया। इस समय उसे दक्षिण की ओर से कोई भय नहीं था क्योंकि उस समय कल्याणी के चालुक्य एवं कलचुरि न केवल : आपस में संघर्ष में लगे हुए थे बल्कि दोनों शक्तिशाली होयसलों के विरुद्ध सामरिक रणनीति बनाने में भी पूर्णतया व्यस्त थे। इन परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए भिल्लम पंचम ने मालवा एवं गुजरात के क्रमशः परमारों और चालुक्यों को पराजित करके उन्हें शक्तिहीन बनाना उपयुक्त समझा क्योंकि इन्हें पराजित करके ही वह दक्षिण के राज्यों के विरुद्ध स्वतन्त्र अभियान चला सकता था। 1189 ई. के मुतुगि अभिलेख में उल्लेख मिलता है कि भिल्लम अपनी सामरिक शक्ति के बल पर 'मालवों के सिर का प्रचण्ड दर्द' तथा 'गर्जुर रूपी हंस के समूह के लिये घन-गर्जन' बन गया था। भिल्लम पंचम ने अपनी विशाल सेना के साथ मालवा एवं गुजरात को पराजित कर दिया तथा मारवाड़ तक के क्षेत्र को उसने आक्रान्त कर दिया।

ऐसा अनुमान है कि नड्डुल (नाडौल) के तत्कालीन चाहमान शासक केल्हण ने यादव सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया होगा। परन्तु इस बात की सूचना का कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है। यद्यपि मुतुगि अभिलेख में उसे अंग, वंग नेपाल और पंचाल के शासकों को पराजित करने का श्रेय प्रदान किया गया है परन्तु यह ऐतिहासिक तथ्य से सर्वथा परे है।

कर्नाटक की विजय - जिस समय भिल्लम पंचम गुजरात और मालवा में युद्धरत था, उस समय कर्नाटक के ऐतिहासिक पटल पर परिवर्तनों का दौर चल रहा था। यहाँ की कल्चुरियों की शक्ति को 1183 ई. में चालुक्य शासक सोमेश्वर चतुर्थ ने लगभग समाप्त कर दिया था। परन्तु वह सामयिक साम्राज्यिक दबाव को झेलने में अधिक समय तक साहस न जुटा पाया। एक तरफ होयसल शासक बल्लाल साम्राज्यिक स्थिति प्राप्त करने का इच्छुक था तो दूसरी ओर भिल्लम पंचम भी अपनी साम्राज्यिक महात्वाकांक्षा की पूर्ति की ओर अग्रसर हो चुका था। इस प्रकार चालुक्य साम्राज्य की सीमा दोनों ओर से आक्रान्त होने की स्थिति में ही थी कि लगभग एक साथ उत्तर से भिल्लम पंचम ने तथा दक्षिण की ओर से होयसल बल्लाल ने चालुक्य साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। सोमेश्वर चतुर्थ ने सर्वप्रथम शक्तिशाली होयसल बल्लाल की सेना का मुकाबला करने का निश्चय किया परन्तु असफल रहा। होयसल सेना ने उसे बुरी तरह पराजित कर दिया। राजधानी कल्याणी पर होयसल बल्लाल ने अपना उत्तराधिकार स्थापित करने में सफलता प्राप्त की या नहीं, प्रमाणों के अभाव में यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।

इधर उत्तर की ओर से सोमेश्वर चतुर्थ के विरुद्ध भिल्लम पंचम ने भी क्रमशः सैन्य अभियान प्रारम्भ कर दिया था। उसने चालुक्यों के प्रमुख दुर्गकेन्द्र लिंगसुबूर, तरडगडिनाड, बेलबोला, किसुकाड़नाड और अन्ततः राजधानी कल्याणी पर अपना अधिकार कर लिया। अण्णिगेरे अभिलेख (1189 ई.) के अनुसार भिल्लम पंचम 'कर्णाट श्रीबल्लभ' अर्थात् कर्नाटक राजलक्ष्मी का प्रिय बन गया था। अब कर्नाटक पर उसका एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो गया था।

होयसल नरेश बल्लाल से संघर्ष - कल्याणी में भिल्लम पंचम की विजय के कारण होयसल नरेश बल्लाल की योजना सफल न हो सकी। उसने अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाकर दक्षिणी चालुक्य राज्य पर आक्रमण कर दिया। इसी काल के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि जून, 1189 ई. तक होयसलों ने बनवासी और नोलंबवाडि पर विजय प्राप्त करके अपना सामरिक अभियान जारी रखा। कल्याणी नगरी पर पुनः अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करने के उद्देश्य से होयसल सेना ने बीजापुर एवं धारवाड़ पर आक्रमण किया। होयसल नरेस बल्लाल की इस योजना को भिल्लम पंचम ने समय रहते ही समझ लिया तथा अपनी विशाल सेना के साथ होयसल नरेश से संघर्ष हेतु प्रस्थान किया। होयसल एवं यादव सेनाओं के बीच यह संघर्ष धारवाड़ के निकट स्थित सोरतुर के मैदान में हुआ।

इस युद्ध में होयसल नरेश बल्लाल को भिल्लम पंचम के विरुद्ध पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। इसके बाद होयसल नरेश ने आगे बढ़कर क्रमशः एरंबर, कुरुगोद, गुत्ति तथा हंगल जैसे यादव शासित दुर्गों को जीतकर भिल्लम की सेना को मालप्रभा तथा कृष्णा नदियों के पार खदेड़ने में सफलता प्राप्त की। इस घटना की ऐतिहासिक पुष्टि 1192 ई. के बल्लाल द्वितीय के गदग अभिलेख से होती है। होयसलों से पराजित होने के पश्चात् वृद्ध भिल्लम बुरी तरह टूट गया और अपनी शिथिल परिस्थितियों से उबरने के पूर्व ही 1191 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

मूल्यांकन - भिल्लम पंचम अपनी स्वतंत्रता स्थापित करने वाला प्रथम महात्वाकांक्षी व्यक्ति था। पैतृक सम्पत्ति से विरत होकर उसने अपनी शक्ति के बल पर दक्षिणी महाराष्ट्र तथा उत्तरी कोंकण में एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की थी। उसकी शक्ति का संगठन महाराष्ट्र, गुजरात एवं मालवा प्रदेशों तक बना हुआ था। वह देश, काल और परिस्थितियों को समझने में निपुण था और यही कारण है कि उसने उचित अवसर पाकर कर्नाटक की राजनीति में पहल प्रारम्भ की तथा क्रमशः चालुक्यों एवं होयसलों को भारी शिकस्त देने में सफल हुआ।

भिल्लम पंचम के राज्य का विस्तार उत्तर में नर्मदा से दक्षिण में कृष्णा घाटी तक हो चुका था। उसने यादव साम्राज्य की स्थापना की तथा देविगिरि को राजधानी नगर होने का गौरव प्रदान किया। उसने परमेश्वर, महाराजाधिराज एवं परमभट्टारक नामक उपाधियाँ धारण की थीं।

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