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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2743
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- मद्यपान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करते हुए उससे सम्बन्धित मनोविक्षिप्तयों का वर्णन कीजिए।

अथवा

मद्यपान से सम्बद्ध महत्वपूर्ण मनोविक्षिप्तियों का वर्णन करें, तथा उसकी कौन-कौन सी मुख्य अवस्थायें होती हैं? व्याख्या करें।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. चिरकालिक अल्कोहल विभ्रमावस्था किसे कहते हैं?
2. अलकोहल स्मृति लोप विकृति क्या है?
3. अल्कोहल वैशिष्ट्य मादकावस्था के लक्षण समझाइए।

उत्तर-

मद्यपानता की अवस्थाएँ - अल्कोहल शारीरिक रूप से एक शमक के रूप में कार्य करता है, इससे व्यक्ति में डर एवं तनाव कम हो जाता है। जेलिनेक (1951, 1971 ) ने 2,000 मद्यसेवियों का अध्ययन किया और चार प्रमुख अवस्थाएँ बतलायीं-

(1) प्राक्-मद्यप लक्षणात्मक अवस्था - इस अवस्था में व्यक्ति पहले पहल सामाजिक प्रचलनों के अनुरूप खास खास मौकों पर मद्यपान करता है। शराब पीने के फलस्वरूप वह अपने तनाव एवं भय को भूल जाता है। इससे पुनर्बलित होकर वह और अधिक पीना प्रारम्भ कर देता है।

(2) प्रारम्भिक अवस्था - यह मद्यपान की यह दूसरी अवस्था है। इस अवस्था में पीने वाले व्यक्ति के व्यवहार में कुछ विसामान्यता के लक्षण दिखलाई देने लगते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति शराब की मात्रा बढ़ा देता है। व्यक्ति में स्मृति- ह्रास सामान्य रूप से देखा जाने लगता है। इस अवस्था में चुराकर तथा छिपाकर शराब पीने की इच्छा तीव्र हो जाती है।

(3) संकटकालीन अवस्था - यह मद्यपान की तीसरी अवस्था है। इस अवस्था में व्यक्ति के मदिरापान पर से नियंत्रण हट जाता है जब वह शराब पीना प्रारम्भ करता है तो वह तब तक . पीते जाता है जब तक कि उसकी चेतना बनी रहती है। वह अपने शराब पीने की आदत को युक्तिसंगत व्याख्या एवं युक्तिपूर्ण दलीलों द्वारा छिपाने की कोशिश करता है। इस अवस्था में शराबी में आक्रामक व्यवहार, अविवेकपूर्ण प्रतिरोध, निरन्तर पश्चाताप आदि देखने को मिलता है।

(4) चिरकालिक अवस्था - मद्यपानता की यह चौथी अवस्था है जिसकी शुरूआत सुबह- सुबह पीने की आदत से होती है। शराबी यह समझता है कि जब तक वह सुबह में पीयेगा नहीं, वह कोई भी काम प्रारम्भ नहीं कर सकता है। इस स्थिति में मानसिक विकृतियों के लक्षण विकसित हो जाते हैं।

मद्यपानता से सम्बन्धित मनोविक्षिप्तियाँ - विभिन्न अध्ययनों एवं शोधों से यह स्पष्ट हुआ कि मद्यपानता से कई ऐसे लक्षण दिखलाई देने लगते हैं जिनमें वास्तविकता से सम्पर्क की कमी, संभ्रान्ति, उत्तेजन आदि प्रधान होते हैं। इन्हें मद्यसारिक मनोविक्षिप्त कहा जाता है।

(1) अल्कोहल वैशिष्ट्य मादकावस्था - इस अवस्था को पहले विकृति मादकावस्था कहा जाता है। इस अवस्था का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें व्यक्ति में अल्कोहल या शराब के सहनशक्ति में काफी गिरावट आ जाती है। फलस्वरूप शराब की थोड़ी मात्रा भी व्यक्ति के व्यवहार को उग्र रूप प्रदान कर देती है। ऐसे व्यक्तियों में आक्रामकता की प्रवृत्ति, मानसिक दुविधा तथा स्मृति क्षीणता या स्मृति लोप आदि के लक्षण प्रबल होते हैं।

(2) अल्कोहल प्रत्याहार उन्माद - इसे पहले कम्पोन्माद भी कहा जाता था। इस तरह की मद्यसारिक मनोविकृति सबसे सामान्य होती है। यह उन मद्यसेवियों में पायी जाती है जो काफी लम्बे अरसे से शराब पीते आ रहे हैं या फिर उन मद्यसेवियों में विकसित होती है जो लम्बी अवधि तक मद्यपान करने के बाद मद्यपान का त्याग कर देते हैं। उन्माद की अवस्था उत्पन्न होने के पहले इनमें अनिद्रा एवं बेचैनी की शिकायत होती है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को हल्की-फुल्की आवाज भी काफी उत्तेजित कर देती है। इन लक्षणों के अलावा व्यक्ति में समय एवं जगह की स्थिति भ्रान्ति, स्पष्ट विभ्रम, तीव्र डर, अत्यधिक सुझाव ग्रहणशीलता हाथ, जीभ एवं होठों में कम्पन, हृदय की गति में वृद्धि, पसीने से तर-बतर होना आदि भी देखे जाते हैं।

(3) चिरकालिक अल्कोहलिक विभ्रमावस्था - इस तरह मद्यसारिक मनोविकृति का प्रधान लक्षण श्रमण सम्बन्धी विभ्रम का होना है। इसमें मद्यसेवी को पहले किसी एक व्यक्ति की आवाज सुनाई देती है। कुछ सप्ताह या महीने बाद उसे एक साथ कई व्यक्तियों की आवाज सुनाई पड़ती है और सभी में उसकी आलोचना एवं शिकायत ही उसे सुनाई देती है। सामान्यतः इस मनोविकृति में मद्यसेवी में एक साथ 7 दिनों तक लगातार तीव्र मात्रा में श्रवण-सम्बन्धी विभ्रम बना रहता है। कभी-कभी इसकी अवधि ज्यादा भी हो सकती है।

(4) अल्कोहल स्मृति लोप विकृति - इस तरह की विकृति को पहले कोरसाकॉफ मनोविक्षिप्त कहा जाता था क्योंकि इस विकृति का सर्वप्रथम उल्लेख रूसी मनश्चिकित्सक कोरसाकॉफ द्वारा 1887 में किया गया था। इस मनोविक्षिप्त का सबसे प्रधान लक्षण स्मृति दोष है। इस विकृति से ग्रसित मद्यसेवी तुरन्त के अनुभवों एवं घटनाओं को बिल्कुल ही भूल जाते हैं जबकि अन्य दूसरे तरह की स्मृतियाँ सामान्य होती हैं। ऐसे व्यक्तियों में विभ्रम तथा समय एवं स्थान की स्थिति भ्रान्ति काफी पायी जाती है।

स्पष्ट हुआ कि मद्यपानता से सम्बन्धित कई तरह की मनोविकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

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