बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- द्विध्रुवीय विकृति के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए तथा द्विध्रुवीय विकृति के उपचार पर एक लेख लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1 द्विध्रुवीय विकृति के क्या कारण हैं?
2. द्विध्रुवीय विकृति के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
3. द्विध्रुवीय विकृति के उपचार पर टिप्पणी लिखिए।
4. द्विध्रुवीय विकृति का उपचार किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर-
(Etiology of Bipolar Disorder)
द्विध्रुवीय विकृति या उन्मादी - विषादी विकृति की व्याख्या निम्नलिखित कारकों की सहायता की जाती है-
1. जननिक कारक - अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि द्विध्रुवीय विकृति का कारण आनुवंशिकता है। इसकी होने की संभावना उन व्यक्तियों में अधिक होती है जिनके परिवार में पहले किसी को यह विकृति हुई हो। अमेरिका मनोरोग विज्ञानी संघ द्वारा किये गये अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि द्विध्रुबीय विकृति वाले व्यक्तियों के नजदीकी सम्बन्धियों में इस रोग की संभावना 4 से 25% तक होती है। जबकि सामान्य व्यक्तियों के नजदीकी सम्बन्धियों में इस रोग की संभावना मात्रा 1% होती है।
2. न्यूरोट्रांसमीटर - अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि विषाद के समान उन्मादी घटनाओं के अनुभव में न्यूरोट्रांसमीटर का हाथ होता है। एक अध्ययन में पाया गया कि नॉरइपाइनक्राइन की मात्रा अधिक होने के कारण व्यक्ति में उन्मादी अनुभव अधिक होता है। इसका स्तर निम्न होने के कारण विषाद का अनुभव होता है। जब द्विध्रुवीय विकृति के रोगियों को रेसरपाइन देते हैं तो इससे नॉरइपाइनक्राइन की आपूर्ति मस्तिष्क में कम हो जाती है तथा रोगी में उन्मादी लक्षण कम हो जाते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि नॉरइपाइनक्राइन का स्तर ऊँचा होने से उन्मादी घटनाओं का अनुभव होता है। उच्च नॉरइपाइनक्राइन की मात्रा तथा उन्मादी अनुभवों के सम्बन्ध का समर्थन लिथियम नामक औषधि के प्रभावों को देखने के लिये किये गये शोधों से भी हुआ है।
3. सोडियम आयन क्रिया - मेलजर का मत है कि उन्माद तथा विषाद का कारण पूरे मस्तिष्क में न्यूरोन्स झिल्लियों में सोडियम आयन्स का दोषपूर्ण संचार है। यदि मस्तिष्कीय सूचनाएँ ठीक ढंग से संचारित होती हैं तो सोडियम आयन न्यूरोन झिल्ली के भीतर तथा बाहर आगे तथा पीछे ठीक ढंग से संचारित होता है। जब इस आयन का संचार ठीक ढंग से होता है तो एक न्यूरोन न तो जरूरत से ज्यादा किसी उद्दीपक से उत्तेजित होगा तथा न ही उसके प्रति प्रतिरोध दिखायेगा।
4. तनाव - अध्ययनों से इस बात की पुष्टि हुयी है कि द्विध्रुवीय विकृति का कारण तनाव भी होता है। एमवेलास ने अध्ययन में स्पष्ट रूप से पाया कि उन्मादी घटनाओं में करीब दो-तिहाई घटनाओं का कारण जीवन में कुछ न कुछ तनाव का ही होना है। यह भी देखा गया है कि तनावपूर्ण घटनाएँ उन व्यक्तियों में उन्माद की अवस्था उत्पन्न कर देती हैं जिनका द्विध्रुवीय विकृति का इतिहास होता है। एक अध्ययन में पाया गया कि द्विध्रुवीय विकृति के उन रोगियों में जिन्हें लीथियम (Lithium) देकर उपचार किया जा रहा था, उस समय उन्मादी अवस्था काफी बढ़ गयी जब रोगियों को एक बड़े आँधी तूफान से हुयी तबाही के परिणामस्वरूप तनाव का सामना करना पड़ा।
विषादी विकृति का उपचार
(Treatment of Bipolar or
Manic Depressive Disorder)
द्विध्रुवीय विकृति का उपचार करने के लिये निम्नलिखित दो प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है-
1. लीथियम चिकित्सा - लीथियम चिकित्सा में चिकित्सक द्विध्रुवीय विकृति के रोगी को उचित मात्रा में लीथियम औषधि लेने की सलाह देता है। लीथियम एक ऐसी औषधि है जो मस्तिष्क के न्यूरोन्स के संधि स्थलीय क्रियाओं में परिवर्तन ला देता है तो संधि स्थल लिखित नॉरइपाइनक्रास तथा सीरातेनीन का स्राव करते हैं। लीथियम द्वारा द्विध्रुवीय विकृति की उन्मादी अवस्था तथा विषादी अवस्था दोनों में ही सुधार होता है।
2. योजना मनश्चिकित्सा - कुछ चिकित्सकों के अनुसार द्विध्रुवीय विकृति की चिकित्सा में सिर्फ लिथियम चिकित्सा बहुत प्रभावकारी नहीं होती है। प्रिन का मत है कि द्विध्रुवीय विकृति का करीब 40 से 60% रोगी लीथियम के प्रति अनुक्रियाशील नहीं होते या उसके सेवन की स्थिति में भी रोग के लक्षणों की पुनर्वापसी हो जाती है। लीथियम का सेवन उचित मात्रा में न करने से इस विकृति के पुनः होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इन समस्याओं के आलोक में बहुत सारे चिकित्सक मनश्चिकित्सा को लीथियम के एक योजक (adjunct) के रूप में उपयोग करने की सलाह दी। इस प्रकार को मनश्चिकित्सा को योजन मनश्चिकित्सा भी कहते हैं।
|