लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान

बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2743
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- विषादी विकृति के उपचार का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जैविक चिकित्सा का उल्लेख कीजिए।
2. अन्तर्वैयक्तिक चिकित्सा का उल्लेख कीजिए।
3. संज्ञानात्मक चिकित्सा का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-

विषादी विकृति का उपचार
(Treatment of Depressive Disorder)

विषादी विकृति जिसे एकध्रुवीय विकृति भी कहते हैं, इसके उपचार के लिये निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है-

(a) जैविक चिकित्सा
(Biotherapy)

एकध्रुवीय विषाद या विषादी विकृति के लिये जैविक चिकित्सा का प्रयोग दो प्रकार से किया जाता है-

1. वैद्युत आक्षेपीय चिकित्सा (Electro-convulsive Therapy or ECT) - ECT की प्रविधियाँ निम्नलिखित दों प्रकार की होती हैं-

(i) द्विपार्श्विक वैद्युत आक्षेपीय चिकित्सा (Bilateral ECT) - द्विपार्श्विक वैद्युत- आक्षेपीय चिकित्सा में अग्रमस्तिष्क के दोनों ओर एक-एक इलेक्ट्रोड लगा देते हैं तथा विद्युतधारा मस्तिष्क के अग्रपाली से होकर गुजरती है। हाल के वर्षों में द्विपार्श्विक वैद्युतीय आक्षेपीय आघात की लोकप्रियता बढ़ी है।

(ii) एक पार्श्विक वैद्युत आक्षेपीचिकित्सा (Unilateral ECT) - इसमें एक ही इलेक्ट्रोड मस्तिष्क पर लगाया जाता है ताकि बिजली की धारा मस्तिष्क के एक ही तरफ से गुज़रे।

2. विषादी विरोधी औषधियों का प्रयोग (Use of Antidepressant Drugs) - आधुनिक युग में विषादी विकृति के उपचार के लिये कई प्रकार की औषधियों का उपयोग किया जा रहा है जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

(i) ट्राईसाइक्लिक्स (Tricyclics),
(ii) मोनोएमाइन ऑक्सीडेस प्रतिरोधक (Monoamaine Oxidase or MAO Inhibitors)|

(b) योग चिकित्सा
(Yoga Therapy)

आधुनिक युग में योग के महत्व को स्वीकार किया जा चुका है। अध्ययनों से इस बात का ठोस प्रमाण मिला है कि योग चिकित्सा द्वारा विषादी विकृति का उपचार संभव है। एक अध्ययन में देखा गया कि 22 रोगियों को योग चिकित्सा देने के बाद उनके विषादी स्तर में कमी आयी।

योग चिकित्सा में आसन, प्राणायाम, मुद्रा, प्रत्याहार, धारणा तथा ध्यान आदि का उपयोग करते हैं। इन रोगियों द्वारा योग की उन जीवन शैलियों का उपयोग किया गया था जो स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती द्वारा तैयार की गई थी।

(c) मनोगतिकीय चिकित्सा
(Psychodynamic Therapy)

मनोगतिकीय चिकित्सा में चिकित्सक यह अनुमान लगाते हैं कि एकध्रुवीय विषाद का. कारण वास्तविक तथा काल्पनिक क्षतियों के अचेतन के दुःख हैं जो दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता दिखलाने से होते हैं। चिकित्सक यहाँ विषादी व्यक्तियों को उनके दुःख का वास्तविक कारण समझाने का प्रयास करते हैं। चिकित्सक रोगी को चिकित्सा के दौरान मुक्त रूप से अपने मन के विचारों को अभिव्यक्त करने की सलाह देते हैं। चिकित्सक क्लाइंट द्वारा चिकित्सा के दौरान दिखलाये गये अन्तरण, प्रतिरोध तथा स्वप्न की व्याख्या करता है। इस चिकित्सा की प्रभावशीलता सीमित है जिसके दो कारण हैं-

1. विषादी रोगी मनोगतिकीय चिकित्सा का त्याग केवल इसलिये कर देते हैं क्योंकि इसकी प्रक्रिया लम्बी होती है तथा रोगी को इससे तात्कालिक लाभ मिलने की कोई संभावना नहीं होती है।

2. विषादी रोगी इतना अधिक निष्क्रिय होता है कि वह चिकित्सा के दौरान थकान महसूस करता है।

(d) व्यवहारात्मक चिकित्सा
(Behavioural Therapy)

इस चिकित्सा में निम्नांकित प्रकारों द्वारा विषादी व्यक्ति का उपचार किया जाता है-

1. अविषादी व्यवहारों को पुनर्बलन देना - इस चिकित्सा में चिकित्सक रोगी के विषादी 'व्यवहार तथा विषादी कथनों पर ध्यान नहीं देता है। इसकी जगह पर वह उसके रचनात्मक व्यवहार तथा कथनों पर ध्यान देता है।

2. सुखद घटनाओं से पुनर्परिचय कराना - चिकित्सक रोगी की दिन भर की क्रियाओं को मॉनीटर करता है और तब 10 ऐसी क्रियाओं का चयन करता है जो उसके लिये काफी सुखद होती हैं।

3. सामाजिक कौशलों को विकसित करने का प्रशिक्षण - विषादी व्यक्ति में दूसरों के साथ संतोषजनक सम्बन्ध विकसित करने के कौशल में कमी होती है। चिकित्सक रोगी को इस प्रकार के सम्बन्ध विकसित करने के लिए प्रशिक्षित करता है। 

(e) अन्तर्वैयक्तिक चिकित्सा
(Interpersonal Therapy)

अन्तर्वैयक्तिक चिकित्सा को अन्तर्वैयक्तिक मनोचिकित्सा भी कहते हैं। इसके अन्तर्गत अन्तर्वैयक्तिक समस्या के निम्नलिखित क्षेत्रों पर बल डालते हैं-

1. अन्तर्वैयक्तिक भूमिका वाद-विवाद - विषादी व्यक्ति प्रायः अपने आप अन्तर्वैयक्तिक भूमिका वाद-विवाद के मध्य खड़ा होता है। इस प्रकार का भूमिका वाद-विवाद तब उत्पन्न होता है जब दो व्यक्ति अपने सम्बन्धों तथा भूमिकाओं के बारे में भिन्न-भिन्न प्रत्याशाएँ विकसित कर लेते हैं।

2. अन्तर्वैयक्तिक भूमिका अन्तरण - विषादी व्यक्ति अन्तर्वैयक्तिक भूमिका अन्तरण का अनुभव करता है। विषादी व्यक्ति को जीवन के महत्वपूर्ण परिवर्तनों जैसे - विवाह-विच्छेद, बच्चे की मृत्यु आदि के साथ समायोजन करने में काफी कठिनाई होती है। इस प्रकार की चिकित्सा के - अंतर्गत चिकित्सक रोगी को भूमिका परिवर्तन के लिए प्रशिक्षित करता है।

(f) संज्ञानात्मक चिकित्सा
(Cognitive Therapy)

बेक ने एकध्रुवीय विषाद के उपचार के लिये संज्ञानात्मक उपाचर विधि को बिकसित किया है जो रोगी को अपने दुष्क्रियात्मक संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को पहचान कर परिवर्तित करने में मदद करती है, जिससे क्लाइंट की मनोदशा तथा व्यवहार दोनों में परिवर्तन हो जाता है। बेक के उपचार विधि की निम्नलिखित चार अवस्थायें हैं-

1. प्रथम अवस्था - क्रियाओं में वृद्धि मनोदशा को उन्नत बनाना।

2. दूसरी अवस्था स्वत - चिन्तनों की जाँच करना तथा उसे गलत साबित करना।

3. तीसरी अवस्था - विकृत चिन्तनों तथा नकारात्मक पूर्वाग्रहों की पहचान करना।

4. चौथी अवस्था - मौलिक मनोवृत्तियों को परिवर्तित करना।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book