लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान

बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2743
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- विषादी विकृति के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. विषादी विकृति के जैविक कारणों का उल्लेख कीजिए।
2. विषादी विकृति के मनोगतिकीय कारणों का उल्लेख कीजिए।
3. विषादी विकृति के व्यवहारात्मक कारणों का उल्लेख कीजिए।
4. विषादी विकृति के संज्ञानात्मक कारणों का उल्लेख कीजिए।
5. विषादी विकृति के कारण पर टिप्पणी लिखिए।
6. विषादी विकृति के जैविक एवं मनोवैज्ञानिक कारणों का उल्लेख कीजिये।

उत्तर -

विषादी विकृति के कारण
(Causes of Depressive Disorder)

विषादी विकृति को एकध्रुवीय विकृति भी कहते हैं। विषादी विकृति चाहे डायस्थामिक हो या बड़ा विषादी विकृति हो उसकी व्याख्या निम्नलिखित कारकों के अन्तर्गत कर सकते हैं-

(a) जैविक कारक
(Biological Factors)

विषादी विकृति के जैविक कारकों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँट सकते हैं-

1. आनुवंशिक कारक (Genetic Factors) - एकध्रुवीय विकृति की उत्पत्ति में निम्नलिखित आनुवंशिक कारकों का योगदान होता है-

(i) पारिवारिक वंशवृक्ष अध्ययनों से पता चलता है कि एकध्रुवीय विषाद की पूर्ववृत्ति में आनुवंशिक कारकों का योगदान होता है। एक अध्ययन में देखा गया कि विषादी व्यक्तियों के निकट सम्बन्धियों में करीब 20% लोगों में विषादी प्रवृत्ति पायी गयी जबकि सामान्य लोगों में यह प्रवृत्ति मात्र 5 से 10% ही पायी गयी।

(ii) अध्ययनों द्वारा इस तथ्य की पुष्टि हो गई है कि एकांकी जुड़वा में किसी एक व्यक्ति को यदि एकध्रुवीय विषाद उत्पन्न होता है तो दूसरे व्यक्ति में भी ऐसे विषाद उत्पन्न होने की संभावना बहुत अधिक रहती है जबकि भ्रातृीय जुड़वां व्यक्तियों में ऐसी संभावना कम रहती है।

2. न्यूरोरसायन कारक (Neurochemical Factors) - विषाद की उत्पत्ति में न्यूरोट्रांसमीटर की अहम् भूमिका होती है। न्यूरोट्रांसमीटर मस्तिष्कीय रसायन होता है जो एक न्यूरोन के मध्य संधिस्थल पर सूचनाओं के संचरण में मदद करता है।

3. न्यूरोएनाटॉमिकल कारक (Neuroanatomical Factors) -  इन कारकों को हम निम्नलिखित दो भागों में बाँट सकते हैं

(i) स्कैबिंग प्रविधियों पर आधारित अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि विषाद का कारण मस्तिष्क के कुछ भागों जैसे अग्रपालि तथा लघु मस्तिष्क के कुछ भागों में रक्त प्रवाह में परिवर्तन या चयापचय की दर में परिवर्तन होता है।

(ii) हारमोनल अध्ययनों से ज्ञात हुआ कि विषाद में अंतःस्रावी ग्रन्थियों की अहम् भूमिका होती है।

(b) मनोगतिकीय कारक
(Psychodynamic Factors)

इन कारकों का वर्णन फ्रायड तथा उनके शिष्य कार्ल एब्राहम ने किया। इन्होंने विषाद को किसी प्रकार की हानि के प्रति एक प्रतिक्रिया कहा है। व्यक्ति को जब किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति की क्षति या हानि होती है तो उससे अचेतन प्रक्रियाएँ प्रारम्भ होती हैं जो व्यक्ति में विषाद को उत्पन्न करती है। इसका प्रारम्भ बाल्यावस्था में ही हो जाता है। मृत्यु या अन्य कारणों से लोगों के अलग होने के कारण प्रियजनों की क्षति के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न हो जाता है जिससे कि व्यक्ति में नकारात्मक मनोदशा, आत्मदोष तथा सामाजिक सम्बन्धों से प्रत्याहार आदि जैसे व्यवहार उत्पन्न हो जाते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि ऐसे लोग और भी अधिक विषादी हो जाते हैं।

(c) व्यवहारात्मक कारक
(Behavioural Factors)

व्यवहारवादियों द्वारा विषाद की एक भिन्न व्याख्या की गयी। लेविन्सोन ने विषाद की एक व्यवहारवादी व्याख्या की। लेविन्सोन का मत है कि कुछ लोग ऐसे हैं जिनके लिये पुरस्कार जो सामान्यतः धनात्मक व्यवहारों को पुनर्बलित करता है, का मूल्य कम होने लगता है और तब ऐसे लोग कम से कम धनात्मक व्यवहार करते हैं तथा उनके कार्यों की शैली विषादी हो जाती है। पुनर्बलन की कमी से व्यक्ति के क्रिया स्तर में कमी आ जाती है तथा पुनर्बलन की कमी से व्यक्ति के धनात्मक व्यवहार में और कमी आ जाती है, जिससे व्यक्ति में विषादी प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है।

(d) संज्ञानात्मक कारक
(Cognitive Factors)

संज्ञानात्मक कारक सबसे प्रमुख मनोवैज्ञानिक कारक है जिसका सार यह है कि न केवल संज्ञान बल्कि व्यक्ति का व्यवहार तथा जैव रसायन भी विषाद का महत्वपूर्ण तत्व है। संज्ञानात्मक कारकों को समझने के लिये निम्नलिखित दो सिद्धान्तों का अध्ययन आवश्यक है-

1. बेक का सिद्धान्त ( Beck's Theory) - बेक के अनुसार एकध्रुवीय विषाद का कारण नकारात्मक चिन्तन है। बेक का मत है कि विषादी लोग अपने बारे में तथा अपनी परिस्थितियों एवं भविष्य के बारे में नकारात्मक चिन्तन करते हैं। उनका व्यवहार इस प्रकार के चिन्तन द्वारा प्रभावित हो जाता है।

2. निस्सहायता का सिद्धान्त (Helplessness Theory) - सेलिगमैन ने किया। सेलिगमैन के अनुसार निस्सहायता का भाव उस समय विकसित होता है जब उसे अनियंत्रण योग्य विरुचिपूर्ण उत्तेजना का सामना करना पड़ता है। वास्तव में सेलिगमैन ने मानव विषाद की व्याख्या करने के लिए व्यवहारात्मक एवं संज्ञानात्मक दोनों प्रकार के कारकों पर बल डाला।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book