बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- उदाहरण सहित स्मृति लोप के लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
स्मृति लोप एक सामान्य शब्द है जो कुछ लक्षणों जैसे स्मृति, संवाद और सोचने की शक्ति में कमी को बताता है। डिमेंशिया मस्तिष्क के कम से कम दो कार्यों में समस्या बताता है जैसे स्मृति लोप और गलत निर्णय अथवा भाषा का प्रयोग और कुछ प्रतिदिन की जाने वाली गतिविधियों में असमर्थता जैसे बिल भरना, या गाड़ी चलाना । स्मृति लोप कई प्रकार का होता है जैसे कॉर्टीकल, सबकॉर्टीकल, प्रगतिशील ( प्रोग्रेसिव), प्राथमिक (प्राइमरी) और द्वितीयक (सेकेंडरी)।
स्मृति लोप के लक्षण स्मृति लोप के लक्षण निम्न हैं-
1. स्मृति लोप - स्मृति लोप या याददाश्त की समस्या डिमेशिया का एक लक्षण जरूर है, पर इसको ऐसी स्थिति से नहीं कन्फ्यूज करें जैसे कि जब किसी एक्सीडेंट या किसी सदमें की वजह से कई व्यक्ति पुरानी बातें भूल जाते हैं, कुछ फिल्मों में हमने ऐसे स्मृति लोप का चित्रण देखा हो, जैसे कि श्रीदेवी की पुरानी फिल्म सदमा और आमिर खान की फिल्म गजनी|
2. संवाद में कमी - स्मृति लोप से पीड़ित व्यक्ति बात करने में अटक जाता है उसके संवाद में एकरूपता की कमी आ जाती है। व्यक्ति को भाषा व्यक्त करने की योग्यता में कमी आ जाती है।
3. व्यक्तित्व में परिवर्तन - स्मृति लोप रोगियों का व्यक्तित्व बड़ा ही असन्तुलित होता है जिसके कारण उनके कार्य तथा व्यवहार अव्यवस्थित तथा अनुपयुक्त होते हैं। एक ही उद्यीपक के प्रति विरोधाभासी प्रतिक्रियायें उसके व्यवहार व कार्यों में पाई जाती हैं।
4. अति संवेदनशीलता - ऐसे रोगियों में अति संवेदनशीलता होती हैं। अति- संवेदनशीलता के कारण ये छोटी-छोटी घटनाओं तथा बातों को भी बडी गम्भीरता से लेते हैं जैसे- सामान्य सी घटना को भी बड़ी गम्भीरता से लेते हैं।
5. अहम् केन्द्रिता - इस प्रकार के रोगी अत्यन्त ही आत्मकेन्द्रित होते हैं। फलतः वह अपने ही विषय में सोचता रहता है या अपनी ही चिन्ताओं में खोया रहता है।
6. तनाव तथा संघर्ष - इस रोग से ग्रसित व्यक्ति अपनी भयावह चिन्ताओं के कारण 'मानसिक तनावों से घिरा रहता है। वह तनाव के कारण मानसिक संघर्षों का भी शिकार होता है। इन व्यक्तियों के तनाव तथा संघर्ष व्यर्थ के ही होते हैं क्योंकि इनकी भयावह चिन्तायें ही व्यर्थ की होती हैं।
7. भय (Fear) – इस प्रकार के रोगियों में भय की प्रवृत्ति प्रायः काफी तीव्र पाई जाती है। उनके मन में कोई न कोई ऐसा भय बैठा होता है जो उनके व्यवहारों में असमान्यता ला देता है। उनके भय न केवल व्यर्थ के होते हैं अपितु वे उसके लिए चिन्ता का विषय भी बनते हैं। ये रोगी जिस प्रकार के भयों से पीड़ित रहते हैं उनमें किसी से टकरा जाने का भय, पागल हो जाने का भय आदि जैसे प्रमुख रोग हैं।
8. सामाजिक सम्बन्धों का अभाव - ये लोग मुख्य रूप से अहम् केन्द्रित होते हैं इसलिए अपने तक ही इनका जीवन सीमित होता है। परिणामस्वरूप इनमें सामाजिकता का अभाव होता है, वे दूसरे व्यक्ति के साथ न तो अच्छे सम्बन्ध ही रख पाते हैं और न उनके अधिक मित्र ही होते हैं। ये रोगी या तो दूसरों पर पूर्ण निर्भर रहते हैं या फिर पूर्ण स्वतन्त्र रहकर कार्य करते है। दोनों ही अवस्थायें उनके सामाजिक सम्बन्धों पर कुप्रभाव डालती हैं।
9. शारीरिक थकान - इस रोग से पीड़ित व्यक्ति शारीरिक थकान, झूठ, शारीरिक रोग जैसे सिर दर्द, पेट दर्द, हाथ या पैर के दर्द, मानसिक वेदना, बेचैनी, जैसी शारीरिक च मानसिक परेशानियों से ग्रस्त रहता है। नींद न आना, बदहजमी, हृदय की तीव्र धड़कन, खूब पसीना आना इत्यादि।
स्मृति लोप की अवस्था में रोगी को भूल जाने का रोग होता है। इस रोग के परिणामस्वरूप वह अपना नाम, पता, घर के सदस्यों के साथ सम्बन्ध, निवास स्थान शहर की गली-कूचे आदि कुछ भी विस्मरण कर सकता है। मानसिक चोट के कारण भी स्मृति लोप एवं शारीरिक चोट (विशेषतौर से सिर में चोट) के कारण स्मृति लोप में अन्तर है। सिर में चोट लगने से जो स्मृति लोप हुआ होता है वह स्थायी होता है किन्तु मानसिक रोग के कारण हुआ स्मृति लोप उपचार के बाद ठीक हो जाता है। उपचार के बाद रोगी को पुरानी बातें याद आ जाती हैं। स्मृति लोप की अवस्था में रोगी की स्मरण शक्ति तथा स्मरण - अनुभवों का ह्यस नहीं होता अपितु वे स्मरण - अनुभव व्यक्ति के अचेतन मन में चले जाते हैं।
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