बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- देहरूपी विकार से आप क्या समझते हैं? दैहिकीकरण विकार किस प्रकार रोगभ्रमी विकार से भिन्न है?
उत्तर-
(Somatoform Disorder)
DSM - IV वर्गीकरण में देहरूपी विकार प्रमुख विकार माने गये हैं। यह वह विकार हैं जिसमें रोगी आंगिक अथवा कायिक लक्षणों की शिकायत करता है। लेकिन वास्तव में रोगी के लक्षणों का आंगिक अथवा कायिक आधार नहीं होता है। रोगी अपने शारीरिक को न केवल वास्तविक मानता है बल्कि अपने शारीरिक लक्षणों को गम्भीर भी मानता है। रोगी यह विश्वास करता है कि उसके शरीर के लक्षण वास्तविक तथा गम्भीर है।
DSM - IV में देहरूपी विकार से ग्रस्त रोगी को निम्नलिखित पाँच कसौटियों के आधार पर बताया गया है-
1. रोगी में जो दैहिक लक्षण या रोगी में जो भी दैहिक क्षति हुई है उसके प्रति रोगी को कोई विशेष चिन्ता नहीं होनी चाहिए।
2. इस तरह रोगी के शारीरिक कार्यों में कुछ परिवर्तन दृष्टिगोचर होना चाहिए। उदाहरण के लिए, उसमें बहरापन अथवा पक्ष आघात के लक्षण दिखाई देने चाहिए।
3. तीसरी कसौटी यह है कि इस बात के सभी धनात्मक सुबूत उपस्थित होने चाहिए कि रोगी में जो भी दैहिक लक्षण हैं उनका कारण दैहिक न होकर मनोवैज्ञानिक है।
4. रोगी अपने लक्षणों के प्रति जो भी चिन्ता अभिव्यक्त करता है वह चिन्ता उसके ऐच्छिक नियन्त्रण से बाहर होनी चाहिए।
5. रोगी के जो भी दैहिक अथवा कायिक लक्षण हैं उनकी व्याख्या ज्ञात दैहिक कारणों के रूप में की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, रोगी बहरेपन अथवा पक्ष आघात की शिकायत करता है तो उसके बहरेपन अथवा पक्षाघात का कोई दैहिक या कायिक आधार नहीं होना चाहिए।
उपरोक्त कसौटियाँ जिस रोगी में पायी जाती हैं उस रोगी को कार्य प्रारूप का रोगी माना जाता है। इसी के आधार पर देहरूपी विकार के रोगी की पहचान की जाती है।
(Somatization Disorder
and Somatization)
दैहिकीकरण विकार एवं रोगभ्रमी विकार का वर्णन निम्न प्रकार है-
दैहिकीकरण विकार (Samatization Disorder) - D.S.M. - IV वर्गीकरण में दैहिकीकरण विकार के इस रोग अर्थात् कायिक विकृति के निदान की निम्नलिखित कसौटियाँ बतायी गयी हैं तथा यह कहा गया है कि कोई व्यक्ति दैहिकी विकार रोगी तभी कहा जा सकता है जब उसमें निम्नलिखित चार प्रकार के लक्षण विद्यमान हों-
1. एक लैंगिक लक्षण (One Sexual Symptoms) - उदाहरण के तौर पर रोगी में लैंगिक तट स्थल स्खलन की समस्या, अनियमित मासिक स्राव, मासिक धर्म के समय अधिक स्राव होना आदि लक्षणों में से दो लक्षण अवश्य पाये जाने चाहिए।
2. आमाशय सम्बन्धी दो लक्षण (Two Gastrointestinal Symptoms) - उदाहरण के लिए रोगी मिचली अथवा उल्टी का अनुभव करता हो, पेट फूलने की शिकायत करता हो, डायरिया अथवा अतिसार जैसे लक्षणों में से कम से कम दो लक्षण उसमें पाये जाते हों ।
3. चार प्रकार दर्द सम्बन्धी लक्षण (Four Pain Symptoms) - रोगी पेट, पीठ, सिर या छाती में दर्द का अनुभव करे। पेशाब करते समय दर्द का अनुभव करे, मासिक धर्म की अवधि में दर्द का अनुभव करे, लैंगिक क्रिया की अवधि में दर्द का अनुभव करे। इन सभी प्रकार के दर्द में रोगी कम से कम चार प्रकार के दर्द का अनुभव करे।
4. एक कूटस्नायुविक लक्षण (Pseudoneurological Symptoms) - रोगी में कम से कम एक कूटस्नायुविक लक्षण पाया जाना आवश्यक है। जैसे रोगी में गले में दर्द, विभ्रम पक्षाघात, संवेदना की कमी, स्पर्श, बहरापन, द्विदृष्टि, खाना खाते समय खाना निगलने में कठिनाई, पेशाब करने में कठिनाई आदि लक्षणों का पाया जाना आवश्यक होता है।
(Hypochondiriasis)
कोलमैन के अनुसार - "इस मनस्ताप का रोगी अपने स्वास्थ्य के सम्बन्ध में तथा शरीर के विभिन्न अंगों के कल्पित रोगों तथा विकारों से सम्बन्धित विचार हर समय उसके मस्तिष्क को घेरे रहते हैं।"
एक अध्ययन में यह देखा गया कि मनस्ताप के सभी रोगियों के 5% रोगी इस मनस्ताप से पीड़ित होते हैं। यह रोग उत्तरार्द्ध प्रौढ़ावस्था में तथा स्त्रियों को अधिक होता है। रोगभ्रम का रोगी पेट, सिर, छाती आदि शरीर की किसी तकलीफ अथवा विशिष्ट संवेदना की शिकायत करता है। इस रोग के कारण निम्नलिखित हैं-
1. यह देखा गया है कि जिन बच्चों के स्वास्थ्य की माता-पिता अधिक देखभाल करते हैं, जैसे - खाँसने, छींकने तथा छोटी-छोटी बीमारियों पर अधिक ध्यान देते हैं उनमें आगे चलकर मनस्ताप के लक्षण उत्पन्न होते हैं।
2. इस रोग से पीड़ित रोगी अपने जीवन से निराश होता है। कभी-कभी जब वह विचार करता है कि उसका आधे से अधिक जीवन समाप्त हो गया है एवं जब उसे अपने व्यवसाय तथा पारिवारिक जीवन से सन्तोष नहीं होता, तब ऐसी परिस्थितियों में इस रोग के लक्षण उत्पन्न होते हैं।
उपरोक्त अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि रोगभ्रम का रोगी अपने जीवन से निराश होता है जबकि दैहिक रोगी में ऐसा नहीं होता है। रोगभ्रम रोग स्त्रियों तथा प्रौढ़ावस्था के लोगों में अधिक होता है लेकिन दैहिक रोग में ऐसा नहीं होता है।
|