बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मनोविच्छेदी विकृति क्या है? इसके मुख्य लक्षण की व्याख्या कीजिए।
अथवा
मनोविच्छेदी आत्मविस्मृत क्या हैं? यह मनोविच्छेदी स्मृतिलोप से कैसे भिन्न हैं?
अथवा
मनोविच्छेदी विकृति क्या है? मनोविच्छेदी विकृति के प्रकारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. वियोजनात्मक विकार (Dissociative Disorder) से आप क्या समझते हैं?
अथवा
मनोविच्छेदी स्मृतिलोप के अर्थ तथा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
2. मनोविच्छेदी विकृति के प्रकार बताइये|
3. वियोजनात्मक स्मृतिलोप (Dissociative Amensia)।
4. मनोविच्छेदी स्मृति लोप क्या है?
5. मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति (Dissociative Fugue)।
6. मनोविच्छेदी आत्म विस्मृति तथा मनोविच्छेदी स्मृतिलोप में अन्तर बताइये।
7. व्यक्तित्व लोप विकृति (Depersonalization Disorder)।
8. बहुव्यक्तित्व विकार (Multiple personality Disorder)।
उत्तर-
(Nature of Dissociative Disorder)
मनोविच्छेदी विकृति एक सामान्य परन्तु महत्वपूर्ण मानसिक रोग है जिसमें रोगी की मानसिक प्रक्रियाएँ, विशेष प्रकार की स्मृति विच्छेदित हो जाती है। इसमें स्मृति का कुछ क्षेत्र चेतन से विच्छेदित होकर अलग हो जाता है जिस कारण व्यक्ति अपने आप का तथा वातावरण का भिन्न-भिन्न ढंग से प्रत्यक्षण करता है। मनोविच्छेदी विकृति का प्रमुख लक्षण विच्छेदन (Dissociation) है।
(Major Experience of
Dissociative Disorder)
1. स्मृतिलोप (Amensia) - इसमें व्यक्ति अपनी पूर्वअनुभूतियों का आंशिक या पूर्णरूपेण प्रत्यावाहन करने में असमर्थ होता है।
2. व्यक्तित्वलोप (Depersonalization) - इसमें व्यक्ति अपने आप से असंबद्ध (Deatched ) महसूस करता है। रोगी को यह अनुभव होता है कि वह अपनी ही गतिविधियों को बाहर से खड़ा होकर देख रहा है।
3. पहचान सम्भ्रांति (Identity Confusion) - इसमें व्यक्ति को अपने बारे में संभ्रांति रहती है कि वह कौन है, क्या है, आदि।
4. वास्तविकता लोप (Derealization) - इसमें व्यक्ति को पूरा वातावरण ही अविश्वसनीय तथा अवास्तविक लगता है।
5. पहचान बदलाव (Identity Alteration) - इसमें रोगी स्वयं में कुछ कौशलों का प्रयोग करके बदलाव करता है और उसे स्वयं अपने कौशल पर आश्चर्य होता है।
(Types of Dissociative Disorder)
मनोविच्छेदी विकृति के प्रमुख चार प्रकार निम्नलिखित हैं-
(Dissociative Amensia)
इसे पहले मनोजनिक स्मृतिलोप (Psychogenic amensia ) कहते थे । इस विकृति में रोगी महत्वपूर्ण व्यक्तिगत अनुभूतियों का प्रत्यावाहन पूर्णतः या अंशतः नहीं कर पाते हैं जिसका स्वरूप तनाव उत्पन्न करने वाला होता है। इससे रोगी का सामाजिक तथा अन्य लोगों के साथ समायोजन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। स्मृतिलोप के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. पश्चगामी स्मृतिलोप (Retrograde Amensia) - सयह एक प्रकार का ्थानीयकृत स्मृतिलोप है जिसमें व्यक्ति मानसिक आघात उत्पन्न करने वाली घटना के ठीक पहले की अनुभूतियों को भूल जाता है।
2. अग्रगामी स्मृतिलोप (Anterograde Amenia) - इसमें रोगी किसी नयी अनुभूति का प्रत्यावाहन करने में असफल रहता है।
3. उत्तर- आघातीय स्मृतिलोप (Post - traumatic Amensia) - इसमें व्यक्ति आघात उत्पन्न करने वाली घटना के बाद की अनुभूतियों का प्रत्यावहन नहीं कर पाता है। अतः यह भी एक प्रकार का स्थानीयकृत स्मृतिलोप है।
4. चयनात्मक या श्रेणीबद्ध स्मृतिलोप (Selective or Categorical Amensia) - इसमें रोगी किसी घटना से संबद्ध सूचनाओं का प्रत्यावाहन न करके कुछ ही सूचनाओं का प्रत्यावाहन करने में समर्थ रहता है।
5. सतत स्मृतिलोप (Continuous Amensia ) - इसमें रोगी किसी खास समय तक की स्मृतियों का प्रत्यावाहन करने में असमर्थ रहता है, उसके बाद की अनुभूतियों का प्रत्यावाहन नहीं कर पाता है।
6. सामान्यीकृत स्मृतिलोप (Generalized Amensia) - इस मनोच्छेदी स्मृतिलोप में व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवन की सामान्य घटनाओं का प्रत्यावाहन करने में असमर्थ रहता है।
7. क्रमबद्ध स्मृतिलोप (Systematized Amensia) - मनोच्छेदी स्मृतिलोप में व्यक्ति अपने जीवन की या वातावरण की घटनाओं का क्रमबद्ध प्रत्यावाहन नहीं कर पाता है।
(Dissociative Fugue)
इसे पहले मनोजनिक आत्म-विस्मृति (Psychogentic fugue) कहते थे। इसमें व्यक्ति में स्मृतिलोप के लक्षण तो होते हैं, साथ ही साथ इसमें वह अपने घर को छोड़कर अचानक चला जाता है और वहाँ नया नाम, नया काम बताकर एक नया जीवन व्यतीत करता है। कई दिन, महीने तथा कभी-कभी सालों व्यतीत होने के बाद रोगी अपने को नयी जगह पाकर आश्चर्य में पड़ जाता है और फिर वह नये जीवन के बारे में सब भूल जाता है। उसे यह भी समझ में नहीं आता है कि वह यहाँ क्यों आया और किस प्रकार आया।
(Depersonalization Disorder)
व्यक्तित्वलोप विकृति इस प्रकार की विकृति है जिसमें व्यक्ति का आत्मन के प्रत्यक्षण में इस हद तक परिवर्तन हो जाता है कि उसमें पृथक्करण का भाव उत्पन्न हो जाता है। व्यक्ति स्वयं को यंत्र द्वारा चलने वाला प्राणी समझने लगता है। उसे यह अनुभव होता है कि वह सपनों की दुनिया में रह रहा है। उसे यह अनुभव होता है कि वह अपनी शारीरिक एवं मानसिक प्रक्रियाओं को एक बाह्य प्रेक्षक की तरह देख रहा है। इस प्रकार के रोगी में संवेदी भ्रामक, भावात्मक अनुक्रियाओं की कमी तथा अपनी क्रियाओं पर नियंत्रण खोने का भाव होता है।
(Dissociative Identity Disorder or DID)
इस रोग को पहले बहुव्यक्तित्व विकृति (Multiple Personality Disorder) कहते थे। इसमें एक ही व्यक्ति में दो या दो से अधिक भिन्न व्यक्तित्व अवस्थाएँ पायी जाती हैं। प्रत्येक अवस्था अपने आप में संवेगात्मक तथा भावात्मक दृष्टिकोण से काफी सुसज्जित तथा संगठित होती है एवं प्रत्येक व्यक्तित्व के तंत्र का अपना अलग विचार एवं संज्ञान होता है।
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