बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- रूपान्तर विकृति से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख लक्षणों तथा कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
रूपान्तर विकृति के लक्षणों एवं कारणों का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
टिप्पणी लिखिए-
1. रूपान्तर विकृति (Conversion Hysteria)|
2. रूपान्तर विकृति के संवेदी लक्षण।
3. रूपान्तर विकृति के लक्षणों एवं कारणों की व्याख्या कीजिये।
4. रूपान्तर विकृति के पेशीय लक्षण।
5. रूपान्तर विकृति के कारण।
6. रूपान्तर विकृति का उपचार।
उत्तर-
रूपान्तर विकृति
(Conversion Disorder)
हिस्टीरिया शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ( Hystera) से हुआ है जिसका शाब्दिक अर्थ गर्भाशय ( Uterus) है। प्राचीन समय में महान यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रटीज का विश्वास था कि कुंठित गर्भाशय सम्पूर्ण शरीर में घूमता रहता है। इस दिशा में महत्वपूर्ण विचार फ्रायड ने दिये। उन्होंने इस रोग का नाम रूपान्तर हिस्टीरिया रखा। फ्रायड का विश्वास था कि सैक्स सम्बन्धी अन्तर्द्वन्द्व शारीरिक कष्ट के रूप में रूपान्तरित होता है इसलिये इसका नाम रूपान्तर विकृति रखा गया। फ्रायड ने इस रोग का कारण कामजनित अन्तर्द्वन्द्व बताया है।
(Definition of Conversion Hysteria)
एन. कैमरान (N. Camaeron, 1963) के अनुसार - "रूपान्तर प्रतिक्रिया एक ऐसी प्रतिक्रिया है जिसमें अचेतन अन्तर्द्वन्द किसी शारीरिक लक्षण में रूपान्तरित (बदल जाता ) हो जाता है। साथ ही साथ यह प्रक्रिया रोगी की चिन्ता और तनाव को अन्तर्द्वन्द्व की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति द्वारा कम करती है।"
कोलमैन (Koleman, 1981) के अनुसार - "कनवर्जन हिस्टीरिया में वह मनस्तापी प्रतिमान सम्मिलित है जिसमें दैहिक रोग निदान शास्त्र के आधार के अभाव में कुछ शारीरिक लक्षण उत्पन्न होते हैं।"
(Clinical Picture or Symptoms)
इसके लक्षणों को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा गया है-
(क) संवेदी लक्षण (Sensory Symptoms) - इस रोग में रोगी की ज्ञानेन्द्रिय के कार्यों में कुछ विकृति आ जाती है। इसे संवेदी लक्षण कहते हैं। रूपान्तर हिस्टीरिया के प्रमुख संवेदी लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. एनेस्थेसिया (Anesthesia) - इसमें रोगी को शरीर के किसी अंग की संवेदनशीलता पूर्णता लुप्त हो गयी प्रतीत होती है ।
2. हाइपेस्थेसिया (Hypesthesia) - इसमें रोगी को अपने शरीर की या किसी विशेष अंग की आंशिक रूप से संवेदनशीलता लुप्त हो गयी प्रतीत होती है।
3. हाइपरस्थेसिया (Hypersthesia) - इसमें रोगी के शरीर में अति आंशिक संवेदनशीलता पाई जाती है।
4. एनालगेसिया (Analgesia) - इसमें रोगी के शरीर में दुःख या दर्द के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं होती है।
रूपान्तर हिस्टीरिया से सम्बन्धित कुछ लक्षण और उदाहरण निम्नलिखित हैं-
1. जाँघ असंवेदिता (Thigh Anesthesia) - रूपान्तर हिस्टीरिया के एक स्त्री रोगी को जाँघ में संवेदनशून्यता के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
2. अन्धापन (Anopsia) - इसमें रोगी को दिखाई नहीं देता या दूसरे शब्दों में उसकी दृष्टि संवेदना समाप्त हो जाती है।
3. बधिरता (Aacusia) - रूपान्तर हिस्टीरिया के इस लक्षण में रोगी में सुनने की . शक्ति समाप्त हो जाती है।
4. अघ्राणता (Anosmia) - इस रोग के रोगी की सूँघने की क्षमता समाप्त हो गयी है।
(ख) गत्यात्मक या पेशीय लक्षण (Motor Symptoms ) - रूपान्तर हिस्टीरिया के प्रमुख गत्यात्मक लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. कम्पन (Trembling) - प्रायः यह भय का लक्षण होता है। इसमें रोगी का शरीर काँपता है । उक्त संवेग की अवस्था में भी व्यक्ति काँपता है।
2. ऐंठन (Cramps) - ऐंठन का तात्पर्य पेशीय ऐंठन से है। एक लेखक के हाथ में पेशीय ऐंठन का लक्षण था। मनोविश्लेषण से ज्ञात हुआ कि उसका कोई शारीरिक आधार नहीं था ।
3. लकवा (Paralysis) - इसमें रोगी के शरीर का अंग निष्क्रिय हो जाता है।
4. स्वरहानि (Aphonia) - इसमें व्यक्ति की आवाज बन्द हो जाती है। खांसने में तो आवाज आती है परन्तु बातचीत में आवाज नहीं निकलती है।
5. मूकता (Mustism) - इसमें व्यक्ति गूंगा हो जाता है लेकिन अगर नींद में जगाकर पूछा जाय तो वह बातचीत कर लेता है।
6. आक्षेप (Convulsions) - इसमें मिर्गी से मिलते-जुलते दौरे पड़ते हैं।
(ग) अन्तरांगी लक्षण (Visceral Symptoms) - रूपान्तर हिस्टीरिया के ये लक्षण भी व्यापक हैं। कुछ महत्वपूर्ण लक्षण जैसे सिरदर्द, खांसी आना, भोजन की अनिच्छा आदि भी रूपान्तर हिस्टीरिया के परिणाम होते हैं।
(Causes of Conversion Hysteria)
रूपान्तर हिस्टीरिया के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. उच्च सुझाव ग्रहणशीलता (High Suggestibility) - रूपान्तर हिस्टीरिया के रोगी में सुझाव ग्रहणशीलता अधिक मात्रा में पायी जाती हैं। इसमें व्यक्ति का अंह दुर्बल हो जाता है और उसमें रूपान्तर हिस्टीरिया के लक्षण विकसित हो जाते हैं।
2. अपराध भावना और स्वयं को दण्ड देने की इच्छा (Guilt Feeling and Self Punishment) - कभी-कभी रूपान्तर हिस्टीरिया के लक्षण व्यक्ति में उस समय उत्पन्न हो जाते हैं जब उसमें अपराध भावना होती है तथा व्यक्ति इसके लिये स्वयं को दण्डित करना चाहता है।
3. खतरनाक इच्छाओं से सुरक्षा (Defence Against Dangerous Desires) - रूपान्तर हिस्टीरिया का लक्षण व्यक्ति में इस कारण भी उत्पन्न हो सकता है कि वह अपनी खतरनाक इच्छाओं तथा आवेगों से बचाव या पलायन करना चाहता है।
4. खतरनाक परिस्थिति से सुरक्षा (Defence Against Dangerous Situation)- रूपान्तर हिस्टीरिया के लक्षण भयावह परिस्थिति से बचाव करते हैं। उदाहरण के लिये, एक छात्र अपनी परीक्षा की तैयारी न होने के कारण अन्तर्द्वन्द्व से पीड़ित था। जब वह परीक्षा के लिये जा रहा था तो उसे रास्ते में दो बार मूर्छा आयी। मूर्छा का कारण परीक्षा में फेल होने का (अप्रिय स्थिति) बचाव था।
5. वास्तविक बीमारी से उत्पन्न गौण लाभ (Secondary Gains Steming from Actual Illness) - रूपान्तर हिस्टीरिया के लक्षण उत्पन्न होने का एक कारण यह भी हैं कि रोगी शारीरिक बीमारी के बाद भी प्रतिबल स्थिति के बचाव हेतु लक्षणों को बनाये रखता है।
(Treatment of Conversion Hysteria)
रूपान्तर हिस्टीरिया की उपचार की विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. मनोविश्लेषण विधि (Psychoanalysis Method) - फ्रायड तथा अन्य मनोवैज्ञानिकों ने रूपान्तर हिस्टीरिया का उपचार करने के लिये मनोविश्लेषण विधि का प्रयोग किया । मनोविश्लेषण विधि से तात्पर्य रोगियों के उन कारणों का पता लगाना होता है जिनके कारण एक व्यक्ति रोग का शिकार हुआ होता है।
2. सुझाव (Suggestion) - सुझाव के द्वारा भी इसका इलाज किया जा सकता है। लेकिन इस विधि द्वारा की गई चिकित्सा अस्थायी होती है तथा ठीक होने के बाद भी रोगी में इसके लक्षण पुनः उत्पन्न हो जाते हैं।
3. सम्मोहन (Hypnosis) - इस विधि का प्रयोग प्राचीनकाल से होता चला आ रहा है । इसका प्रयोग मुख्यतः शार्को, मैकसवार्क तथा फ्रायड ने किया। इसमें रोगी को सम्मोहन की अवस्था में पहुँचाया जाता है तथा सम्मोहन की अवस्था में रोगी अपने रोग के बारे में सब कुछ बता देता है।
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