बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 3
कायाप्रारूप एवं मनोविच्छेदी विकृतियाँ
(Somatic and Dissociative Disorders)
प्रश्न 1 कायप्रारूप विकृति क्या है? इसके प्रमुख प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मनोदैहिक विकृति से आप क्या समझते हैं? इसके किन्हीं दो प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
काया प्रारूप विकृति के संप्रत्यय एवं स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
रोगभ्रम एवं कायिकी विकृति से आप क्या समझते है?
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कायप्रारूप विकृति की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
2. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए-
(i) शरीर दुष्क्रिया आकृति विकृति (Body morphic disorder)|
(ii) रोगभ्रम (Hypochondriasis)|
(iii) रूपान्तर विकृति (Conversion disorder)।
(iv) कायिक विकृति (Somatization disorder)|
(v) कायप्रारूप दर्द विकृति (Somatoform pain disorder)|
3. रोगभ्रम एवं आकृति - विकृति।
उत्तर-
(Nature of Somatoform Disorder)
DSM-IV के वर्गीकरण के अनुसार कायप्रारूप विकृति एक प्रमुख विकृति है। इसमें व्यक्ति उन दैहिक लक्षणों की शिकायत करता है जिनसे दैहिक समस्याओं की उपस्थिति का अनुमान होता है परन्तु सचमुच में इसका कोई कायिक या आंगिक आधार नहीं होता है। यद्यपि ऐसे लक्षणों का कोई शारीरिक आधार नहीं होता फिर भी रोगी को ऐसा विश्वास होता है कि लक्षण वास्तविक ही नहीं गंभीर भी हैं।
(Types of Somatoform Disorder)
कायप्रारूप विकृति के मुख्य पाँच प्रकार हैं-
(Body Dymorphic Disorder)
इस विकृति में रोगी को अपने चेहरे में कुछ कल्पित दोष उत्पन्न हो जाने की आशंका हो जाती है। जैसे रोगी को यह विश्वास हो जाए कि उसकी नाक का आकार दिनों-दिन बड़ा हो रहा है। इस प्रकार के कल्पित दोष से वह इतना अधिक चिन्तित रहता है कि उसके दिन-प्रतिदिन के सामाजिक जीवन में काफी परेशानी आ जाती है तथा उसमें समायोजन सम्बन्ध समस्या उत्पन्न हो जाती है।
(Hypochondriasis)
इस विकृति में रोगी अपने स्वास्थ्य के बारे में जरूरत से ज्यादा सोचता है तथा उसके सम्बन्ध में चिन्ता करता है। उसके मन में अक्सर यह बात रहती हैं कि उसे कोई न कोई शारीरिक व्याधि हो गयी है। उसकी यह चिन्ता इतनी अधिक होती है कि वह अपने दिन-प्रतिदिन 'की जिन्दगी के साथ समायोजन करने में असमर्थ रहता है। इस प्रकार की चिन्ता व्यक्ति में कम से कम छः महीने तक बने रहने पर उसे रोगभ्रम की श्रेणी में रखते हैं।
(Conversion Disorder)
कायप्रारूप विकृतियों में सबसे सामान्य तथा प्रबल विकृति रूपान्तर विकृति है, जिसे पहले रूपान्तर हिस्टीरिया के नाम से जाना जाता था। फ्रायड पहले ऐसे मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने इस रोग के लिये 'रूपान्तर' पद का उपयोग किया। उनके अनुसार व्यक्ति की दमित मूलप्रवृत्ति संवेदी पेशीय लक्षणों में बदल जाती है तथा उसके कार्यों को अवरुद्ध कर देती है।
(Somatization Disorder)
यह एक ऐसी कायप्रारूप विकृति है जिसमें रोगी को बिना किसी प्रकार के आरम्भिक दोष के ही विभिन्न प्रकार की कायिक शिकायतें रहती हैं। दूसरे शब्दों में रोगी को बहुकायिक शिकायतें रहती हैं जबकि दैहिक रूप से वह स्वस्थ रहता है। इस विकृति में आठ प्रकार के लक्षण होते हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. चार प्रकार के दर्द के लक्षण (Four Pain Symptoms) - इसमें सिर, पेट, पीठ, छाती, मासिक धर्म के दौरान पेशाब करने में जलन, लैंगिक क्रिया के दौरान दर्द आदि में से किसी चार से सम्बन्धित हो सकते हैं।
2. दो अमाशयत्र लक्षण (Two Gastrintestinal Symptom) - कम से कम दो लक्षण, जैसे- मिचली, डायरिया, पेट फूलना आदि अवश्य होते हैं।
3. एक लैगिक लक्षण (One Sexual Symptom) - कम से कम एक लक्षण जैसे लैगिक तटस्थता अनियमित मासिक स्राव आदि होते हैं।
(Somatoform Pain Disorder or Psychalgia)
इस प्रकार की विकृति में रोगी गम्भीर तथा 10 स्थायी तौर पर दर्द का अनुभव करता है जबकि इस प्रकार के दर्द का कोई दैहिक आधार नहीं होता है। इस प्रकार का दर्द प्रायः हृदय या अन्य महत्वपूर्ण अंगों के क्षेत्र से सम्बन्धित होता है। गहन मेडिकल जाँच के बाद भी इस प्रकार के दर्द का कोई स्पष्ट आधार नहीं मिलता है।
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