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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2743
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भीषिका विकृति के प्रमुख लक्षणों तथा कारणों का वर्णन कीजिए।

अथवा

भीषिका विकृति की व्याख्या कीजिये तथा इसके कारणों को बताइये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. संत्रास (Panic disorders) के विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
2. भीषिका विकृति के क्या उपचार हैं?

उत्तर-

भीषिका विकृति
(Panic Disorder)

भीषिका विकृति चिन्ता विकृति का एक प्रमुख प्रकार है। इसमें रोगी को अचानक भीषिका या आतंक का दौरा पड़ता है। जब रोगी को यह अप्रत्याशित दौरा बार-बार अर्थात् हफ्ते में कम *से कम एक या दो बार पड़ता है तो इसे भीषिका विकृति कहा जाता है।

भीषिका दौरे को 13 प्रमुख दैहिक संवेदनों के रूप में परिभाषित किया गया है। इन 13 दैहिक संवेदनों में यदि व्यक्ति को कम से कम तीन दैहिक संवेदन अनुभव हों तो इसे भीषिका दौरा कहा जायेगा। ये संवेदन निम्नलिखित हैं-

भीषिका विकृति (Panic disorder) के रोगी में कुछ दैहिक (Physiological) कुछ संवेगात्मक (Emotional) तथा कुछ संज्ञानात्मक (Cognitive) लक्षण पाये जाते हैं। DSM-IV के वर्गीकरण में इस प्रकार के रोगी की पहचान के लिए तेरह लक्षणों का वर्णन किया गया है। जिस व्यक्ति में इन तेरह लक्षणों में कम से कम तीन लक्षण उपस्थित होते हैं तो उसे भीषिका विकृति का रोगी माना जाता है। ये सभी लक्षण निम्नलिखित हैं-

1. हृदय गति का कम हो जाना या हृदय गति तीव्र हो जाना।

2. रोगी को सामान्य अवस्था की अपेक्षा अधिक पसीना आता है।

3. रोगी की मांसपेशियों में कम्पन होता है जो रोगी को स्वयं तो अनुभव होता ही है साथ ही साथ यह कम्पन बाहर से भी दिखाई पड़ता है।

4. रोगी यह अनुभव करता है कि उसकी सांस की गति मन्द हो गयी है या उसे सांस रुकती हुई भी अनुभव हो सकती है।

5. रोगी को उसकी छाती में दर्द या अन्य कष्टों का अनुभव होता है।

6. रोगी को दम घुटता हुआ अनुभव होता है।

7. रोगी उल्टी का अनुभव करता है। वह कई बार यह भी अनुभव करता है कि उसके पेट में दर्द हो रहा है।

8. रोगी को चक्कर आते हैं तथा वह चक्कर आने के कारण बेहोश भी हो सकता है।

9. रोगी यह अनुभव कर सकता है कि वह स्वयं से अलग-अलग हो रहा है अर्थात् उसे अवास्तविकता (Derealization) का अनुभव होता है।

10. इस रोग की अवस्था में रोगी सनकी (Crazy) दिखाई देता है। उसे यह अनुभव होने लगता है कि वह स्वयं पर नियंत्रण खो रहा है या उसे स्वयं पर नियंत्रण खोने का भय होने लगता है।

11. रोगी को हर समय मृत्यु का भय बना रहता है।

12. रोगी को झुनझुनी ( Tingling ) संवेदना का अनुभव होता है तथा उसे सुन्नपन (Numbness) संवेदना का भी अनुभव होता है।

13. रोगी को अत्यधिक गर्मी का भी अनुभव होता है या उसे कंपकंपी का अनुभव होता है। यह कंपकंपी दूसरों को भी दिखाई पड़ती है।

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भीषिका दौरा में न केवल दैहिक और सांवेगिक लक्षण होते हैं बल्कि कुछ संज्ञानात्मक लक्षण भी होते हैं।

भीषिका दौरा सप्ताह में कम से कम एक या दो बार अवश्य पड़ता है। यह दौरा आने पर लगभग कुछ मिनट तो अवश्य रहता है और कभी-कभी घंटों तक बना रहता है। भीषिका दौरा सांकेतिक (Cued) तथा असांकेतिक (Uncued) दोनों प्रकार का होता है। सांकेतिक भीषिका दौरा कोई विशेष उद्दीपक या परिस्थिति से सम्बन्धित होता है। जब व्यक्ति को उस उद्दीपक या परिस्थिति का सामना करना पड़ता है तो उसे भीषिका दौरा पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में मनोचिकित्सक उसमें दुर्भीति रोग होने का अनुमान लगाते हैं। भीषिका दौरा का सम्बन्ध हमेशा किसी वस्तु या परिस्थिति से नहीं होता है। जब भीषिका दौरा अप्रत्याशित तथा बारंबार होता है, तो यह समझा जाता है कि व्यक्ति में भीषिका विकृति विकसित हो गयी है। मेयर्स के अनुसार भीषिका विकृति का दर पुरुषों में 0.7% तथा महिलाओं में 1.0% होती है। इसकी शुरूआत आरंभिक वयस्कावस्था में होती है तथा इसका सम्बन्ध तनावपूर्ण जीवन की अनुभूतियों से होता है। DSM-IV में भीषिका विकृति को एगोराफोबिया के साथ या उसके बिना होने की बात कही गयी है।

भीषिका विकृति की हेतुकी या कारक
(Etiology or Causes of Panic Disorder)

भीषिका विकृति के कारकों को निम्नांकित दो भागों में बांटा गया है-

1. जैविक कारक (Biological Factors) - भीषिका विकृति उन व्यक्तियों में जल्दी होती है जिनके परिवार के किसी सदस्य को यह हो चुकी हो। भीषिका विकृति एकांकी जुड़वा बच्चों में 31% तथा भ्रांतीय जुड़वा बच्चों में न के बराबर होने की सम्भावना होती है। इससे स्पष्ट होता है कि भीषिका विकृति का आनुवंशिक आधार होता है।

2. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors) - क्लार्क (1989) के अनुसार भीषिका विकृति का कारण व्यक्ति की शारीरिक संवेदनाओं की गलत व्याख्या से होता है। भीषिका विकृति का रोगी सामान्य चिन्ता अनुक्रियाओं जैसे तीव्र हृदय गति, श्वास फूलना तथा चक्कर आने के आधार पर यह मान लेते हैं कि उन्हें भीषिका दौरा पड़ने वाला है।

भीषिका विकृति की चिकित्सा या उपचार
(Therapy or Treatment of Panic Disorder)

भीषिका विकृति के उपचार के लिये कुछ औषधियों का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है। इसमें ट्राईसाईकिलिक विषाद विरोधी औषधि (Tricyclic antidepressant drugs) तथा चिन्ता विरोधी औषधि अल्परोजालस से विभीषिका दौरा काफी कम होते देखा गया है।

इसके अतिरिक्त इस रोग के उपचार के लिए मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों का भी उपयोग किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों का तर्क है कि शारीरिक संवेदनाओं की भ्रान्त व्याख्या से व्यक्ति में भीषिका विकृति होती है। यदि इस व्याख्या को बदल दिया जाए तो इससे विकृति अपने आप दूर हो जायेगी।

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