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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2743
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- द्रव्य सम्बन्ध विकृतियों के उपचार का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।

अथवा
" द्रव्य सम्बन्धी विकृतियों के उपचार कार्यक्रम को सुचारू रूप से क्रियान्वित करने में किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? व्याख्या कीजिए।
अथवा

" द्रव्य-सम्बन्धी विकृतियों के उपचार हेतु महत्वपूर्ण चिकित्साओं का सुझाव प्रस्तुत कीजिए।"

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जैविक चिकित्सा किस प्रकार द्रव्य-सम्बन्धी विकृतियों के उपचार में सहायक है?
2. द्रव्य दुरुपयोग विकृति से सम्बद्ध सामाजिक- सांस्कृतिक उपचार कार्यक्रम की
व्याख्या कीजिए।
3. औषध दुरुपयोग के रोकथाम उपायोग की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
4. व्यवहारपरक एवं संज्ञानात्मक व्यवहारपरक चिकित्सा किस प्रकार औषध दुरुपयोग के उपचार में सहायता प्रदान करती है?

उत्तर- f

द्रव्य-सम्बद्ध विकृतियों के उपचार के लिए कई तरह की प्रविधियों का उपयोग किया जाता हैं। इनमें से कुछ में तो चिकित्सा को पर्याप्त सफलता मिली है तो कुछ में साधारण सफलता। द्रव्य-सम्बद्ध विकृतियों के उपचार के लिए कुछ महत्वपूर्ण चिकित्साओं का सुझाव दिया गया है जो इस प्रकार हैं-

(1) सूझ चिकित्सा - इस तरह की चिकित्सा प्रविधि में चिकित्सक औषध दुरुपयोग करने वाले व्यक्तियों को उन मनोवैज्ञानिक कारकों से अवगत कराने की कोशिश करते हैं, जो उनकी समस्याओं से सम्बद्ध होते हैं। जैसे क्लायंट केन्द्रित चिकित्सा (client centrel therapy) में चिकित्सक उन भावों एवं चिंतन को स्वीकार करने का निर्देश देते हैं। जिसे क्लायंट ने औषध लेने की मुड़ने के वक्त अपने आप से भी छिपा लिया था।

गालेंटर (Galanter, 1993 ) तथा विडमैन (Weidman, 1985) द्वारा किए गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि सूझ चिकित्सा उस परिस्थिति में अधिक लाभप्रद एवं प्रभावकारी सिद्ध होती है जब उसका उपयोग अन्य चिकित्सकीय कार्यक्रम के साथ किया जाता है जैसे गालेंटर (Galenter, 1993) के अनुसार जब ऐसी सूझ चिकित्सा का उपयोग व्यवहारपरक एवं जैविक चिकित्साओं के साथ किया जाता है, तो वे काफी लाभकारी सिद्ध होते हैं।

(2) व्यवहारपरक एवं संज्ञानात्मक व्यवहारपरक चिकित्सा - द्रव्य-सम्बद्ध विकृतियों के उपचार के लिए कई तरह के व्यवहार चिकित्सा की प्रविधियों का उपयोग किया जाता है जिनमें निम्नांकित प्रमुख हैं-

(i) विरुचि अनुबन्धन (Aversive Conditioning) - चिकित्सा की यह प्रविधि क्लासिकी अनुबन्धन के नियमों पर आधृत है। इस चिकित्सा प्रविधि में जब व्यक्ति औषध ले रहा होता है, ठीक उसी समय कुछ अदुखद उद्दीपक जैसे बिजली का आघात आदि बार-बार उपस्थित किया जाता है। इस ढंग से बार-बार युग्मित होने पर उस औषध के प्रति व्यक्ति नकारात्मक ढंग से प्रतिक्रिया करने लगता है और औषध के प्रति उसकी लालसा कम हो जाती है। इस प्रविधि का सफलतापूर्वक उपयोग एल्कोहल दुरुपयोग तथा निर्भरता के उपचार में किया जाता है।

(ii) अन्तः संवेदीकरण (Covert Sensitization ) - अन्तः संवेदीकरण एक प्रकार का विरुचि अनुबन्धन ही है और विरुचि चिकित्सा द्रव्य-सम्बद्ध विकृतियों में तभी प्रभावकारी होता है. जब क्लायंट इस चिकित्सा के दुखद अनुभूतियों को जानते हुए उसे जारी रखने के लिए प्रयत्नशील एवं अभिप्रेरित रहें।

(iii) वैकल्पिक प्रशिक्षण (Alternative Training) - इस प्रविधि में चिकित्सक द्रव्य-सम्बन्ध समस्याओं को कम करने के ख्याल से औषध लेने के विकल्प को स्वीकार करने पर बल डालते हैं। रोहसेनाऊ, स्मिथ एवं जॉनसन (1985) ने अपने अध्ययन के आधार पर यह बतलाया है कि शराब पीने वाले जो प्रायः अपना चिंता या तनाव कम करने के लिए पीते हैं, को शिथिलीकरण, मनन या चिंतन या बायोफिडबैक का प्रशिक्षण दिया जा सकता है।

(iv) प्रसंभाव्यता प्रशिक्षण (Contingency Training) - यह प्रशिक्षण विधि साधनात्मक अनुबन्धन के नियमों पर आधृत है और इसके द्वारा कोकेन दुरुपयोग करने वाले व्यक्तियों का उपचार किया जाता है। इस प्रशिक्षण में व्यक्ति के पेशाब की जाँच की जाती है और जब-तब उसका पेशाब औषध-तत्व मुक्त होते हैं, उसे कुछ प्रोत्साहन दिया जाता है।

संज्ञानात्मक-व्यवहारपरक चिकित्सा की एक अन्य विधि जिसे पुनःपतन रोकथाम प्रशिक्षण कहा जाता है, का भी उपयोग द्रव्य-सम्बन्ध विकृति के उपचार में किया जाता है। इस चिकित्सक प्रविधि में मद्यपान व्यसनी आत्म- मॉनिटरिंग के सहारे उन परिस्थितियों एवं सामाजिक परिवर्तनों पर नजर रखते हैं जो उन्हें मद्यपान करने के लिए आकर्षित करते हैं। इसके बाद उन्हें ऐसी परिस्थिति में समायोजी उपायों को सीखने के लिए कहा जाता है। यहाँ क्लायंट को पहले से ही यह सुनिश्चित करने का प्रशिक्षण दिया जाता है कि उसे कितना मद्यपान करना चाहिए तथा किस परिस्थिति में वे कितना मद्यपान करेंगे।

(3) जैविक चिकित्सा (Biological Therapy) - द्रव्य सम्बन्ध विकृतियों के उपचार में जैविक चिकित्सा की अहम भूमिका है। जैविक चिकित्सक तीन तरह से ऐसे व्यक्तियों की मदद करता है - ऐसी चिकित्सा द्रव्य से व्यसनी को दूर रहने में मदद कर सकता है या फिर उससे नजदीक रहते हुए भी परहेज बनाकर रखने में मदद कर सकता है या फिर व्यसनी को जितना द्रव्य का वह उपयोग करता है, उससे आगे न बढने देकर उतना ही पर उसे सम्पोषित करने में मदद कर सकता है।

(i) डिटॉक्सिफीकेन (Detoxification) - यह एक ऐसी प्रविधि है जिसमें व्यसनी औषध से क्रमबद्ध एवं मेडिकल देख-रेख में अपने आपको दूर रखता है। ऐसी प्रविधि में व्यक्ति में प्रत्याहार लक्षण होते हैं परन्तु उनका स्वरूप काफी हल्का होता है।

(ii) प्रतिरोधी औषध (Antagonist Drug) - ऐसी जैविक प्रविधि में द्रव्य-सम्बद्ध विकृति से ग्रसित व्यक्ति में प्रतिरोधी औषध दिया जाता है जो व्यसनी औषध के प्रभाव को परिवर्तित कर देता है या फिर रोक देता है।

(iii) औषध संपोषक चिकित्सा (Drug Maintenance Therapy) - इस तरह की चिकित्सा में व्यक्ति को एक तरह के औषध निर्भरता को दूर करने के लिए उससे कम गम्भीर औषध को लेने की सलाह दी जाती है और उसे इस कम गम्भीर औषध पर ही संपोषित करके रखा जाता है।

(4) सामाजिक-सांस्कृतिक उपचार कार्यक्रम (Socio-cultural Treatment Programme) - द्रव्य दुरुपयोग विकृति से सम्बद्ध अधिकतर लोग ऐसे सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आते हैं जिनमें निर्धनता, आक्रोश, हिंसा आदि की प्रधानता होती है। अतः ऐसे लोगों को चिकित्सक द्वारा चिकित्सा उपलब्ध कराये जाते समय इन सब तथ्यों को विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है और उसी के सन्दर्भ में उन्हें प्रशिक्षित एवं पुनर्शिक्षित करने की कोशिश की जाती है।

(5) रोकथाम (Prevention) - औषध दुरुपयोग के रोकथाम उपायों को भी उपचार के मार्ग में एक महत्वपूर्ण कदम बतलाया गया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ड्रग एब्यूज (National Institute of Drug Abuse or NIDA, 1991) के अनुसार औषध दुरुपयोग को रोकने के लिए कई तरह के कार्यक्रम बनाए गए हैं जिनकी प्रविधियाँ तथा उद्देश्य भिन्न भिन्न हैं। कुछ कार्यक्रम ऐसे हैं जो औषध के सम्पूर्ण परहेज पर बल डालते हैं तो कुछ ऐसे हैं जो अल्प मात्रा में औषध के लेने की सिफारिश करते हैं। कुछ ऐसे भी कार्यक्रम हैं जिनमें कम उम्र में औषध न लेने का सुझाव दिया जाता है । औषध रोकथाम कार्यक्रम का केन्द्र बिन्दु व्यक्ति विशेष या उसका परिवार होता है। ऐसे कार्यक्रम के लिए साथी संगी या पूरा समुदाय की मदद वांछनीय होती है।

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