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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2743
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- उत्तेजक-सम्बद्ध विकृति किसे कहते हैं? इससे सम्बन्धित अन्य विकृतियों का वर्णन कीजिए।

अथवा

उत्तेजक-सम्बद्ध विकृति खासकर कोकेन तथा केफैईन से सम्बद्ध विकृतियों पर प्रकाश डालिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. कोकेन से सम्बद्ध विकृति का उल्लेख कीजिए।
2. केफैईन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-

उत्तेजक ऐसे तत्वों को कहा जाता है जो केन्द्रीय तंत्रिकातंत्र की क्रिया को बढ़ाता है - जिससे व्यक्ति को हृदयगति तथा रक्तचाप में वृद्धि हो जाती है तथा व्यक्ति की चिंतन प्रक्रियाएँ, क्रियाएँ एवं सतर्कता में वृद्धि हो जाती है। उत्तेजक की श्रेणी में कई तत्वों को रखा गया है-

(1) कोकेन से सम्बद्ध विकृति (Cocaine-related disorder) - कोकेन कोका नामक पौधे का एक विशेष तत्व होता है जो दक्षिण अमेरिका में काफी उपजता है। इस औषध को इस पौधे से सबसे पहले 1865 में अलग कर उसके पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया गया था। सामान्यतः इसे व्यक्ति सुई लगाकर ठोस रूप बनाकर, धूम्रपान द्वारा या फिर उसे नाक से सूँघकर ग्रहण किया जा सकता है। क्रेक कोकेन की शक्ति सामान्य कोकेन से काफी अधिक होती है। कोकेन का सामान्य प्रभाव केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करना होता है यह मस्तिष्क के कम से कम तीन भागों पर स्पष्ट रूप से प्रभाव डालता है प्रमस्तिष्कीय बलकुट, जिससे व्यक्ति की स्मृति तथा तर्कणा शक्ति का नियंत्रण होता है। हाइपोथैलेमस, जिससे व्यक्ति में भूख, शारीरिक तापक्रम, नींद, संवेग जैसे डर तथा क्रोध आदि का नियंत्रण होता है। लघु मस्तिष्क, जिससे व्यक्ति के पेशीय क्रियाओं जैसे चलना तथा शारीरिक संतुलन आदि का नियंत्रण होता है।

DSM - IV (TR) में कोकेन उन्मादन के मुख्य कसौटी निम्नांकित बतलाए गए हैं-

(i) व्यक्ति कोकेन का उपयोग हाल में ही प्रारम्भ किया हो।

(ii) कोकेन लेने के दौरान या उसके तुरन्त बाद व्यक्ति में महत्वपूर्ण कुसमायोजी व्यवहारात्मक या मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आदि उत्पन्न हुए हों।

(iii) कोकेन के उपयोग के दौरान निम्नांकित दो या अधिक लक्षणों का विकास अवश्य हुआ हो-

(a) हृदय गति में वृद्धि, (b) आँख की पुतली में फैलाव, (c) उच्च या निम्न रक्तचाप, (d) पसीना आना या ठंड लगना, (e) कै होना या जी मिचलाना।

(iv) उक्त लक्षणों की उत्पत्ति किसी मानसिक रोग या सामान्य मेडिकल अवस्था से नहीं हुआ हो।

कोकेन का प्रभाव व्यक्ति केन केवल मानसिक तथा सांवेगिक कार्यों पर होता है बल्कि उसके जैविक अस्तित्व को भी खतरे में डाल देता है। इसका अत्यधिक मात्रा में उपयोग करने से व्यक्ति में श्वसन रोग तथा हृदय रोग उत्पन्न होते देखा गया है।

उपचार
(Treatments)

कोकेन से सम्बद्ध विकृतियों का उपचार के कई तरीके उपलब्ध हैं जिनमें निम्नांकित प्रमुख हैं-

(i) कुछ लोगों ने कोकेन निर्भरता का उपचार जैविक चिकित्सा से करने का सुझाव दिया है। अध्ययनों में यह पाया जाता है कि विषाद-विरोधी औषध जैसे डेसमीथाइमइप्रेमाइन (desmethyimpramine) के उपयोग से व्यक्ति अपने आपको कोकेन लेने की बुरी लत से दूर रखने में सफल हो पाता है।

(ii) मनश्चिकित्सा की कुछ विशेष विधि जैसे व्यवहार चिकित्सा द्वारा कोकेन लेने की बुरी आदत को छुड़ाया जा सकता है।

(iii) कोकेन लेने वाले व्यक्तियों की बुरी लत को छोड़ने के लिए व्यसन के अधिगम मॉडल का भी सहारा लिया जाता है। इस प्रविधि का उपयोग ओब्रिन तथा उनके सहयोगियों (1998) द्वारा कोकेन से परहेज उत्पन्न करने में सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है। जब ऐसे व्यक्ति को कोकेन सम्बद्ध उद्दीपक से अनावृत किया जाता है तो उसमें होने वाले दैहिक परिवर्तन पर भी ध्यान दिया जाता है। इस चिकित्सा में यह कोशिश की जाती है कि इन दैहिक परिवर्तनों को ऐसे नए उद्दीपकों के साथ अनुबन्धित कर दिया जाए जो कोकेन से सम्बन्धित नहीं होते हैं। ऐसा करने से व्यक्ति में कोकेन के प्रति उत्पन्न लालसा को आसानी से विलोपित किया जा सकता है।

(2) केफैईन (Caffeine ) - चाऊ (Chou, 1994) के अनुसार केफैइन का सबसे अधिक उपयोग में लाया जाने वाला उत्तेजक औषध है। इसका करीब 75% उपयोग कॉफी, चाय, कोला तथा चॉकलेट आदि के रूप में लिया जाता है। इस क्षेत्र में किए गए शोधों से यह पता चलता है कि जो भी व्यक्ति केफैइन लेता है, उसका 99% शरीर अपने में सोख लेता है और आधे से एक घंटे में इसका उच्चतम प्रभाव शरीर पर पड़ने लगता है।

अमेरिकन मनोरोगविज्ञानी संघ ( American Psychiatric Association, 1994) के अनुसार, यदि व्यक्ति 250 मिलीग्राम केफैइन से अधिक मात्रा में कॉफी लेता है, तो इससे उसमें एक विशेष अवस्था जिसे केफैइन उन्माद कहा जाता है जिसमें मूलतः बेचैनी, घबराहट, उत्तेजन, पेट की गड़बड़ी, नींद की कमी, अत्यधिक पेशाब लगना, हृदयगति में वृद्धि तथा फड़कन, मनोपेशीय उत्तेजन आदि पाए जाते हैं।

DSM - IV (TR) में केफैइन निर्भरता की श्रेणी का उल्लेख अलग से नहीं किया गया है। DSM के परिशिष्ट में इसे एक श्रेणी के रूप में उद्धृत किया गया है। कुछ ऐसे प्रयोगात्मक सबूत मिले हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि केफैइन कुछ व्यक्तियों में प्रत्याहार लक्षण उत्पन्न करता है। सिलभरमैन तथा उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि वैसे व्यक्ति जो निम्न से साधारण मात्रा में ही केफैन प्रतिदिन लेते हैं, यदि वे इसे लेना बन्द कर देते हैं तो उनमें प्रत्याहार लक्षण स्पष्ट रूप से दिखने को मिलते हैं। इस परिणाम से यह स्पष्ट रूप से साबित होता है कि केफैइन से प्रत्याहार लक्षण विकसित होते हैं।

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