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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2742
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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

1919 के ऐक्ट से सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन प्रान्तीय प्रशासन में आया। जैसे माण्टफोर्ड रिपोर्ट में कहा गया था: "प्रान्त हैं जहाँ पहले उत्तरदायी सरकार स्थापित करने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए जिसमें हमें अपने उत्तरदायित्व को ध्यान में रखते हुए उन्हें अधिकाधिक वैधानिक तथा प्रशासनिक स्वतन्त्रता देनी होगी।"

मॉण्टफोर्ड रिपोर्ट (1918) ने इस नीति को कार्यान्वित करने के लिए प्रथम चरण में चार सूत्री कार्यक्रम बनाया-

1. स्थानीय निगमों (नगरपालिका, जिला बोर्डों इत्यादि) में पूर्ण लोकप्रिय नियंत्रण।

2. प्रान्तीय शासन में आंशिक उत्तरदायी सरकार की स्थापना।

3. केन्द्र में विधान परिषदों का विस्तार तथा भारतीयों को उसमें और अधिक प्रतिनिधित्व।

4. प्रान्तों में लोकप्रिय नियंत्रित विभागों पर भारत सचिव का नियंत्रण कम करना।

कांग्रेस ने 1919 के मॉन्टफोर्ड सुधारों को “अपर्याप्त, असन्तोषजनक तथा निराशापूर्ण" (inadequate, unsatisfactory and disappointing) बतलाया इसने दिसम्बर 1921 में असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया जिसमें केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधानशालाओं का बहिष्कार सम्मिलित था।

ब्रिटिश सरकार ने 1919 के एक्ट को पारित करते समय यह घोषणा की थी कि वे दस वर्ष के पश्चात इन सुधारों की समीक्षा करेंगे। परन्तु उन्होंने नवम्बर 1927 में ही एक आयोग, सर साइमन (Sir Simon ) की अध्यक्षता में, इसकी समीक्षा के लिए नियुक्त कर दिया और इस प्रकार यह स्वीकार कर लिया कि 1919 के सुधार असफल रहे हैं।

अक्टूबर 1929 में लार्ड अर्विन ने रेम्जे मैक्डानल्ड की नव गठित श्रमिक सरकार से मंत्रणा करने के पश्चात् यह घोषणा की कि भारत की उन्नति का अन्तिम चरण 'डोमिनियन स्टेटस' प्राप्त करना है।

गोलमेज कान्फ्रेंस ने अपने अधिवेशन लन्दन में 1930-1931 तथा 1932 में किए।

यह एक्ट एक बहुत विस्तृत लेख (document) है क्योंकि एक बहुत ही उलझे हुए संघीय संविधान के विषय में है। इसमें भारतीय मंत्रियों, विधान सभा सदस्यों इत्यादि के कदाचार के विरुद्ध संरक्षण दिए गए हैं। इसके तीन प्रमुख अंग हैं-

(अ) अखिल भारतीय संघ
(ब) संरक्षणों सहित उत्तरदायी सरकार
(स) भिन्न-भिन्न साम्प्रदायिक तथा अन्य वर्गों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व

1935 के अधिनियम के अनुसार एक संघीय न्यायालय की व्यवस्था की गई जिसको संविधान की व्याख्या का प्राथमिक (original) तथा पुनर्विचार ( appellate ) अधिकार क्षेत्र दिया गया था परन्तु यहाँ भी अंतिम निर्णय प्रिवी काउंसिल का ही होता था।

भारत सरकार अधिनियम को अगस्त 1935 में सम्राट की स्वीकृति मिल गई। ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि संघ को कार्यान्वित न करके, प्रांतीय स्वायत्तता (Provincial Autonomy) को 1 अप्रैल, 1937 को लागू कर दिया जाएगा।

संघ की स्थापना तक केन्द्रीय सरकार को 1935 के अधिनियम की 9वीं सूची के 'संक्रमणकालीन प्रावधानों' (Transitional Provisions) के अनुसार कार्य करना था।

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