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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2742
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 7
मार्ले-मिण्टो सुधार, भारत सरकार
अधिनियम 1919 एवं 1935
(Marley - Minto Reforms, Government
of India Act 1919 and 1935)

मिन्टो-मारले सुधार भारत में संसदीय व्यवस्था लागू करने की भावना से पारित नहीं किए गए ये अपितु इसलिए कि नौकरशाही की स्थिति अधिक सुदृढ़ हो जाए और मुसलमान तथा संयत मार्गी लोग इनके साथ मिल जायें। यह सब लार्ड मारले के उस वक्तव्य से स्पष्ट है कि उन्होंने 23 फरवरी 1909 को लार्ज सभा में दिया। उन्होंने कहा इस प्रकार की योजना में हमें तीन प्रकार के लोगों से निपटना है, एक हैं अतिवादी (extremists) जो स्वेच्छा से योजनायें बनाते हैं और एक दिन हमें भारत से निकालने की सोचते हैं दूसरे ऐसा नहीं सोचते परन्तु स्वायत्ततापूर्ण उपनिवेशवादी सरकार की स्थापना चाहते हैं और तीसरा वर्ग है जो केवल हमारे प्रशासन में सहयोग देना चाहता है ताकि अपने लोगों की आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व कर सके। मैं आशा करता कि इन सुधारों का परिणाम हुआ है और होगा कि हम दूसरे वर्ग के लोगों को जो उपनिवेशीय स्वायत्तता चाहते हैं तीसरे वर्ग के लोगों की परिधि में ले आयें जो केवल एक सन्तोषजनक तथा पूर्ण सहयोग देना चाहते हैं। वास्तव में इन सुधारों से कोई भी वर्ग प्रसन्न नहीं हुआ।

1919 में यह प्रावधान था कि राजनैतिक परिस्थिति का प्रत्येक दस वर्ष के पश्चात् पुनरावलोकन किया जाए। 1972 में ही यह प्रक्रिया आरम्भ कर दी गई और सर्वश्वेत साइमन आयोग नियुक्त किया गया। सर्वदलीय कान्फ्रेंस ने नेहरू रिपोर्ट (Nehru Report) प्रस्तुत की। साइमन आयोग रिपोर्ट और तीन गोल मेज कान्फ्रेंसों और अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रस्तुत श्वेतपत्र (White Paper), ये सभी 1935 के भारत सरकार अधिनियम का आधार बन गए।

प्रांतीय स्वायत्त शासन - इस अधिनियम के अन्तर्गत गनर्वरी प्रांत को एक नई वैधानिक प्रतिष्ठा प्रदान की गई। मुख्य रूप से वे अब कुछ विषयों को छोड़कर भारत सरकार और राज्य सचिव के नियंत्रण से मुक्त हो गए और उन्हें अब यह शक्ति क्राउन से मिल गई।

प्रांतों को दोहरे शासन के स्थान पर अब स्वशासन (autonomy) मिल गया और आरक्षित और हस्तान्तरित विषयों में भेद समाप्त हो गया। कुछ आरक्षणों सहित वहाँ पूर्ण उत्तरदायी सरकार स्थापित हो गई। प्रांतीय परिषदों का भी विस्तार हुआ। बम्बई, मद्रास, बंगाल, यू.पी., बिहार और आसाम में द्विसदनीय व्यवस्था लागू कर दी गई और शेष पाँच में एक सदनीय। मताधिकार भी विस्तृत कर दिया गया। दुर्भाग्यवश साम्प्रदायिक मतदाता मण्डल और अल्पसंख्यकों को अधिक महत्त्व देने की परम्परा और भी बढ़ा दी गई।

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