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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2742
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

1781 ई. में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने 'कलकत्ता मदरसा' की स्थापना की जिसमें फारसी और अरबी का अध्ययन होता था।

ब्रिटिश रेजीडेण्ट जोनाथन डंकन ने -1791 ई. में वाराणसी में हिन्दू कानून और दर्शन हेतु संस्कृत कॉलेज की स्थापना की।

1800 ई. में लॉर्ड वेलेजली ने कम्पनी के असैनिक अधिकारियों की शिक्षा के लिये 'फोर्ट विलियम कॉलेज' की स्थापना की।

अंग्रेज धर्म प्रचारक तथा ईसाई मिशनरियों ने भारत में शिक्षा के प्रसार हेतु श्रीरामपुर (कलकत्ता) को अपना केन्द्र बनाया था।

डेविड हेयर नामक एक अंग्रेज ने - 1820 ई. में कलकत्ता में 'विरॉप कॉलेज' की स्थापना की।

राजा राममोहन राय, डेविड हेयर, एलेक्जेण्डर डफ और सर हाईड ईस्ट ने मिलकर 'कलकत्ता हिन्दू कॉलेज' की स्थापना की जो कालान्तर में 'प्रेसीडेन्सी कॉलेज' बना।

ब्रिटिश काल में प्राच्य शिक्षा के समर्थक दल के नेता एच.टी. प्रिंसेप तथा एच. एन. विल्सन थे जिनका मानना था कि भारत में संस्कृत और अरबी के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाये।

दूसरी ओर आंग्लवादी दल, जैसे- चार्ल्स ट्रैवेलियन, मुनरो, एलफिन्सटन आदि ने भारत में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की वकालत की।

शिक्षा के माध्यम के विवाद के चलते तत्कालीन गवर्नर जनरल विलियम बैंटिंक ने अपने कौंसिल के विधि सदस्य लॉर्ड मैकाले को 'लोक शिक्षा समिति' (बंगाल) का प्रधान नियुक्त कर उन्हें भाषा सम्बन्धी विवाद पर अपना विवरण पत्र प्रस्तुत करने को कहा।

2 फरवरी, 1955 ई. को मैकाले ने अपना स्मरणार्थ लेख (Macaulay Minute) प्रस्तुत किया जिसमें उसने भारतीय भाषा और साहित्य की तीखी आलोचना करते हुए आंग्ल भाषा एवं साहित्य की प्रशंसा की।

शिक्षा के 'अधोमुखी निस्यंदन सिद्धान्त का प्रतिपादन लॉर्ड ऑकलैण्ड द्वारा किया गया जिसका सर्वप्रमुख उद्देश्य उच्च वर्ग को शिक्षित करना था।

गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के समय पर चार्ल्स वुड की अध्यक्षता में गठित समिति ने 1854 ई. में भारत में भावी शिक्षा के लिये वृहद् योजना प्रस्तुत की जिसे '1854 ई. का चार्ल्स वुड डिस्पैच' कहा गया।

इस योजना के अन्तर्गत अखिल भारतीय स्तर पर शिक्षा की नियामक पद्धति का गठन किया गया।

वुड के डिस्पैच के आने के बाद 1855 ई. में 'लोक शिक्षा विभाग' की स्थापना हुई, साथ ही कलकत्ता, बम्बई और मद्रास विश्वविद्यालय अस्तित्व में आये।

लॉर्ड रिपन ने 1882 ई. में डब्ल्यू. डब्ल्यू. हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया जिसे 'हंटर कमीशन' (1882-83) के नाम से जाना गया। इसका प्रमुख कार्य प्राथमिक शिक्षा' के प्रसार के लिये महत्वपूर्ण उपाय सुझाना था।

वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 1902 ई. में थॉमस रैले की अध्यक्षता में 'विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया।

भारत में 'शिक्षा महानिदेशक' की नियुक्ति कर्जन के समय में ही की गयी। इस पद को ग्रहण करने वाला प्रथम अधिकारी एच.डब्ल्यू. ऑरेन्ज था।

1917 ई. में सरकार ने डॉ. माइकल सैडलर के नेतृत्व में कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्यायों के अध्ययन हेतु एक आयोग नियुक्त किया जिसे 'सैडलर आयोग' कहा गया।

सैडलर आयोग के सुझावों पर उत्तर प्रदेश में एक बोर्ड ऑफ सेकेण्डरी एजूकेशन की स्थापना हुई।

महिलाओं की शिक्षा पर सरकारी स्तर पर पहली बार 'वुड डिस्पैच' में व्यवस्था की गई। इसी प्रकार 'हंटर कमीशन' और 'सैडलर आयोग की रिपोर्ट में भी स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देने का सुझाव दिया गया।

सर्वप्रथम भारत में यूरोपीय जातियों का आगमन हुआ।

लगभग 100 वर्षों तक यूरोपीयों ने भारत के साथ व्यापार किया।

17वीं शताब्दी के आरम्भ में यूरोपीय (पुर्तगाली डच, डेन, फ्रांसीसी तथा अंग्रेज) जातियों के लोग व्यापार करने के लिए भारत आये।

अन्त में 'ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया' कम्पनी की विजय हुई और भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने धार्मिक तटस्थता की नीति अपनाई।

देशी शिक्षा की जाँच कराई गई। यह जाँच सर टॉमस मुनरों, एलफिस्टन और पादरी विलियम एडम द्वारा की गई।

देशी शिक्षा के अन्तर्गत कई संस्थाएँ जैसे - गुरु गृह, संस्कृत विद्यालय, ग्रामीण  पाठशालायें, मकतब और मदरसे आदि प्रमुख थे।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक व्यापारिक संस्था थी। अतः कम्पनी ने ईसाई धर्म के प्रचार- प्रसार के लिए कार्य आरम्भ कर दिया।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारतवासियों को प्रोटेस्टेण्ट धर्म के प्रचार एवं प्रसार करने के लिए प्रशिक्षित किया।

भारत में सन् 1715 से 1731 ई. के मध्य धार्मिक स्कूल खोले गये।

इन स्कूलों का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों, एग्लोइण्डियनों, ईसाईयों आदि को निःशुल्क शिक्षा देना था।

वारेन हेस्टिंग्स (बंगाल के गर्वनर ) ने कलकत्ता के मुसलमानों की सद्भावना प्राप्त करने के लिए मदरसा की स्थापना की थी जिसमें शिक्षा का माध्यम अरबी था।

भारत में शिक्षा की वर्तमान स्थिति की जाँच करके एक संसदीय समिति को नियुक्त किया गया था।

चार्ल्स वुड के सरंक्षण एवं प्रभावपूर्ण निर्देशन में आज्ञा-पत्र तैयार हुआ।

इस आज्ञा-पत्र को चार्ल्स वुड का आज्ञा-पत्र कहा गया। आज्ञा पत्र में तीन पहलुओं पर संस्तुतियाँ प्रस्तुत की गई-

1. शैक्षिक नीति
2. शैक्षिक प्रशासन
3. शैक्षिक विकास

1853 से पूर्व ईस्ट इण्डिया कम्पनी की शैक्षिक नीति यह थी कि भारत में एक ऐसा वर्ग तैयार करना जो द्विभाषिया बन सके।

1854 आज्ञा-पत्र में प्राच्य व पाश्चात्य दोनों भाषाओं के महत्व को स्वीकार किया गया।

आज्ञा-पत्र में लिखा है - "हमें जोरदार शब्दों में घोषणा कर देनी चाहिए कि जिस शिक्षा का हम भारत में प्रसार देखना चाहते हैं, वह ऐसी शिक्षा है जिसका लक्ष्य यूरोपीय उच्च कला, विज्ञान, दर्शन तथा साहित्य का संक्षेप में यूरोपीय ज्ञान का प्रसार करना है।"

आज्ञा-पत्र में लिखा है - "आज्ञा-पत्र भारत में प्राथमिक स्कूल से विश्वविद्यालय तक की शिक्षा की एक समुचित एवं स्पष्ट योजना को तैयार करने का कार्य सरकार पर डालता है।"

आज्ञा-पत्र में लिखा है - भारत में अब विश्वविद्यालयों की स्थापना का समय आ गया है, जो कला एवं विज्ञान के द्वारा भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में निपुणता प्राप्त छात्रों को शैक्षिक उपाधियाँ प्रदान करके नियमित और उदार शिक्षा पाठ्यक्रम को प्रोत्साहित करें।

भारत में विश्वविद्यालयों की स्थापना लन्दन विश्वविद्यालय को आदर्श मान कर की जाए।

प्रत्येक विश्वविद्यालय में चान्सलर, वाइस चान्सलर तथा फैलो को सम्मिलित कर एक सीनेट बनाया जाये।

सन् 1859 में गर्वनर जनरल स्टैनले ने अपने विवरण पत्र में प्राथमिक शिक्षा में व्यापक सुधार करने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किये।

भारतीय शिक्षा के इतिहास में रुचि रखने वाले लार्ड हेलीफैक्स और लार्ड लारेंस ने 1878 ई. में भारत की शिक्षा की सामान्य समिति का गठन करके सरकार की नीति की कटु आलोचना की।

सन् 1880 ई. में लार्ड रिपन को भारत का गर्वनर जनरल नियुक्त किया।

1854 के उपरान्त होने वाली शिक्षा की प्रगति का आकलन करने के लिए 'भारतीय शिक्षा आयोग गठित किया गया।

इस आयोग का गठन सन् 1882 ई. में हुआ।

इस आयोग के अध्यक्ष गर्वनर जनरल की कार्यकारिणी के सदस्य सर विलियम हण्टर को बनाया गया। भारतीय शिक्षा आयोग को हण्टर के नाम से जाना जाता है।

इस आयोग में 20 सदस्य थे जिनमें सात भारतीय सदस्य थे।

इस आयोग के सचिव बी. एल. राइस थे।

हण्टर आयोग ने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण कर महत्वपूर्ण तथ्य एवं सूचनाएँ एकत्र की।

मिशनरियों ने इंग्लैण्ड में "जनरल काउसिंल ऑफ एजूकेशन इन इण्डिया' नामक एक संगठन बनाया।

इस समिति ने लार्ड रिपन के समक्ष शिक्षा की जाँच की प्रार्थना की।

आयोग ने इसकी जाँच के लिए हण्टर आयोग की स्थापना 1882 ई. में की।

आयोग ने प्राथमिक शिक्षा की नीति संगठन, आर्थिक व्यवस्था, पाठ्यक्रम और शिक्षकों का प्रशिक्षण आदि पक्षों पर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की।

आयोग ने भारत की पिछडी तथा आदिवासी जातियों में उदार आर्थिक सहायता द्वारा प्राथमिक शिक्षा की प्रोत्साहित किया।

आयोग ने यह सुझाव दिया कि सरकार प्राथमिक शिक्षा के संगठन का कार्य नगर पालिकाओं और जिला परिषदों को सौंप दे।

1914 ई. प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हुआ था जिससे शैक्षिक क्रियाकलाप रोक दिये गये थे।

श्री आशुतोष मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया।

सरकार ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग की क्षमता की जाँच करने हेतु 14 सितम्बर, 1917 ई. को कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग की नियुक्ति की थी।

इस आयोग को सैडलर आयोग भी कहा जाता है। आयोग की जाँच का विषय था- कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थिति एवं आवश्यकताओं की जाँच करना और उसके द्वारा उपस्थित किये जाने वाले प्रश्न पर रचनात्मक नीति का सुझाव देना।

आयोग ने 17 माह के प्रयास के बाद 1919 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

इस रिपोर्ट में माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय शिक्षा का पूर्ण विवेचन किया है।

प्रत्येक प्रान्त में माध्यमिक और इण्टरमीडिएट शिक्षा परिषद की स्थापना की जाए।

प्रोफेसरों एवं रीडरों की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जाए, परीक्षा पाठ्यक्रम, उपाधि वितरण और अनुसंधान आदि।

एकेडेमिक कार्यों को करने के लिए एकेडमिक समिति की स्थापना की गई।

आयोग ने प्रत्येक प्रान्त में माध्यमिक शिक्षा परिषदों की स्थापना करने और उन्हें कॉलेजों को मान्यता देने का सुझाव देकर माध्यमिक शिक्षा परिषद को सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया।

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