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बीए सेमेस्टर-4 हिन्दी

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2741
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 हिन्दी - सरल प्रश्नोत्तर

 

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

 

 

 

भाषा की उत्पत्ति, विकास और उसमें आए बदलाव का लंबा इतिहास है। भाषा और संस्कृति एक-दूसरे के विकास में सहायक हैं।

 

भाषा संस्कृति के निर्माण में सहायक होती है, भाषा द्वारा हम अपनी संस्कृति व्यक्त करते हैं, भाषा स्वयं भी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है ।

 

किसी भी समाज ने विकासक्रम में अपनी एक भाषा का निर्माण किया। इस भाषा की सहायता से समाज विशेष के व्यवहार, कार्यनीतियों, व्यवस्था आदि का संप्रेषण व संचालन किया गया। इसी व्यवहार, कार्यनीति, शैली, आस्था आदि को संस्कृति कहा जाता है जिसके संप्रेषण में भाषा की अनिवार्य भूमिका है।

 

संस्कृति सामाजिक और प्राकृतिक परिवेश पर विजय पाने का एक साधन है। उसमें मनुष्य के भाव, विचार, संस्कार, संवेदनाएँ सभी शामिल हैं।

 

भाषा भी ऐसी ही संस्कृति है। वह पत्थर, लकड़ी या धातुओं के बने हुए आयुधों जैसे स्थूल नहीं है, उसका स्तर अधिक सूक्ष्म है किन्तु वह कोई अतींद्रिय नहीं है।

 

भाषा किस प्रकार संस्कृति का दर्पण हो जाती है। हम यह भी देखते हैं कि संस्कृति में बदलाव के साथ-साथ भाषा में भी बदलाव आता-जाता है, भाषा में नए शब्द जुड़ते जाते हैं, शब्दों के अर्थ में विस्तार या संकुचन आने लगता है।

 

सामाजिक संदर्भ से भाषा को अलग करके इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता। विभिन्न भाषाविदों के अनुसार, भाषागत परिवर्तनों के दो प्रमुख कारण हैं- आंतरिक और बाह्य।

 

कोई भी समाज अपने अंतर्विरोधों से मुक्त नहीं रह सकता। इन्हीं अंतर्विरोधों के कारण उसकी चिंतनशैली में परिवर्तन होते हैं और यही परिवर्तन भाषा में भी दृष्टिगत होते हैं।

 

विभिन्न भाषा-भाषी समुदाय विभिन्न अवस्थाओं में एक समान नहीं रहते। सामाजिक- सांस्कृतिक रूप से विकास के साथ-साथ उनके भाषा प्रयोग, शब्दभंडार, शैली आदि में भी परिवर्तन देखे जाते हैं।

 

विकास के विभिन्न चरणों से गुजरा समाज अपने विकास के रास्ते में आए विभिन्न पड़ावों, जैसे- परिवार, संपत्ति, सत्ता, सामाजिक बदलाव-जाति, धर्म आदि के आधार पर हुए विभाजन ने मनुष्य की भाषा को भी गहरे प्रभावित किया।

 

समाज पर जिस तरह की सत्ता का दबाव होता है, भाषा भी उसी के अनुसार अपना रूप बदलती है। इससे स्पष्ट है कि भाषा और समाज का एक दूसरे से अन्योन्याश्रय संबंध है। उदाहरण के रूप में भारतीय उदाहरण देखें तो भारत में विभिन्न कालखण्डों में सत्ता के बदलाव के साथ-साथ न केवल सत्ता की कार्यशैली बदली अपितु उसके साथ भाषा और भाषा के शब्द भंडार और व्यवहार में भी बदलाव देखे गए।

 

उसी तरह सामाजिक व्यवस्था सामंती व्यवस्था, पंजीवादी व्यवस्था, समाजवादी व्यवस्था अथवा भूमंडलीकृत व्यवस्था के अनुसार ही समाज विशेष के व्यवहार की भाषा भी प्रभावित होती है।

 

यह समझा जाना आवश्यक है कि भाषा का अध्ययन कभी भी समाज से विलग करके नहीं किया जा सकता।

 

भारत एक बहुभाषिक व बहुसांस्कृतिक देश है। यहाँ एक साथ कई भाषाएँ बोली जाती हैं। भाषा परिवार की दृष्टि से देखा जाए तो भारतीय भाषाओं को चार प्रमुख भाषा परिवारों में बाँटकर देखा जा सकता है- भारोपीय भाषा परिवार, द्रविड़ भाषा परिवार, ऑस्ट्रो-एशियाई (मुंडा) भाषा परिवार व चीनी-तिब्बती भाषा परिवार।

 

भारोपीय भाषा परिवार मूलतः कई शाखाओं में बँटा हुआ है- अल्बानियाई, अनातोलियाई, आर्मीनियाई, स्लाव, बाल्टिक, जर्मेनिक, यूनानी, भारतीय-ईरानी, रोमांस तथा तोखारी । भारतीय भाषाओं का सम्बन्ध भारतीय - ईरानी शाखा से है।

 

भारतीय-ईरानीं भाषा परिवार की आगे चार उपशाखाएँ हैं- आर्य, ईरानी, दरद और नूरिस्तानी । भारोपीय परिवार में आने वाली भारतीय भाषाओं को भारतीय आर्य भाषा परिवार कहा जाता है।

 

द्रविड़ भाषा परिवार लगभग 30 भाषाओं का समूह है। द्रविड़ परिवार की प्रमुख भाषाएँ हैं - तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम। द्रविड़ भाषा बोलने वालों की संख्या लगभग 30 करोड़ मानी जाती है जो भारत के अतिरिक्त श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि विभिन्न देशों में फैले हुए हैं।

 

ऑस्ट्रो-एशियाई भाषाएँ भारत के उत्तर-पूर्व में बोली जाती हैं। इस परिवार की मुख्य भाषाएँ .. मुंडारी व संथाली हैं जो इस वर्ग में सर्वाधिक बोली जाती हैं। इस परिवार की उपशाखाएँ हैं- मुंडा भाषा परिवार व मानखमरे भाषा परिवार।

 

चीनी-तिब्बती भाषा परिवार को दो भागों में बाँटा जाता है-चीनी और तिब्बती-बर्मी भाषाएँ। इस परिवार के अंतर्गत आने वाली भाषाओं में से मणिपुरी, अंगामी, मिजो, बोडो, लद्दाखी तथा लेप्चा भारत में बोली जाती हैं।

 

भारत सदैव से एक बहुभाषिक व बहुसांस्कृतिक देश रहा है। एक राष्ट्र की अवधारणा से पहले ही भारत एक बहुभाषिक व बहुसांस्कृतिक क्षेत्र रहा है।

 

भारत में लगभग 1600 भाषाएँ बोली व व्यवहार में लाई जाती हैं। बहुसांस्कृतिकता तथा बहुभाषिकता को विश्व के अनेक देशों में किसी समाज की दुर्बलता के रूप में देखा गया है।

 

सेमुअल पी. हटिंगटन ने - अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'द क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन एंड द रीमेकिंग ऑफ वर्ल्ड ऑर्डर' में बहुसांस्कृतिकता को एक समस्या के रूप में देखा है और माना है कि ऐसी स्थिति में राष्ट्र की अपनी पहचान स्पष्ट नहीं हो पाती और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर वह कमजोर साबित हो जाता है जबकि बहुसांस्कृतिकता व बहुभाषिकता के पक्ष में अपनी बात कहते हुए भीखू पारेश अपने निबन्ध व्हॉट इज मल्टीकल्चरलिज्म में इसे जीवन जीने के एक तरीके के रूप में देखते हैं।

 

बहुभाषिकता भारत की पहचान है। यहाँ मातृभाषा के साथ-साथ अन्य भाषाओं को भी सीखने व अपनाने की प्रवृत्ति रही है ।

 

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