बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 भूगोल बीए सेमेस्टर-4 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
कृषि प्रदेश के विस्तृत क्षेत्र कृषि की दशाओं पर निर्भर करते हैं।
कृषिगत समरूपता में कृषि को उत्पादन विधि की भिन्नता के अनुसार भी अन्तर मिलता है।
सर्वप्रथम 1936 ई. में डी. व्हीटलसी ने विश्व के कृषि प्रदेशों का सीमांकन किया।
कृषि उत्पादन विधि भी कृषिगत दशाओं की समरूपता एवं प्रादेशिक सम्बद्धता की द्योतक हैं।
कृषि के उद्देश्य के अनुसार भी कृषिगत दशायें एवं विशेषतायें भिन्न हो जाती हैं।
विभिन्न फसलों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु अपेक्षित है।
फसलों के लिए विशेषतः ताप तथा नमी सम्बन्धी दशायें अधिक महत्वपूर्ण हैं।
प्रत्येक फसल के लिए उसके बटने तथा काटने के समय विशेष तापमान की आवश्यकता होती है।
फसलों का उत्पादन मिट्टी की भौतिक संरचना, गठन तथा जैव पदार्थों की उपलब्धता तथा PH मान पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
जोनसन के अनुसार - तीन 'जीवन' प्रदेश विश्व के वृहत् कृषि प्रदेश हैं।
इंटिगटन तथा जोनसन के कृषि प्रदेश प्रधानतः प्राकृतिक पर्यावरणों के फसलों के उत्पादन की अनुकूलता पर आधारित हैं।
कृषि गहन उद्यम है पर उसमें कृषक अपनी आत्मनिर्भरता के लिए विविध आवश्यक फसलें पैदा करता है।
चलवासी पशुचारण अफ्रीकी-एशियाई शुष्क प्रदेश तथा घास वाले टुण्ड्रा प्रदेश में मिलता है।
इस व्यवसाय में इन प्रदेशों में रहने वाले कबीले, खिरंगीज, लैप आदि लगे हैं।
इनका भोजन पशुओं से प्राप्त दूध तथा मांस है।
व्यापारिक पशुपालन ऐसे शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में विकसित हुआ है जहाँ यूरोपीय लोग जाकर बस गये हैं।
व्यापारिक पशुपालन कृषि प्रदेशों में पशुपालन की प्रधानता है, अन्न की खेती नगण्य इन प्रदेशों में पशुओं की देखभाल वैज्ञानिक ढंग से की जाती है।
उत्तरी अमेरिका में व्यापारिक पशुपालन पश्चिमी कनाडा तथा संयुक्त राज्य एवं मैक्सिको में होता है।
दक्षिण अमेरिका में अर्जेन्टीना, उरुग्वे तथा ब्राजील के शीतोष्ण कटिबन्धीय भाग महत्वपूर्ण पशुपालन क्षेत्र हैं।
अर्जेण्टीना में पशुपालन का अधिक महत्व है।
प्रारम्भिक निर्वाहक कृषि सबसे विस्तृत ढंग की खेती हैं।
यह अधिकतर आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय भागों में पायी जाती है।
प्रारम्भिक निर्वाहन कृषि वस्तुतः तीन प्रकार की होती है-
स्थानान्तरणशील कृषि, अर्द्धस्थानान्तरणशील कृषि तथा स्थायी कृषि।
स्थानान्तरणशील कृषि के कई स्थानीय नाम हैं।
मलेशिया तथा इण्डोनेशिया के स्थानान्तरित कृषि को लदांग कहा जाता है।
फिलीपीन्स में इसे बैगीन कहा जाता है।
श्रीलंका में चेना, जिम्बाब्बे में मिल्पा तथा सूडान में न्यासू कहा जाता है।
स्थानान्तरणशील कृषि को कुछ लोग यूरोप में नव प्रस्तर युग में प्रचलित कृषि के नाम पर स्वीड्डेन कृषि भी कहते हैं।
स्वीड्डेन का वास्तविक अर्थ होता है वह खेती जिसमें आग द्वारा वनों को जलाकर खेत बनाये जाएं।
स्थानान्तरित कृषि में उपयुक्त जगह पर जंगल साफ करके किसान खेत बनाते हैं।
इस प्रकार के खेतों में साल दो साल खेती करने के बाद जब उसकी उर्वरता समाप्त हो जाती है तो उसे छोड़कर दूसरी जगह खेत बनाते हैं।
स्थानान्तरित कृषि में केवल फसलें उगायी जाती है पशुपालन नगण्य होता है।.
फसलों में भी खाद्य फसलों की प्रधानता रहती है।
इनमें मक्का, ज्वार, बाजरा तथा धान प्रमुख फसले हैं।
स्थानान्तरित कृषि में खेत जोतने के साधनों का उपयोग नहीं होता है।
कृषि की उपज कम होती है फलस्वरूप किसान परिवार का सालभर भरण-पोषण मुश्किल से होता है।
प्रारम्भिक स्थायी कृषि की विशेषतायें वही होती है जो स्थानान्तरित कृषि को होती है इसमें स्थान परिवर्तन नहीं होता है।
यह कृषि पद्धति स्थानान्तरित कृषि पद्धति से ही विकसित होती है।
गहन निर्वाह कृषि वह कृषि पद्धति है जिसमें प्रधानतः खाद्य फसलों का उत्पादन स्थानीय उपभोग के लिए होता है।
गहन निर्वाह कृषि में विश्व की एक तिहाई जनसंख्या संलग्न है तथा जीवन-निर्वाह कर रही है।
गहन निर्वहन कृषि मानसून एशिया में केन्द्रित है।
इस कृषि में फसलों का पशुपालन की अपेक्षा ज्यादा महत्व होता है।
फसलों में भी खाद्य फसलों की प्रधानता होती है।
खाद्यान्न में भी चावल का सर्वप्रथम स्थान है।
गहन निर्वाह कृषि को दो वर्गों में विभाजित किया गया है- चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि तथा चावल विहीन गहन निर्वाह कृषि।
विश्व में अनेक फसलें बागानों में व्यापारिक दृष्टिकोण से उपजाई जाती है।
कपास, तम्बाकू तथा चाय जैसी बागानी फसलें उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में उपजाई जाती हैं।
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