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बीए सेमेस्टर-4 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2737
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

 

प्राकृतिक वनस्पति से अभिप्राय उसी पौधा समुदाय से है, जो लम्बे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगता है।

विश्व में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पायी जाती हैं।

वर्गीकरण के आधार पर वनस्पतियों को चार भागों में बाँटा गया है।

वनस्पति समुदायों का वितरण आर्द्रता की भिन्नता के अनुसार मिलता है।

वनस्पति संघटनों के विभेदीकरण में तापमान का अधिक महत्त्व होता है।

उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन विषुवत रेखीय प्रदेशों में पाये जाते हैं।

अमेजन घाटी तथा प.मध्य अफ्रीका में उष्ण कटिबन्धीय वन विस्तृत क्षेत्र पर पाये जाते हैं।

उष्ण कटिबन्धीय वन कभी पत्ता विहीन न होने से ये सदाबहार वन कहलाते हैं।

सदाबहार वनों में महोगनी, रोजवुड, सेडार तथा एबोनी इत्यादि वृक्ष पाये जाते हैं।

कच्छ वनस्पतियों का प्रमुख महत्त्व समुद्र द्वारा कटाव रोकने में है।

अत्यल्प वर्षा वाले भागों में झाड़दार या कांटेदार वन पाये जाते हैं।

मध्य अक्षांशीय वन उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जहाँ जाड़े का तापमान 60° से 80° के बीच रहता है। 

मध्य आक्षांशीय वनों को शीतोष्ण वर्षा वन भी कहते हैं।

भूमध्य सागरीय जलवायु वाले प्रदेशों में भूमध्यसागरीय वन पाये जाते हैं।

भूमध्यसागरीय वनों को कैलीफोनियाँ में 'चपराल' तथा भूमध्यसागर तटीय देशों में 'माक्वी' कहा जाता है।

जैतून तथा कार्क - ओक भूमध्यसागरीय वनों के प्रमुख पेड़ हैं।

मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों के आर्द्र भागों तथा अधिक ठण्डी वाले भागों में मिश्रित वन पाये जाते हैं।

मिश्रित वनों में चौड़ी तथा नुकीली दोनों प्रकार के पत्तियों वाले वृक्ष होते हैं।

ओक, बर्च, बीच, मेपुल, हिकोटी तथा ऐश प्रमुख चौड़ी पत्ती वाले पेड़ हैं।

नुकीली पत्तियों वाले वृक्ष ध्रुवीय छोरों पर, बलुआ मिट्टी में तथा पहाड़ी ढालों पर पाये जाते हैं।

चौड़ी पत्तियों वाली पेड़ों की पत्तियाँ बड़ी तथा नाजुक होती हैं।

हेमलाक, पाइन, स्प्रूस तथा फर कोणधारी हैं।

कोणधारी वृक्ष सदाबहार होते हैं इनमें वर्ष भर पत्तियाँ उगती रहती हैं।

टैगा या बोरियल वन ध्रुवीय प्रदेशों में पाये जाते हैं।

ऊष्ण कटिबन्धीय लम्बी घास वाली वनस्पतियों को सवान कहा जाता है।

मध्य अक्षांशों की लम्बी घासों को प्रेयरी कहते हैं।

मध्य अक्षांशों की छोटी घासों को साधारणतः स्टेप्सी कहा जाता है

सवाना घास की लम्बाई प्रायः एक से डेढ़ मीटर होती है।

सवाना का सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र अफ्रीका में स्थित है।

दक्षिण अमेरिका में वेनेजुएला, कोलम्बिया तथा ओरीनेको घाटी की लानोज तथा ब्राजील की कम्पोज भी सवाना घास के क्षेत्र हैं।

सवाना के बीच-बीच में पेड़ भी पाये जाते हैं।

मध्य अक्षांशों में वृक्षविहीन बड़ी घासों वाले क्षेत्र को प्रेयरी कहा जाता है।

प्रेयरी घासों की ऊँचाई ढाई मीटर होती है।

प्रेयरी घास मुलायम भी होती है तथा इनकी जड़ें मिट्टी में फैली होती हैं।

प्रेयरी घासें उ. अमेरिका में टेक्सास से कनाडा तक विस्तृत पेटी में पायी जाती है।

चीन में भी एक सीमित क्षेत्र में प्रेयरी घास का क्षेत्र है।

सवाना तथा प्रेयरी के अधिक शुष्क छोरों पर पायी जाने वाली छोटी घासों को स्टेपी कहा जाता है।

सभी महाद्वीपों में आर्द्र एवं शुष्क वनस्पति के मध्य स्टेपी घास पायी जाती है।

स्टेपी घास का सर्वाधिक विस्तार एशिया में उत्तर के कोणधारी वृक्षों वाले वनों तथा मरुभूमि के उत्तर तथा दक्षिण दोनों ओर है।

अत्यधिक शुष्क रेगिस्तानों में कँटीली झाड़ियाँ तथा मरुद्भिद मिलते हैं।

नागफनी, सेजब्रुश तथा क्रिओसोट प्रमुख रेगिस्तानी वनस्पतियाँ हैं।

मॉस तथा लाइकेन प्रमुख टुन्ड्रा वनस्पतियाँ हैं।
टुण्ड्रा के दक्षिणी छोर पर कुछ वृक्ष भी पाये जाते हैं।

विश्व के कुल वन क्षेत्र की दृष्टि से सर्वाधिक वन दक्षिण अमेरिका में पाये जाते हैं।

कच्छ वनस्पतियों में टेनिन पाया जाता है।

हिमालय पर्वतों पर शीतोष्ण कटिबन्धीय वनस्पतियाँ उगती हैं।

पश्चिमी घाट तथा अंडमान एवं निकोबार क्षेत्र समूह में उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन पाये जाते हैं।

डेल्टा क्षेत्रों में उष्ण कटिबन्धीय वन तथा मैंग्रोव पाये जाते हैं।

राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ जैसे– झाड़ियाँ, कैक्टस तथा कोटेदार वनस्पति पायी जाती है।

वर्तमान में भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 23.68% पर वनक्षेत्र हैं।

भारत में सर्वाधिक वन क्षेत्र मध्यप्रदेश में हैं।
भारत में सबसे कम वन क्षेत्र हरियाणा में है।

भारत में मैंग्रोव वनस्पति का सर्वाधिक क्षेत्रफल पश्चिम बंगाल में पाया जाता है।

साइडर, होलक तथा बैल अर्द्ध सदाबहारी प्रकार के वन हैं।

पर्यावरणीय सन्तुलन स्थापित करने के लिए कुल भौगोलिक स्थलीय क्षेत्र के लगभग 33% भाग पर वन क्षेत्र होना चाहिए।

भारत में लगभग 15 राज्यों में 33% से अधिक भागों पर वन पाये जाते हैं।

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