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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2735
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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 3
स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में शारीरिक शिक्षा तथा
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में शारीरिक शिक्षा
(Physical Education in India before
Independence and Physical Education
in India after Independence)

मानव का विकास उसके संचलन से ही शुरू हुआ है मनुष्य प्रकृति का सबसे अधिक क्रियाशील एवं सृजनात्मक प्राणी है और शारीरिक कार्यकलाप प्रारम्भ से ही उसके जीवन का एक अभिन्न अंग रहे हैं। आदिम मानव के लिए भोजन और सुरक्षा की तलाश ही उसकी प्रथम क्रियाशीलता थी इसकी यह पहली शारीरिक क्रियाशीलता उसके जीवित रहने नैसर्गिक आवश्यकता थी। जैसे-जैसे मानव ने सांस्कृतिक, संगात्मक और सामाजिक रूप से विकास किया उसी तरह से शारीरिक क्रियाशीलता भी बढ़ती गयी। जैसे-जैसे समाज जटिल होता हुआ आधुनिक युग तक पहुँचा वैसे-वैसे ही शारीरिक क्रियाशीलता एक संगठित और निरीक्षणात्मक रूप में होती गयी और शारीरिक शिक्षा के नाम से जानी जाने लगी।

शारीरिक शिक्षा शब्द दो अलग शब्दों से मिलकर बना है 'शारीरिक' एवं 'शिक्षा'। शारीरिक शब्द का साधारण अर्थ शरीर सम्बन्धी विविध क्रियाओं से है, इसका किसी एक या सभी शारीरिक विशिष्टताओं से सम्बन्ध हो सकता है। यह शारीरिक बल, शारीरिक क्षमता, शारीरिक दक्षता, शारीरिक बनावट और शारीरिक स्वास्थ्य आदि के रूप में भी जाना जाता है।

शारीरिक शिक्षा का संक्षिप्त इतिहास
(Brief History of Physical Education)

शारीरिक शिक्षा मानव सभ्यता के प्रारम्भिक काल से ही किसी-न-किसी रूप में मानव जीवन के साथ जुड़ी हुई रही है। शारीरिक शिक्षा उतनी ही प्राचीन है जितना स्वयं मनुष्य अथवा मनुष्य के संज्ञान होने की स्थिति से भी पहले।

आदिम समाज में शारीरिक शिक्षा, मनुष्य के लिए आक्रामक वातावरण के विरुद्ध अपनी रक्षा करने की प्रतिक्रिया तथा भोजन के लिए जीव जन्तुओं के शिकार का साधन थी। उस समय मानव का सबसे बड़ा आश्रय उसका बल तथा कौशल था। आदिवासी युवाओं के बलिष्ठ, लचकीला, तीव्रगामी तथा सशक्त पेशीय होना अत्यन्त आवश्यक था क्योंकि उनकी उत्तर जीविका तथा आखेट (शिकार) इन गुणों पर ही आधारित थी।

संसार के अनेक राष्ट्रों में शारीरिक शिक्षा के अनेक प्रयोग अलग-अलग समय पर एवं अलग-अलग ढंग से प्रारम्भ हुए एवं आज भी हो रहे हैं उन राष्ट्रों में कुछ ऐसे राष्ट्र हैं जिनका शारीरिक शिक्षा का इतिहास बड़ा उज्ज्वल रहा है और आज भी अनेक देशों में शारीरिक शिक्षा के प्रयोग का प्रभाव संसार के शारीरिक शिक्षा क्षेत्रों पर पड़ रहा है ऐसे ही कुछ देशों की शारीरिक शिक्षा के संक्षिप्त इतिहास का वर्णन किया जा रहा है।

भारत में शारीरिक शिक्षा
(Physical Education in India)

भारत वर्ष सभी विद्याओं और कलाओं में विश्व गुरु रहा है। प्राचीन युग में शारीरिक शिक्षा भी चरम उन्नति पर थी इसका प्रमाण किसी स्वतन्त्र ग्रन्थ में प्राप्त नहीं होता है। भारतीय वाङ्गमय के अमर रत्नों, वेद संहिताओं, ब्राह्मण ग्रंथों अरण्यकों, उपनिषदों रामायण, महाभारत आदि में बिखरी सामग्री मिलती है।

शारीरिक शिक्षा के इतिहास को हम भारत के राजनीतिक इतिहास के साथ ही अध्ययन कर सकते हैं तथा इसे निम्नलिखित भागों में बाँट सकते हैं-

1. वैदिक काल.
2. रामायण काल,
3. महाभारत काल,
4. नालन्दा काल,
5. राजपूत काल,
6. मुगल काल,
7. ब्रिटिश काल,
8. आधुनिक काल।

भारत का आधुनिक काल (स्वतंत्रता के पश्चात् )
[Modern Period of India (After Independence)]

सन् 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ जिसके साथ राजनीतिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में नव प्रभात आया । परिणाम स्वरूप नई रीतियाँ व नीतियाँ शिक्षा के क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों में बनने लगी। शिक्षा को राज्य का विषय बनाया भले ही इसकी देखभाल का उत्तरदायित्व केन्द्र पर ही रहा।

शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक प्रगति हुई। नये शिक्षक प्रशिक्षण के द्वार खुलने लगे तथा खेलों और स्वास्थ्य के विकास के लिए नई-नई योजनाएँ बनीं।

शारीरिक शिक्षा और क्रीडा के विकास की दृष्टि से भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय ने सन् 1950 ई० में शारीरिक शिक्षा मनोरंजन के केन्द्रीय परामर्श बोर्ड तथा 1954 में अखिल भारत खेल सलाहकार समिति की स्थापना की। इन दोनों का उद्देश्य शारीरिक शिक्षा तथा खेलों के विकास को बढ़ावा देने की नई रूप रेखा प्रस्तुत करना था। इन समितियों का मुख्य कार्य एवं योजना यह रही कि इन्होंने शारीरिक शिक्षा विषय के डिप्लोमा व सर्टिफिकेट कोर्सों के लिए आदर्श पाठ्यक्रम और स्कूल छात्रों के लिए पाठ्यक्रम तथा शारीरिक शिक्षा में प्रशिक्षण विधि को सरकार के सामने रख करके उनमें संशोधन करना व देश में खेलों के स्तर को उन्नत करने हेतु विभिन्न प्रकार के सुझाव दिये।

इसके बाद खेलकूद की तदर्थ जाँच समिति बनाई गई जिसने अब तक परिणाम की जांच की तथा पुनः खेल सलाहकार समिति को पुनर्गठित किया गया एवं विभिन्न खेल संघों को संगठित कर आर्थिक सहयोग बढ़ाया और कई शारीरिक शिक्षा की उच्च स्तर की संस्थाएँ प्रारम्भ की गई। स्वतंत्रता से पूर्व व पश्चात् की प्रमुख संस्थाएँ निम्न हैं-

1. लक्ष्मीबाई नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ फिजीकल एज्यूकेशन, ग्वालियर - जहाँ बी०पी०ई०, एम०पी०ई०, फिटनेस डिप्लोमा, एम०फिल व पी-एच०डी आदि के कोर्स होते हैं।

2. क्रिश्चियन शारीरिक शिक्षा कॉलेज, लखनऊ फ
3. गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फिजीकल एज्यूकेशन, हैदराबाद
4. गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फिजीकल एज्यूकेशन, कलकत्ता
5. दी गवर्नमेंट फिजीकल एज्यूकेशन कॉलेज, कान्दीवली (बम्बई)
6. श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मण्डल, अमरावती

इन संस्थाओं में भारत के कोने-कोने से खिलाड़ी छात्र शिक्षित होकर जाने लगे और शारीरिक शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार किया है। आज इस तरह की संस्थाएँ प्रत्येक राज्य में स्थापित की हैं और सम्पूर्ण भारत में इनकी संख्या 200-250 है।

खेल प्रशिक्षण के लिए तथा विभिन्न खेलों के प्रशिक्षक तैयार करने हेतु सर्वप्रथम 1961 ई० में श्री के० एल० श्रीमाली द्वारा पंजाब के पटियाला (मोतीबाग) शहर में राष्ट्रीय खेल संस्था के नाम से एक संस्था शुरू की। बाद में इसका नाम नेताजी सुभाष राष्ट्रीय खेल संस्थान (Netaji Subhash National Institute of Sports) रखा गया।

वर्तमान में यहाँ कोचिंग में 1 वर्ष का कोचिंग डिप्लोमा एवं 2 वर्ष के मास्टर ऑफ कोचिंग कार्यक्रम चलाया जाता है। यहाँ से प्रशिक्षित व्यक्ति प्रशिक्षक (Coach) के रूप में देश के खेल का स्तर उच्च करने में अपना विशेष योगदान दे रहे हैं।

अब इस संस्था की चार विंग और खोल दी गई हैं। बंगलौर, कलकत्ता, गांधीनगर व औरंगाबाद। इससे पूर्व में एक कोचिंग योजना और भी बनी थी राजकुमारी अमृत कौर, कोचिंग योजना जिसमें प्रशिक्षक को अच्छा वेतन दिया जाता था और उस स्थान पर सभी खेल सुविधाएँ उपलब्ध . होती थीं परन्तु इस संस्था का बाद में इसी राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान पटियाला में विलय कर दिया गया।

16 मार्च 1984 में भारत में समस्त प्रकार के खेलों पर नियन्त्रण हेतु एवं इन खेलों के विकास व सुव्यवस्थित संचालन हेतु भारतीय खेल प्रधिकरण (Sports Authority of India) जिसे साई (S.A.I.) कहते हैं की स्थापना मानव संसाधन विकास मन्त्रालय भारत सरकार द्वारा की गई। यह स्वशासी संस्थान है यह सरकारी खेल नीतियों का निर्धारण, खेलों को सभी प्रकार की आर्थिक सहायता करना, खिलाड़ियों को मिलने वाली छात्रवृत्तियाँ प्रदान करना तथा पटियाला राष्ट्रीय खेल संस्थान का संचालन करना जैसे अहम कार्यों को सम्पन्न करता है।

भारत देश में वर्तमान में खेल गतिविधियों का वैज्ञानिक विधि से भी संचालन होने लगा है एवं खेलों का सम्मानजनक स्थान है परन्तु अभी अन्य राष्ट्रों की तुलना में वांछनीय प्रगति नहीं है भारत सरकार को एवं समस्त राज्य सरकारों को इस ओर ध्यान देने एवं विचार करने की आवश्यकता है।

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