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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2735
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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 2
आधुनिक समाज में शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता,
महत्व तथा कार्यक्षेत्र, सामान्य शिक्षा के साथ
शारीरिक शिक्षा का संबंध
(Need, Importance and Scope of
Physical Education in the Modern Society,
Relationship of Physical Education
with General Education)

आधुनिक युग में शारीरिक शिक्षा को शिक्षा क्षेत्र का एक अनिवार्य अंग माना जाने लगा है। कुछ समय पहले शिक्षा का लक्ष्य केवल मानसिक विकास ही माना जाता था और इसी की प्राप्ति के लिए मानसिक शिक्षा पर ही बल दिया जाता था तथा अधिकतर सभी प्रयास कक्षा तक ही सीमित रहते थे। परन्तु अब ऐसा विचार किया जाने लगा है कि मानसिक तथा शारीरिक कार्यों को अलग-अलग भागों में नहीं बाँटा जा सकता है क्योंकि दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

शिक्षा और शारीरिक शिक्षा के लक्ष्यों में भी समानता है। दोनों का लक्ष्य विद्यार्थियों में इतनी क्षमता पैदा करना है कि वे सुखी जीवन व्यतीत कर सकें और अधिक-से-अधिक देश की सेवा कर सकें।

जे०बी० नैश के अनुसार - "हम शिक्षा को टुकड़ों में खण्डित नहीं कर सकते और न ही इस बात की आशा कर सकते हैं कि प्रत्येक खण्ड के अलग-अलग परिणाम प्राप्त होंगे।"

विज्ञान के क्षेत्र में शारीरिक शिक्षा
(Physical Edcuation in the Field of Science)

विशिष्ट ज्ञान को ही विज्ञान कहते हैं। विज्ञान दो शब्दों को मिलाकर बना है। 'वि + ज्ञान'। 'वि' का अर्थ है विस्तृत। 'ज्ञान' का अर्थ है जानकारी। जब हम किसी विषय की विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं, तो इसे विज्ञान कहते हैं।

विज्ञान विशिष्ट पद्धति में व्यवस्थित तथा प्रमाणित होता है। ज्ञान को एक भावात्मक प्रतिक्रिया भी माना जा सकता है। किसी वस्तु को देखने, सुनने, सूँघने अथवा चखने की क्रिया से उस वस्तु के प्रति जो भावात्मक प्रतिक्रिया पैदा होती है तथा वह कुछ ही क्षणों तक रहती है। परन्तु जब यही भावात्मक प्रतिक्रिया स्थायी रूप धारण कर लेती है तो इसे मत या विचारधारा के नाम से पुकारा जाता है। यही विचारधारा या मत ज्ञान का प्रमुख आधार है।

यदि अच्छी तरह ध्यान से सोचा जाए तो मनुष्य ने जब से होश सँभाला है तब वे विज्ञान को अपने साथी एवं मित्र के रूप में पाया हैं। मनुष्य का मन स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है, जो कुछ भी प्रतिदिन हमारे चारों और प्राकृतिक एवं सामाजिक तौर पर घटित होता है उसको जानने की जिज्ञासा प्रत्येक मनुष्य को रहती है। विज्ञान के अनुसार कोई भी बात किसी बिना कारणवश नहीं घटती है। इन बातों की खोज का कार्य विज्ञान के द्वारा ही पूर्ण किया जाता है।

शारीरिक शिक्षा में विज्ञान का महत्त्व
(Importance of Science in Physical Education)

शारीरिक प्रशिक्षण का उद्देश्य मात्र उत्तम खिलाड़ी बनाना नहीं है। वर्तमान समय में शिक्षा के उच्च स्तर के कारण लोगों ने स्वस्थ जीवन के प्रति जागरूकता पैदा की है। आज का प्रत्येक व्यक्ति पहले से अधिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक (Health consciousness) है। जिससे हैल्थ क्लबों और ‘जिम्स' की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। यहाँ प्रशिक्षकों को विभिन्न आयुवर्ग और पेशे के लोगों को कम समय में अच्छे-से-अच्छे प्रशिक्षण देने की आवश्यकता होती है। जिससे शरीर क्रिया विज्ञान और विज्ञान सम्मत प्रशिक्षण विधियों की जानकारी अत्यधिक आवश्यक है।

जैसे, किसी प्रशिक्षक को तैराकी के लिए प्रशिक्षण देना है। इसके लिए खिलाड़ी का चयन करना हो तो उसे आर्कमिडीज के प्लवन के सिद्धान्त व गति के नियम घर्षण, घनत्व, वायुदाब आदि का समग्र ज्ञान होना आवश्यक है। प्लवन के सिद्धान्तानुसार यदि वस्तु का भार पानी उछाल से अधिक हो तो वस्तु डूब जाती है, यदि वस्तु का भार पानी के उछाल से कम हो तो वस्तु द्रव पर तैरती है। इस स्थिति में वस्तु का जितना भी भाग पानी में डूबा रहता है उस भाग द्वारा विस्थापित जल का भार पूरी वस्तु के भार के बराबर या वस्तु का भार कम हो तो वस्तु का कुछ भाग पानी से बाहर निकला रहेगा। इस सिद्धान्त के अनुसार तैसकी प्रतियोगिताओं के लिए ऐसे खिलाड़ी का चयन किया जाए जो सुगठित मांसल हो पर उसका भार कम हो, पैशीय चपलता के कारण वह तीव्र गति से पानी को पीछे धकेल सके ताकि वह आगे की ओर बढ़ सके। यहाँ गति का तीसरा नियम क्रिया प्रतिक्रिया लागू होता है। प्रतियोगिता के पूर्व खिलाड़ी को ऐसे भोजन को ग्रहण करना चाहिए जो सरलता से ऊर्जा में परिवर्तित हो सके, ऐसा भोजन नहीं लेना चाहिए जिससे भार में वृद्धि हो। तैराकी से पूर्व शरीर पर तेल लगाने से पानी के साथ घर्षण कम होता है।

सामान्य शिक्षा के साथ शारीरिक शिक्षा का सम्बन्ध
(Relationship of Physical Education
with General Education)

सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा के परस्पर सम्बन्ध को जानने, समझने के लिए दोनों का तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों पर हम विचार कर चुके हैं, यहाँ शिक्षा के सम्बन्ध में विचार करना प्रासंगिक रहेगा। साधारणतः शिक्षा का अर्थ करना सरल नहीं है। शिक्षा के विभिन्न अर्थ किये गये हैं व इसे बहुत व्यापक अर्थ में लिया गया है। शिक्षा को प्रशिक्षण प्रणाली भी समझा गया है जो अध्ययन एवं शिक्षा के द्वारा आती है। अनुभव से क्रमश: होने वाली वृद्धि को भी प्रायः शिक्षा ही समझा जाता रहा है। कुछ का विचार है कि शिक्षा वृद्धि, विकास एवं सामंजस्य का ही रूप है। शिक्षा व्यक्ति जीवन में एक क्रान्तिकारी घटना है, जिसके द्वारा पुनर्निर्माण होता है तथा घटनाओं को अधिक सूक्ष्मता एवं अर्थवता के साथ समझने की दृष्टि पैदा होती है।

शिक्षा का अर्थ केवल अक्षर ज्ञान नहीं है, या शिक्षण संस्थाओं से प्राप्त पुस्तकीय सूचनाओं का नाम भी शिक्षा नहीं है। यह जीवन पर्यन्त चलने वाली सतत विकासात्मक प्रक्रिया है, जिससे व्यक्ति में परिवर्तन, संशोधन एवं परिस्थितियों के साथ अनुकूलन की क्षमता विकसित होती रहती है। क्रियाओं के परिणामस्वरूप परिवर्तन से व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, नैतिक एवं संवेगात्मक रूप से प्रभावित होता है। शिक्षा के अर्थ को और अधिक अर्थमय दृष्टि से समझने के लिए शिक्षा के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं को उद्धृत करना प्रासंगिक समझते हैं।

शिक्षा की परिभाषाएँ
(Definitions of Education)

'सा विद्या या ब्रह्म गति प्रदा।'  -जगद्गुरु शंकराचार्य

'शिक्षा मनुष्य के अंतःकरण में निहित ब्रह्मभाव की अभिव्यक्ति है।' -स्वामी विवेकानन्द

'उत्तम शिक्षा वह है जो हमें केवल सूचना ही नहीं देती, वरन् हमारे जीवन के समस्त पहलुओं को सम अथवा सुडौल बनाती है।' -रवीन्द्रनाथ ठाकुर

'शिक्षा शरीर और आत्मा (मन) को वह सभी पूर्णताएँ प्रदान करती है, जिनको ग्रहण करने की उनमें क्षमता है।' -प्लेटो

'असत्य को छोड़ना और सत्य का अन्वेषण करना ही शिक्षा है। -सुकरात

'पौधे संवर्द्धन द्वारा विकसित किये जाते हैं और मनुष्य शिक्षा द्वारा।' -लॉक

'शिक्षा मानव की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सभी शक्तियों का व्यवस्थित विकास है, जिन्हें वह अपने समान के हित में प्रयुक्त करता है और उनसे स्रष्टा को लक्ष्य बनाकर उनको संयुक्त करता है।' -जॉन डीवी

शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व
(Need and Importance of Physical Education)

वर्तमान में वैज्ञानिक प्रगति के साथ मानव श्रम का स्थान मशीनी उपकरणों ने ले लिया है। एक समय में जो कार्य मानव बहुत कठिन श्रम के साथ अपने हाथ-पावों से करता था, आज उसका स्थान उन्नत मशीनों, उपकरणों ने ले लिया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि मानव के शारीरिक श्रम में एकदम कमी आ गई है। परिणामस्वरूप मनुष्य में न केवल शारीरिक रूप से शिथिलता आई है वरन् वह मानसिक रूप से भी निढाल हो गया है। ऐसी परिस्थितियों में उसे शारीरिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है।

गाँवों की अपेक्षा शहर के वासियों के जीवन में शारीरिक श्रम के अवसर बहुत ही कम मिलते हैं। गाँवों में जहाँ लोगों का खेती-बाड़ी में शारीरिक व्यायाम स्वाभाविक रूप से हो जाता है, जैसे खेत तक पैदल जाना, वहाँ श्रम करना, पशुओं को चराना इत्यादि। लेकिन शहरवासियों को यह अवसर उपलब्ध नहीं होते। ऐसे में वह शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में उसके लिए शारीरिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। खासकर शहरी युवाओं के लिए, जिन्हें रेडियो, टेलीविजन और मनोरंजन के साधनों ने एकदम निष्क्रिय बना दिया है, शारीरिक शिक्षा का महत्त्व बढ़ जाता है।

कहते हैं कि देश की युवा शक्ति ही उस देश की असली ताकत होती है, लेकिन युवा-शक्ति तब ही सच्ची ताकत बनती है, जब वह शारीरिक, मानसिक रूप से स्वस्थ और सबल हो। युवा शक्ति को सर्वांगीण रूप से सबल बनाने का कार्य शारीरिक शिक्षा अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ कर सकती है। खासकर वर्तमान परिस्थितियों में शारीरिक शिक्षा की महत्ता और बढ़ जाती है।

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