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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2735
आईएसबीएन :0

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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग - सरल प्रश्नोत्तर

इकाई - 4
खेल (Game)

अध्याय - 9
भारत के पारम्परिक खेल -अर्थ व प्रकार :
गिल्ली डंडा, कंचे, स्टापू आदि, पारम्परिक खेलों
का महत्त्व / लाभ तथा पारम्परिक
खेलों को कैसे डिजाइन करें
(Traditional Games of India - Meaning and Types :
Gilli-Danda, Kanche, Stapu etc., Importance /
Benefits of Traditional Games and How to
Design Traditional Games)

खेल का अर्थ
(Meaning of Games)

प्रकृति में खेल सार्वभौम है, सभी बालक खेलते हैं तथा विलक्षणता से उनके खेलने में समानता होती है। उनका खेलना जाति, रंग, नस्ल तथा राष्ट्रीयता आदि के घेरे से परे होता है। प्रत्येक बालक अपनी शिशु अवस्था के दौरान वृद्धि एवं विकास की विभिन्न अवस्थाओं में खेलता है। खेलना बालक का स्वाभाविक गुण है, खेल गतिविधियाँ बालक के विकास तथा वृद्धि में सीधे ही प्रभाव डालती हैं। इसमें कल्पना शक्ति का बहुत अधिक समावेश होता है। हम बालक की इस कल्पना शक्ति का उसके द्वारा खिलौने से खेलते हुए उसको तोड़ा जाकर पुनः अपनी कल्पना से जोड़ देने की क्रिया करते हुए अवलोकन कर सकते हैं।

यदि कोई बालक अपने विकास की प्रारंभिक अवस्था में इस प्रकार खेलता नहीं है तो इसका मतलब यह होगा कि उसके साथ कोई समस्या है और उसका ऐसा व्यवहार एक असामान्य बालक के समान उसकी सामान्य वृद्धि तथा विकास की गति की शैली से परे हटाता है। उसका यह व्यवहार आगे चलकर उसके व्यक्तित्त्व के विकास, सामान्य व्यवहार तथा समाज में घुलने-मिलने में अनगिनत समस्याएँ पैदा करता है।

खेलने की विलक्षणता केवल मानव मात्र की ही आदत नहीं है बल्कि इसकी परिधि जीवों की अन्य नस्लों तक भी फैली हुई है। यद्यपि जन्तु खेलते समय अपने व्यवहार में अन्तर नहीं दर्शाते परन्तु उनके हाव-भाव दर्शाते हैं कि खेलते हुए खुश हो रहे हैं और मनोरंजन कर रहे हैं। खेल गतिविधियाँ जन्तुओं के साथ-साथ इंसानों में भी उन्मुक्त स्वतंत्रता तथा अन्दर से हो रही प्रसन्नता को परिलक्षित करती है।

खेल की परिभाषाएँ
(Definitions of Game)

विभिन्न क्षेत्रों (जीवविज्ञान, मनोविज्ञान, सामाजिक विज्ञान, दर्शनशास्त्र) में कार्यरत विद्वानों ने खेल के अर्थ, कार्यरूप की व्याख्या करने के सर्वोत्तम प्रयास किए हैं। कुछ प्रतिष्ठित विद्वानों के द्वारा व्यक्त किए गए विचार इस प्रकार हैं-

"प्राणियों के संरक्षण, वृद्धि एवं विकास के लिए खेल-कूद बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।" -(मैकडावल )

"खेल-कूद शिशु के विकास की प्रारम्भिक परतों को प्राकृतिक रूप से खोलता है।" -(फ्रो बेल )

"खेल मस्तिष्क तथा शरीर के लिए एक ऐसा श्रम है जो कि हमें प्रसन्नता के उस मुकाम तक पहुँचाता है जिसका कोई अन्त नहीं है।" -(पुस्किन)

"खेल एक ऐसी विधा हैं जिसे हम स्वच्छन्द रूप से जैसा हम चाहें कर सकते हैं।" -(गुलिक )

"खेल अपने आप में ही एक स्वतंत्र गतिविधि है, जोकि निरुद्देश्य आनंददायी तथा दिल बहलाऊ होती है।" -(लेजारस )

" खेल एक प्रसन्नतादायक, स्वप्रेरक, क्रियाशील गतिविधि है जिसमें व्यक्ति विशेष को अभिव्यक्ति का पूर्ण अवसर प्राप्त होता है।" -(रोज)

"खेल एक स्वैच्छिक तथा स्वयं के द्वारा की जाने वाली गतिविधि है।" -(स्टर्न)

"खेल क्रियात्मक गतिविधियों की गहन अभिव्यक्ति है।" -(टी०पी० नन)

खेल के बृहत् गुणों को दृष्टिगत रखते हुए और उसके बालकों पर महत्त्व पर ध्यान देते समय हम मानव जीवन में इसके उपयोगिता की विश्वसनीयता पर बाध्य होते हैं। पालकगण या अध्यापक जीवन के इस छोटे-से उल्लेखनीय और महत्त्वपूर्ण भाग से सम्बन्धित होते हैं।

खेल के विभिन्न सिद्धान्त
(Various Theories of Games)

इस सामान्य प्रश्न का उत्तर, खेल के आधार क्या हैं यह विकास की एक अवस्था से दूसरी अवस्था में आने की दशा पर किस पर ऊर्जावान करता है, इस सम्दर्भ में जीवविज्ञान में, समाज विज्ञान में, मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षा शास्त्रियों ने उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर देने के लिए अनगिनत सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया है। कोई भी अकेला सिद्धान्त सही अर्थों में व्याख्या के लिए खेलों के उद्गम के सम्बन्ध में अपने को पूर्ण सक्षम नहीं पाता। प्रत्येक प्रचलित सिद्धान्त खेलों के बारे में एक न एक पक्ष को छोड़ जाता है। इसलिए खेलों के बारे में संतोषप्रद उत्तर पाने के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों की संक्षिप्त विवेचना की गई है-

1. अविशेष ऊर्जा सिद्धान्त
2. पूर्वानुमानित सिद्धान्त
3. मनोरंजन का सिद्धान्त
4. पूर्वकथन सिद्धान्त ( रिकेपिट्यूलेटरी थ्योरी)
5. मनोभावों की अभिव्यक्ति का सिद्धान्त
6. नैसर्गिक अभ्यास सिद्धान्त
7. सामाजिक सम्पर्क सिद्धान्त
8. "खेल ही जीवन है" सिद्धान्त
9. मनोवैज्ञानिक विश्लेषण सिद्धान्त

बालक के लिए खेल की सार्थकता
(Significance of games for a Child)

खेल बालक को वयस्क उम्र के क्रियाकलापों को सँभालने के योग्य बनाता है ताकि वह परिस्थितियों की छान-बीन तथा विभिन्न उद्देश्यों को दक्षता से सुलझाने के लिए योग्य बनाता है तथा इसके लिए उसे प्रखर, समझदार तथा कुशलता प्रदान करता है। वयस्कों में खेल को विश्रांति तथा मनोरंजन का माध्यम माना जाता है।

प्रतिस्पर्धात्मक क्रीड़ाएँ बहुत सी बीमारियों/ रुग्णताओं के लिए आश्चर्यचकित औषधि मानी जाती हैं जिनका उद्देश्य मनुष्य के मनोवैज्ञानिक संतुलन को ठीक करना विशेष कर आधुनिक विश्व में। चिकित्सकीय मनोविज्ञान में ऐसे साक्ष्य उपलब्ध हैं कि यदि खेल एवं मनोरंजन के कार्यक्रमों को व्यक्ति विशेष की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ठीक ढंग से तैयार किया जाए तो यह भावनात्मक स्वास्थ्य के सुधार में बहुत उपयोगी साधन सिद्ध हो सकते हैं। खेल तथा विशेष शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान देने से स्वयं को प्रदर्शित करने, अभिव्यक्त करने तथा संचार के विकास समाजीकरण की आदतों तथा रोगी में आत्मबल पैदा कर वास्तविकता की ओर लाने तथा तनावमुक्ति के लिए बहुत आवश्यक हैं।

खेल, (क्रीड़ा) के उपर्युक्त प्रमुख ऊपर वर्णित लक्षणों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न सिद्धान्तों का बहुत महत्त्व है और संक्षिप्त में यह कहा जा सकता है कि खेल प्रयासों, समय और ऊर्जा की केवल बरबादी ही नहीं है बल्कि यह इसमें जीव वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, समाज वैज्ञानिक तथा शैक्षणिक उद्देश्य समाहित हैं।

हम खेलों को किसी भी कोण से देखें तो हमें सच्चाई का पता लगता है कि यह एक ऐसी क्रिया है कि इस संसार में हमको मानसिक शान्ति और अच्छे स्वास्थ्यमय जीवन के लिए योग्य बनाने हेतु समाजीकृत तथा शिक्षित करती है।

भारत में खेले जाने वाले कुछ पारंपरिक खेलों का परिचय निम्नवर्णित है-

1. गिल्ली-डंडा
(Gilli - Danda)
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वहाँ कुछ बच्चे गिल्ली-डंडा खेल रहे हैं। इनमें कुल चार लड़कियाँ व चार लड़के हैं। गिल्ली-डंडा एक प्राचीन खेल है। यह लगभग 2500 साल पुराना खेल है। गिल्ली-डंडा अधिकतर गाँवों और कस्बों में खेला जाता है। अंग्रेजी में गिल्ली-डंडा को टिपकैट, नेपाली में डंडी-बियो, उड़िया में गुल्ली - बाड़ी, बंगला और असमी में डंग्गुली, कन्नड़ में चिन्नी-डंडू तथा मराठी में विट्टी-दांडू कहते हैं। गिल्ली-डंडा एक सामूहिक खेल है। इसमें कम-से-कम दो खिलाड़ी होने चाहिए। एक छोटी गिल्ली होती है जो पाँच-छह इंच लम्बी होती है। यह बेलनाकार होती है। लकड़ी के टुकड़े के दोनों सिरों को चाकू से छीलकर नुकीला करके गिल्ली बना ली जाती है। इसका डंडा दो-तीन फुट लम्बा होता है। डंडे के एक भाग से गिल्ली को उछालकर मारा जाता है। इस खेल के नियम बिल्कुल आसान है। खेल शुरू करने से पहले जमीन में दो इंच गहरा और चार इंच लम्बा एक गड्ढा खोदा जाता है। खिलाड़ी उस गड्ढे पर गिल्ली को रख कर डंडे से मारकर गिल्ली को दूर फेंकता है। दूसरे खिलाड़ी उसे लपकने के लिए तैयार खड़े रहते हैं। यदि गिल्ली लपक ली गई तो खिलाड़ी आउट हो जाता है। इसके अलावा यदि अन्य खिलाड़ी गिल्ली से डंडे पर निशान लगाने में कामयाब हो गए तो भी वह खिलाड़ी आउट हो जाता है।

2. कबड्डी
(Kabaddi)

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यहाँ कुछ बड़े कबड्डी खेल रहे हैं। बच्चे दो दलों में विभक्त हैं और प्रत्येक दल में सात-सात खिलाड़ी हैं। कबड्डी एक भारतीय पारम्परिक खेल है। यह भारत के प्राचीन खेलों में से एक है। इस खेल को 'हुतुतू' भी कहते हैं। बंगाल में इसे 'हुडू' और दक्षिण भारत में 'चेंडुगुडु' कहते हैं। यह बच्चों का प्रिय खेल है। कबड्डी मैदान में खेली जाती है। इस खेल के नियम सरल हैं। सात-सात खिलाड़ियों के दो हल होते हैं। एक सरल रेखा खींचकर मैदान को दो भागों में बाँट दिया जाता है। इन भागों को 'पाला' कहते हैं। दोनों दल एक-एक पाले में खड़े हो जाते हैं। 'टॉस' जीतने वाले दल का खिलाड़ी 'कबड्डी कबड्डी' कहता हुआ प्रतिद्वन्द्वी दल के पाले में जाता है। खिलाड़ी को दूसरे दल के खिलाड़ियों को छूकर अपने पाले में लौट आना होता है, मगर यह इतना आसान नहीं है। प्रतिद्वन्द्वी दल के खिलाड़ी उसे पकड़ लेते हैं और कोशिश करते हैं कि वह आउट हो जाए। यदि वह खिलाड़ी वापस अपने पाले में आ गया तो उसने दूसरे दल के जितने खिलाड़ियों को छुआ है वे सभी आउट माने जाएँगे। इसके बाद दूसरे दल का खिलाड़ी पहले दल के खिलाड़ियों को आउट करने आता है। खेल इसी प्रकार आगे बढ़ता है। यह खेल 20-20 मिनट के दो चरणों में होता है। जिस दल के ज्यादा खिलाड़ी बचे रहते हैं, वह दल जीत जाता है।

3. लगोरी
(Lagori)

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यहाँ छह बच्चे मिलकर लगोरी का खेल खेल रहे हैं। इनमें तीन लड़कियाँ और तीन लड़के हैं। लगोरी एक भारतीय पारंपरिक खेल है जो छोटे बच्चों को बड़ा प्रिय है। इस खेल के लिए सिर्फ एक गेंद और पत्थरों के सात चिपटे टुकड़ों की जरूरत होती है। इन टुकड़ों को बड़े से छोटे क्रम में पिरामिड की तरह एक के ऊपर एक रखा जाता है। इस खेल में दो दल होते हैं व पहले दल का एक खिलाड़ी गेंद से इस पिरामिड को तोड़ता है और दूसरे दल के खिलाड़ी उस गेंद को पकड़ने भागते हैं। इधर पहले दल के खिलाड़ियों को लगोरी फिर से सजा कर रखनी होती है। दूसरे दल को उन्हें ऐसा करने से रोकना होता है। दूसरे दल के खिलाड़ी पहले दल के खिलाड़ियों को गेंद मारकर रोकते हैं। यदि किसी को गेंद लग गई तो वह दल आउट हो जाता है। फिर दूसरे दल को मौका दिया जाता है। इस तरह यह खेल खेला जाता है। इस खेल से तेज दौड़ने की क्षमता, निरीक्षण शक्ति, निशानेबाजी और ताकत बढ़ती है। इस खेल को पिट्टो, टिप्पो, सतोलिया या टीलो भी कहते हैं।

4. क्रिकेट
(Cricket)
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क्रिकेट का जन्म इंग्लैंड में हुआ था। भारत में क्रिकेट अंग्रेजों की ही देन है। यहाँ कुछ लड़कियाँ गाँव के एक मैदान में क्रिकेट खेल रही हैं। इस खेल में छह लड़कियाँ शामिल हैं। क्रिकेट खेलने के लिए दो स्टंप सेट, दो बैट, गेंद और बल्लेबाजी एवं विकेट कीपिंग करने वाले खिलाड़ियों के लिए घुटनों पर बाँधने के लिए पैड, हाथों के दस्ताने और टोपी या हेलमेट की भी जरूरत होती है। इतनी व्यवस्था कर पाना अक्सर बच्चों के लिए मुश्किल होता है, इसलिए बच्चों को खेलने के लिए बस एक बैट और एक गेंद ही काफी है। क्रिकेट में दो दल होते हैं। प्रत्येक दल में 11 खिलाड़ी होते हैं एवं खेल का निरीक्षण करने के लिए दो से तीन अंपायर भी होते हैं। टॉस जीतने वाला दल बल्लेबाजी या गेंदबाजी का निर्णय लेता है। क्रिकेट टेस्ट मुकाबला पाँच दिवसीय होता है, जबकि एक दिवसीय मुकाबले भी खेले जाते हैं। आज कल 20-20 ओवरों के खेले जाने वाले क्रिकेट मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय हैं। दोनों दल बारी-बारी से बल्लेबाजी और गेंदबाजी करते हैं। एक दल बल्लेबाजी करता है तो दूसरा गेंदबाजी। पहले दल के खिलाड़ियों के आउट होने के बाद दूसरा दल बल्लेबाजी करने आता है। जिस दल के ज्यादा दौड़ (रन) बनते हैं, वह दल जीत जाता है।

5. स्टापू
(Stapu)

 

बच्चों में यह लोकप्रिय गेम है। यह खेल आँगन में खेला जाता है। यह विशेष रूप से 6 से 12 आयु वर्ग की लड़कियों को पसंद आता है। खेल को खुली जगह में खेला जाता है। इस खेल को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे कि उत्तर में टिक्कर बिल्ल, महाराष्ट्र में स्निरी इस प्रकार इस खेल में ये आवश्यक होता है कि बच्चे जमीन पर या फिर परत पर चौकोर खाने बनाएँ, तथा उन पर गिनती लिखें।

खिलाड़ी को ठीक खेलने में सक्षम होना चाहिए। खिलाड़ी द्वारा पत्थर को फेंककर खेल शुरू किया जाता है। खिलाड़ी हर बार अवसर उपलब्ध होने पर जगह बदलता है। जहाँ से वे खेल प्रारम्भ करते हैं। खेल खेलने वाले खिलाड़ी खेल खेलते हैं।

6. कंचे
(Marbles)

 

इन्हें गोटी भी कहा जाता है, इस खेल ने कई और अलग-अलग रंग के कंचों या काँचों के गौरवपूर्ण संग्रह को जन्म दिया। खेल का उद्देश्य एक विशेष तकनीक का उपयोग करके अपने स्वयं के कंचों से जमीन पर कुछ कंचे मारना है। जो भी लक्ष्य को मारने में सफल होता है वह अन्य सभी खिलाड़ियों के कंचे लेता है और विजेता होता है।

नियम

कंचों को मारने की तकनीकें शामिल थीं। सरल संस्करणों में मारने वाले को दूर से ही निर्धारित लक्ष्य संगमरमर (सर्कल के अंदर के कंचों के बीच ) पर ध्यान केन्द्रित करना था। वह आमतौर पर एक आंख बंद करके और हिट करके फोकस करता था। दूसरे संस्करण में, समतल जमीन पर, एक छोटा सा छेद खोदा जाएगा। फिर होल से करीब दो गज की दूरी पर पोजीशन ली जाएगी। खिलाड़ी घुटने टेक देगा और पिछले एक से अलग तकनीक का उपयोग करके संगमरमर को छेद में भेजने का प्रयास करेगा। संगमरमर को बाएँ हाथ की तर्जनी से कसकर पकड़ना था। फिर दाहिने हाथ की तर्जनी के दबाव से उँगली को पीछे की ओर फैलाएँ। जब उँगली छोड़ी जाती है तो संगमरमर आगे बढ़ता है, अक्सर छेद को पार करता है। एक को दूसरे लड़के द्वारा फेंके गए मार्बल को रास्ते से हटाना होता है। या किसी के संगमरमर से कोमल प्रहार के साथ, दूसरे संगमरमर को धक्का दें, ताकि वह छेद में चला जाए। फिर प्रतिद्वंद्वी को दूसरे व्यक्ति की गोली मारने की बारी आती है। जो व्यक्ति सभी गोलियों को छेद में डाल देता है, उसे पहले विजेता घोषित किया जाता है।

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