बी ए - एम ए >> बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योगसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 8
आसन: परिभाषा, आसन और शारीरिक व्यायाम
के बीच अन्तर, प्राणायाम की परिभाषा व वर्गीकरण,
प्राणायाम और गहरी साँस लेने में अन्तर
(Asana : Definition, Difference between Asana
and Physical Exercise, Definition and Classification
of Pranayama, Difference between
Pranayama and Deep Breathing)
(Meaning of Asana)
आसन योग का तीसरा अंग है। आसन (Posture) का अर्थ है - लम्बे समय तक सुखपूर्वक बैठने की स्थिति; दूसरे शब्दों में कहें तो आसन शरीर की वह स्थिति है जिसमें शरीर को सरलतापूर्वक रखा जा सकता है।
आसन में शरीर को अनेक प्रकार की स्थितियों में इस तरह से रखा जाता है जिससे शरीर के अंगों तथा ग्रंथियों की क्रिया पहले की अपेक्षा बेहतर होकर शरीर तथा मन को स्वस्थ बना सके।
(Definitions of Asana)
ब्रह्मा उपनिषद के अनुसार - "आरामदायक मुद्रा में दीर्घ अवधि तक बैठने को आसन कहते हैं।"
एलफोडड और नीट के अनुसार - "स्थिर सुखं आसनम्' अर्थात् स्थिर और आरामदायक मुद्रा ही आसन है।
(Classification of Asanas)
(1) ध्यानात्मक आसन
इस प्रकार के आसन मन को शांत करने के लिए अथवा एकाग्रता बढ़ाने के लिए तथा ध्यान शक्ति (Meditation Power) में वृद्धि के लिए किए जाते हैं। पद्मासन, सिद्धासन व समासन आदि ध्यानात्मक आसन के उदाहरण हैं। इन्हीं आसनों में स्थिर होकर ध्यान किया जाता है।
(2) विश्रामात्मक आसन
अपने नाम के अनुरूप यह आसन थकावट दूर करने के लिए एवं शरीर में ऊर्जा का संचार करने के लिए किए जाते हैं। इन आसनों को करने में व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से शिथिल (Relax) महसूस करता है। शवासन व मकरासन विश्रामात्मक आसन के उदाहरण हैं।
(3) संवर्धनात्मक आसन
इस प्रकार के आसनों का अभ्यास शारीरिक विकास तथा शरीर की सभी क्रियाओं को व्यवस्थित करने के लिए किया जाता है। शीर्षासन, सर्वांगासन, मत्स्यायन, हलासन, भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन, चक्रासन, मयूरासन व सिंहासन आदि संवर्धात्मक आसन के उदाहरण हैं।
विभिन्न आसनों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है-
(1) वज्रासन
विधि-
पूर्व स्थिति - दोनों पैरों को सामने की ओर सीधे रखकर बैठ जाएँ।.
दायें पैर को घुटने से मोड़कर दायें नितम्ब के नीचे रखें।
बायें पैर को घुटने से मोड़कर बायें नितम्ब के नीचे रखें।
कमर, गर्दन एवं सिर को सीधा रखते हुए दोनों पैरों पर इस प्रकार बैठें कि एड़ी खुली हुई तथा दोनों पैर के अंगूठे आपस में मिल जाएँ।
इस दौरान घुटने तथा पैर का निचला भाग जमीन से लगा रहे ।
दोनों हाथों को जंघाओं पर रखें तथा दृष्टि सामने की ओर भूमध्य में अथवा आँखों को कोमलता से बंद रखें।
लाभ-
पिंडली और जंघाओं के लिए उत्तम है।
उपापचय की प्रक्रिया को ठीक करता है।
शरीर को सुडौल बनाता है।
वजन कम करने में मददगार है।
(2) हस्तासन
विधि-
पूर्व स्थिति - पैर मिलाकर सीधे खड़े हो जाएँ।
नसिकाओं से श्वास भरते हुए, दोनों हाथों को सामने से उठाते हुए ऊपर ले जाएँ।
शरीर को ऊपर की ओर खिचाव करें।
श्वास निकालते हुए धीरे-धीरे नीचे लाएँ। कमर को झुकाते हुए दोनों हाथों को पैरों के पास जमीन पर टिका दें। श्वास सामान्य करें।
यथास्थिति रोके तथा पूर्व स्थिति में आ जाएँ।
समय - 30 सेकेण्ड से 2 मिनट तक।
लाभ-
मस्तिष्क को शांत करता है और तनाव व हल्के अवसाद में राहत देता है।
हृदय और गुर्दों को कुशल ढंग से कार्य करने में मदद करता है।
हैमस्ट्रिंग, पिंडली और कूल्हों में जरूरी खिंचाव पैदा करता है।
(3) त्रिकोणासन
विधि-
दोनों पैरों के बीच में लगभग डेढ़ फुट का अंतर रखते हुए सीधे खड़े हो जाएँ। दोनों हाथ कंधों के समानांतर पार्श्व भाग में खुले हुए हों।
श्वास अंदर भरते हुए बायें हाथ को सामने से लेते हुए पंजे के पास भूमि पर टिका दें, अथवा हाथ को एड़ी के पास लगाएँ तथा दायें हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर गर्दन को दायीं ओर घुमाते हुए दायें हाथ को देखें।
लाभ-
यह आसन करने से गर्दन, पीठ, कमर और पैर के स्नायु मजबूत होते हैं।
शरीर का संतुलन ठीक होता है।
पाचन प्रक्रिया ठीक होती है।
(Benefical Yogasanas in the Prevention
and Control of Diabetes)
(1) भुजंगासन
विधि-
दोनों पैरों को आपस में मिलाकर पीछे की ओर अधिक-से-अधिक खिंचाव दें।
दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़कर कंधों के नीचे रखें।
अंगुलियाँ बाहर की ओर तथा आपस में मिली हुई हों।
श्वास भरते हुए, छाती के भाग को धीरे-धीरे उठाएँ।
सिर तथा गर्दन को भी ऊपर की ओर खिंचाव दें।
श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जाएँ।
अधिक देर तक रुकने पर श्वास सामान्य कर सकते हैं।
यह आसन 30 सेकेण्ड से 3 मिनट तक कर सकते हैं।
लाभ-
शरीर में रक्त संचार ठीक करता है जिससे कार्यक्षमता बढ़ती है।
गर्दन व कमर दर्द से छुटकारा मिलता है।
फेफड़ों की शक्ति का विकास होता है जिससे ऑक्सीजन की उचित मात्रा में पूर्ति होती
मांसपेशियों व हड्डियों को लचीला बनाता है।
(2) पश्चिमोत्तानासन
विधि-
पश्चिमोत्तानासन बैठकर शुरू किया जाता है।
अपने पैरों को सीधा, जोड़कर अपने सामने खींचते हुए रखें। दोनों पैरों का रुख छत की तरफ हो।
ध्यान दें कि बैठते समय आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो। कई लोगों को इस बिन्दु पर यह फायदा होता है कि नीचे से मांस को खत्म कर देता है जिससे कि आपकी रीढ़ में घुमाव आए ।
श्वास अंदर लेते समय अपनी बाँहों को सिर में ऊपर की ओर खींचें। हाथों की दिशा के अनुरूप ही अपनी पूरी रीढ़ को खींचें ।
लाभ-
यह पैरों को मजबूत बनाता है।
रीढ़ में खिंचाव पैदा करता है।
मस्तिष्क को शांत रखता है।
तंत्रिका तंत्र को ठीक कर एकाग्रता बढ़ाता है।
(3) पवनमुक्तासन
विधि-
शरीर के नितम्ब भाग के सहारे जमीन पर लेट जाएँ।
दोनों हाथों से दोनों घुटनों को मोड़कर छाती पर रखें।
साँस छोड़ते समय दोनों घुटनों को हाथों से दबाकर छाती से लगाएँ तथा सिर को उठाते हुए घुटनों से नासिका (Nose) से छुएँ।
10 से 30 सेकेण्ड साँस को बाहर रोकते हुए इसी स्थिति में रहकर फिर पैरों को सीधा कर यह आसन 2 से 5 बार तक करें।
30 सेकेण्ड से 2 मिनट।
लाभ-
इस आसन का पूरा प्रभाव पेट पर पड़ता है अतः पेट की पाचन, अवशोषण व निष्कासन की क्रियाओं को ठीक करता है।
शरीर में उत्पन्न वायु पर नियन्त्रण करता है तथा अपान वायु का निष्कासन आसानी से होता है।
घुटनों के जोड़ों में लचीलापन उत्पन्न करता है।
अस्थमा के बचाव तथा नियन्त्रण में लाभकारी योगासन (Beneficial Yogasanas in the Prevention and Control of Asthma)
(1) चक्रासन
विधि-
दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर एड़ियों से नितम्बों को स्पर्श करते हुए रखें।
दोनों हाथों को मोड़कर कन्धों के पीछे रखें। हाथों के पंजे की अन्दर की ओर मुड़े रहें।
हाथों और पैरों के ऊपर पूरे शरीर को धीरे-धीरे ऊपर उठा दें।
हाथ और पैरों में आधे फुट का अन्तर रहे तथा सिर दोनों हाथों के बीच में रहे।
शरीर को ऊपर की ओर अधिक-से-अधिक खिंचाव दें जिससे कि चक्राकार बन जाए।
यह आसन 30 सेकेण्ड से 2 मिनट तक करें।
लाभ-
यह आसन विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी है क्योंकि पूरे शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है, जिससे रक्त संचार, मांसपेशियों व हड्डियों में लचीलापन आता है।
शरीर सुन्दर व सुडौल बनता है।
शरीर की लम्बाई बढ़ती है।
कमर दर्द को दूर करता है। इसलिए पढ़ने वाले विद्यार्थियों व कम्प्यूटर पर काम करने वालों के लिए विशेष रूप से लाभदायक है।
(2) गोमुखासन विधि-
सुखासन की स्थिति में बैठ जाएँ।
अब बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने नितम्ब के पास रखें।
दायें पैर को मोड़कर बायें पैर के ऊपर इस प्रकार रखें कि दायें पैर का घुटना बायें पैर के ऊपर रहे तथा एड़ी और पंजे का भाग नितंब को स्पर्श करे।
अब बाएँ हाथ को पीठ के पीछे मोड़कर हथेलियों को ऊपर की ओर ले जाएँ।
दाहिने हाथ को दाहिने कंधे पर सीधा उठा लें और पीछे की ओर घुमाते हुए कोहनी से मोड़कर हाथों को परस्पर बाँध लें। अब दोनों हाथों को धीरे से अपनी दिशा में खींचें।
अपने मुड़े हुए दाहिने हाथ को ऊपर की ओर अपनी क्षमतानुसार तानकर रखें।
शरीर को सीधा रखें।
श्वास नियन्त्रित रखें और इस अवस्था में यथाशक्ति रुकने का प्रयास करें।
इस आसन को हाथ और पैर को बदलकर पाँच बार करें।
अंत में धीरे-धीरे श्वास छोड़कर क्रमश: फिर से सुखासन की स्थिति में बैठ जाएँ।
लाभ-
यह आसन करने से शरीर सुडौल, लचीला और आकर्षक बनता है।
वजन कम करने के लिए यह आसन उपयोगी है।
गोमुखासन मधुमेह रोग में अत्यंत लाभकारी है।
निम्न रोगों में भी यह आसन लाभकारी हैं-
गठिया
साइंटिका
अपचन
कब्ज
धातु रोग
मन्दाग्नि
पीठदर्द
लैंगिक विकार
प्रदर रोग
बवासीर।
(3) पर्वतासन
विधि-
फर्श पर आराम से बैठ जाएँ।
श्वास को अंदर लेकर मूलबंध करके दोनों हाथों को ऊपर की तरफ सीधे खड़े कर लें।
साँस को जितनी देर तक रोक सकते हैं रोके फिर साँस धीरे-धीरे छोड़ते हुए अपने हाथों को नीचे की ओर लाते हुए अपने घुटनों पर रख लें और अपने शरीर को वापिस पहले वाली अवस्था में ले आएँ।
लाभ-
दमे के रोगियों के लिए पर्वतासन बहुत ही लाभदायक है।
टांग व घुटने मजबूत होते हैं।
कंधों में दर्द अथवा अकड़न की परेशानी दूर होती है।
जिनका शरीर टेढ़ा हो या जो झुककर चलते हैं, उनके लिए यह आसन विशेष रूप से लाभदायक है।
(Yogasanas Beneficial in the Prevention
and Control of Blood Pressure)
(1) सज्रासन
विधि-
पूर्व स्थिति - दोनों पैरों को सामने की ओर सीधे रखकर बैठ जाएँ।
दायें पैर को घुटने से मोड़कर दायें नितम्ब के नीचे रखें।
बायें पैर को घुटने से मोड़कर बायें नितम्ब के नीचे रखें।
कमर, गर्दन एवं सिर को सीधा रखते हुए दोनों पैरों को इस प्रकार बैठे कि एड़ी खुली हुई तथा दोनों पैर के अंगूठे आपस में मिल जाएँ।
इस दौरान घुटने तथा पैर का निचला भाग जमीन से लगा रहे।
दोनों हाथों को जंघाओं पर रखे तथा दृष्टि सामने की ओर भूमध्य में अथवा आँखों को कोमलता से बंद रखें।
लाभ-
पिंडली और जंघाओं के लिए उत्तम है।
उपापचय की प्रक्रिया को ठीक करता है।
शरीर को सुडौल बनाता है।
वजन कम करने में मददगार है।
(2) ताड़ासन
विधि-
एक समतल जगह पर अपने दोनों पैरों को आपस में मिलाकर और दोनों हथेलियों को बगल में रखकर सीधे खड़े हो जाएँ।
दोनों हाथों को पार्श्वभाग से दीर्घ श्वास भरते हुए ऊपर उठाएँ।
हाथों को ऊपर ले जाकर हथेलियों को मिलायें और हथेलियाँ आसमान की तरफ ऊपर की ओर होनी चाहिए। हाथों की उंगलियाँ आपस में मिली होनी चाहिए।
जैसे-जैसे हाथ ऊपर उठे वैस-वैसे पैर की एड़ियाँ भी ऊपर उठी रहनी चाहिए।
हाथ ऊपर उठाते समय पेट अंदर लेना चाहिए।
शरीर का भाग पंजों पर होना चाहिए।
शरीर ऊपर की ओर पूरी तरह से तना रहना चाहिए।
कमर सीधी नजर सामने की ओर गर्दन सीधी रखनी चाहिए।
ताड़ासन की इस स्थिति में लम्बी साँस भरकर 1 से 2 मिनट तक रुकना चाहिए।
अब धीरे-धीरे साँस छोड़कर नीचे आकर पूर्व स्थिति में आना चाहिए।
1 से 2 मिनट रुककर दोबारा इसी क्रिया को दोहराएँ।
इस आसन को प्रतिदिन क्षमता और अभ्यास अनुसार 10 से 15 बार करें।
लाभ-
दीर्घ श्वसन से फेफड़े सुदृढ़ एवं विस्तृत होते हैं।
पैर और हाथ के स्नायु मजबूत बनते हैं।
शारीरिक और मानसिक संतुलन बढ़ता है।
आत्मविश्वास बढ़ता है।
पाचन तंत्र मजबूत बनता है।
(3) पवनमुक्तासन
विधि-
शरीर के नितम्ब भाग के सहारे जमीन पर लेट जाएँ।
दोनों हाथों से दोनों घुटनों को मोड़कर छाती पर रखें।
साँस छोड़ते समय दोनों घुटनों को हाथों से दबाकर छाती से लगाएँ तथा सिर को उठाते हुए घुटनों से नासिका (Nose) से छुएँ।
10 से 30 सेकेण्ड साँस को बाहर रोकते हुए इसी स्थिति में रहकर फिर पैरों को सीधा कर यह आसन 2 से 5 बार करें।
30 सेकेण्ड से 2 मिनट।
लाभ-
इस आसन का पूरा प्रभाव पेट पर पड़ता है अतः पेट की पाचन, अवशोषण व निष्कासन की क्रियाओं को ठीक करता है।
शरीर में उत्पन्न वायु पर नियन्त्रण करता है तथा अपान वायु का निष्कासन आसानी से होता है।
घुटनों के जोड़ों में लचीलापन उत्पन्न करता है।
(Pranayama)
प्राणायाम का अर्थ - प्राणायाम का अर्थ है साँस का नियन्त्रण व नियमन प्राण एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'आवश्यक शक्ति इसका अर्थ जीवन या साँस भी है। अयाम का अर्थ है प्राणों पर काबू पाना अर्थात् जीवन शक्ति पर ध्यान नियमित साँस द्वारा नियन्त्रण करना।
प्राण एक आवश्यक शक्ति है जो पृथ्वी के प्रत्येक तत्त्व को प्रेरित करने वाली शक्ति है तथा विचार शक्ति को जन्म देती है। मानसिक बल और प्राण, मानसिक बल और बुद्धि तथा आत्मा और बुद्धि तथा आत्मा व परमात्मा में गहरा सम्बन्ध है। प्राण न केवल शरीर के कार्यों (ग्रंथि - तंत्र को भी ) को सुचारू रूप से चलाते हैं बल्कि मन को नियन्त्रित व नियमित करते हैं। आधुनिक मनुष्य जिन व्याधियों व मानसिक परेशानियों का शिकार है. यह उनका उपचार करती है।
निम्न से उच्च श्रेणी के प्राणियों में प्राण जीवन शक्ति के रूप में विद्यमान है। सभी शक्तियाँ प्राणों पर टिकी हैं यह हिलने-जुलने, गुरुत्व, चुम्बकीय शक्ति, शारीरिक हरकत, नर्व करंट तथा विचारों की शक्ति को जन्म देता है। प्राणों के बिना जीवन सम्भव नहीं यह सारे बलों व ऊर्जाओं की आत्मा है। यह हवा, जल व भोजन में पाया जाता है। यह प्रत्येक जीवित प्राणी के अन्दर आवश्यक शक्ति है। जब हम अन्दर लेते हैं तथा फेफड़ों द्वारा ली गई हवा प्राणों की अभिव्यक्ति है। यह सिर्फ साँस लेना ही नहीं बल्कि प्राणों द्वारा फेफड़ों की ऊर्जा से पेशीय बल मिलता है।
विचारों को केन्द्रित करके नियमित साँस लेने को प्राणायाम कहते हैं। इसी द्वारा शरीर के प्रत्येक अंग में प्राण डाले जाते हैं। एक बार व्यक्ति प्राणायाम में दक्ष हो जाए तो वह शरीर का स्वामी बन जाता है तथा बीमारी व दुःखों पर नियन्त्रण पा लेता है। मन के केन्द्रित होने से ही प्राण एकत्र होते हैं।
विचार ही प्राण ऊर्जा को नियन्त्रित करते हैं। जैसे हम गलत व निराशावादी विचार सोच-सोच कर बीमार होते हैं। इसी तरह उनके स्थान पर अच्छे व आशावादी विचार सोच कर हम स्वयं का उपचार कर सकते हैं। हमारे जीवन का यह महत्त्वपूर्ण पहलू है। स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इसकी बेहद जरूरत पड़ती है। जैसे वायु वातावरण की दूषित हवा व धुएं को बहा लेती है वैसे ही प्राणायाम हमारे शरीर मन से अशुद्धियाँ दूर करता है।
प्राणायाम के उद्देश्य
शरीर में रहने वाली आवश्यक शक्ति (vital force) को उत्प्रेरित, नियमित तथा संतुलित बनाना ही प्राणायाम का उद्देश्य है। यह शरीर को पवित्र करके ज्ञान का संचार करती है। इसे आत्मा का योग कहा गया है। जैसे शरीर को स्वच्छ रखने के लिए नहाना जरूरी है वैसे ही मन की शुद्धि के लिए प्राणायाम आवश्यक है जैसे सोना व अन्य धातुएँ अग्नि में पिघल कर शुद्ध होती हैं वैसे ही प्राणायाम द्वारा शरीर की इन्द्रियाँ (Sense Organs) पवित्र होते हैं। प्राणायाम तंत्रिका तंत्र (nervous system) को भी मजबूती देता है। यह मन को केन्द्रित करने की शक्ति बढ़ाता है।
प्राणायाम के मुख्य घटक - निम्नलिखित हैं-
पुरक (Puraka) का अर्थ है साँस अन्दर लेना।
रचक (Rechaka) का अर्थ है साँस बाहर छोड़ना।
कुम्भक (Kumbhaka) का अर्थ है साँस रोकना।
(Types of Pranayama)
सूर्य भेदना प्राणायाम
शीतकारी प्राणायाम
भास्तरिका प्राणायाम
मूर्छा प्राणायाम
उजयी प्राणायाम
शीतली प्राणायाम
भ्रमरी प्राणायाम
कपालबाती प्राणायाम
समवृत्ति प्राणायाम
प्लाविनी प्राणायाम
नाड़ी शोधन प्राणायाम
(Difference between Asana and Physical Exercise)
वर्तमान पश्चिमी संस्कृति में, आसन और व्यायाम आकार में रहने के लोकप्रिय तरीके हैं, लेकिन अंतिम लक्ष्य और आपके मन और शरीर पर होने वाले विशिष्ट लाभों के सम्बन्ध में दोनों में कई अंतर हैं।
हठ योग में आसन का अंतिम उद्देश्य समाधि तक पहुँचना है, चेतना की एक उच्च अवस्था । मन को शुद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि शरीर की अशुद्धियों को दूर करने के लिए शुद्धीकरण की प्रक्रिया से गुजरना पड़े ताकि नाड़ियाँ कार्य करें और ऊर्जा ब्लॉक मुक्त हों। हठ योग आसन का मुख्य उद्देश्य भौतिक शरीर, मन और ऊर्जा की अंतःक्रियात्मक गतिविधियों और प्रक्रियाओं का पूर्ण संतुलन बनाना है। जब यह संतुलन बनाया जाता है, तो उत्पन्न आवेग केन्द्रीय बल (सुषुम्ना नाड़ी) को जागृति का आह्वान देते हैं जो मानव चेतना के विकास के लिए जिम्मेदार है। यदि इस उद्देश्य के लिए हठ योग आसन का उपयोग नहीं किया जाता है, तो इसका वास्तविक उद्देश्य खो जाता है।
व्यायाम का अंतिम उद्देश्य एरोबिक गतिविधि का अभ्यास करके समग्र शारीरिक फिटनेस स्तर और स्वास्थ्य में सुधार करना है, जो हृदय गति को बढ़ाता है। व्यायाम मांसपेशियों और हृदय प्रणाली को मजबूत कर सकता है, एथलेटिक कौशल में सुधार कर सकता है और वजन घटाने में सहायता कर सकता है। नियमित व्यायाम प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा दे सकता है और मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार कर सकता है जैसे अवसाद को रोकना और सकारात्मक आत्म-सम्मान को बढ़ावा देना / बनाए रखना। इसके अलावा, विभिन्न खेलों के रूप में व्यायाम का प्रतिस्पर्धात्मक रूप से अभ्यास किया जा सकता है और इसका उद्देश्य खेल के भीतर सर्वश्रेष्ठ होना है, जो व्यक्ति के प्रदर्शन के लिए बाहरी चालक हो सकता है।
व्यायाम और आसन के भौतिक पहलुओं के बीच कई समानताएँ हैं और इसलिए वे आवश्यक रूप से अलग अभ्यास नहीं हैं क्योंकि आसन को व्यायाम का रूप माना जा सकता है। फिटनेस के एक रूप में, आसन ताकत, लचीलापन, संतुलन और कार्यात्मक आंदोलन कौशल बनाने में उत्कृष्ट है। और एक मन / शरीर के तौर-तरीके के रूप में, आसन तनाव को दूर करने, लोगों को चिकित्सा उपचार से निपटने में मदद करने, दैनिक जीवन में अर्थ खोजने और उनके शरीर के साथ अधिक सकारात्मक सम्बन्ध बनाने की क्षमता में अद्वितीय है। व्यथित श्वास पैटर्न को सुधारने और सामान्य करने के लिए शानदार ढंग से काम करता है, जो किसी व्यक्ति को सहानुभूति तंत्रिका तंत्र के कर 'लड़ाई या उड़ान' मोड से स्थानांतरित करने और होमोस्टैसिस प्राप्त करने के लिए पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र के 'आराम और पाचन' मोड को बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। आसन और व्यायाम के बीच अंतर योग या अभ्यास के प्रकार पर निर्भर करेगा और यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कुछ प्रकार के योग जैसे अष्टांग अन्य रूपों की तुलना में अधिक जोरदार हैं और इसलिए व्यायाम के साथ अधिक समानताएँ साझा करते हैं। हालाँकि, सामान्य शारीरिक अंतर नीचे दिए गए हैं-
1. आसन पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है (इसलिए आराम करता / व्यायाम सहानुभूति तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है (इसलिए थका देने वाला) ।
2. आसन में, मस्तिष्क के उप-क्षेत्रीय हावी होते हैं/व्यायाम में मस्तिष्क के प्रांतिक क्षेत्र हावी होते हैं।
3. उपचय है जो ऊर्जा का संरक्षण करता है/ व्यायाम अपचय है जो ऊर्जा को तोड़ने में सक्षम है।
4. आसन धीमी गति से चलने वाली गतियाँ / व्यायाम में तीव्र बलवान गतियाँ शामिल हैं।
5. आसन ने मांसपेशियों के तनाव को कम किया, प्रगतिशील गतियों / व्यायाम में मांसपेशियों में तनाव में वृद्धि शामिल है।
6. मांसपेशियों और स्नायुबन्धन को चोट लगने का कम जोखिम / व्यायाम से चोट लगने का खतरा अधिक होता है।
7. आसन से अपेक्षाकृत कम कैलोरी खपत होती है/ व्यायाम से मध्यम से उच्च कैलोरी खपत होती है।
8. आसन में, स्फूर्तिदायक (श्वास स्वाभाविक या नियन्त्रित है) / व्यायाम थकाऊ (श्वास पर कर लगता है)।
9. आसन गैर-प्रतिस्पर्धी, प्रक्रिया उन्मुख है / व्यायाम आमतौर पर प्रतिस्पर्धी, लक्ष्य उन्मुख है।
10. आसन में, जागरूकता आंतरिक है (साँस और अनंत पर ध्यान केन्द्रित है) / व्यायाम में, जागरूकता बाहरी है (ध्यान पैर की उँगलियों तक पहुँचने, अंतिम रेखा तक पहुँचने आदि पर है)।
11. आसन में आत्म जागरूकता में वृद्धि की असीम सम्भावनाएँ हैं/ व्यायाम में आमतौर पर आत्म- जागरूकता का कोई पहलू नहीं होता है।
आसन और व्यायाम के अभ्यास के सम्बन्ध में अन्य मतभेद भी स्पष्ट हैं। सामान्य तौर पर, योग इस मायने में आत्मनिर्भर है कि इसे कहीं भी, कभी भी पर्याप्त स्थान की न्यूनतम आवश्यकता के साथ अभ्यास किया जा सकता है; एक योग चटाई एक पूर्व- आवश्यकता भी नहीं है। दूसरी ओर व्यायाम के लिए आम तौर पर उपकरण की आवश्यकता होती है और इसलिए एक निश्चित वातावरण (जैसे जिम / स्पोर्ट्स क्लब) के भीतर अभ्यास करने के लिए विवश है और अन्य लोगों को भाग लेने की आवश्यकता हो सकती है जैसे कि समूह / साथी के खेल में।
अंत में, योग और व्यायाम दोनों ही शारीरिक और (कुछ हद तक मानसिक) लाभों के सन्दर्भ में तुलनीय हैं, लेकिन व्यायाम केवल भौतिक शरीर के रखरखाव और सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने तक ही सीमित है, जबकि योग में आधारित है प्राचीन हिन्दू परंपरा।
(Difference between Pranayama
and Deep Breathing)
यह श्वास श्वसन क्रिया से सम्बन्धित है, जिसे दो शब्दों में समझाया जा सकता है: साँस लेना तथा साँस छोड़ना । श्वसन को दैहिक क्रिया माना जा सकता है, जिसमें ऑक्सीजन तथा कार्बनडाइ ऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है। किन्तु योग के ग्रंथ कहते हैं कि श्वसन ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइ ऑक्साइड के आदान-प्रदान से भी अधिक है। श्वसन एवं श्वास में अन्तर है। श्वसन शारीरिक प्रक्रिया है किन्तु श्वास व्यक्ति के जीवन तथा बाहर की विराट प्रकृति से सम्बन्धित है। यह समझने से जीवन को अधिक सार्थक रूप से नियमित करने में सहायता होगी तथा स्वास्थ्य, सौहार्द एवं आनंद प्राप्त होगा। श्वास एवं प्राणायाम दो भिन्न किन्तु आपस में जुड़े हुए विचार हैं। जीवनी शक्ति प्राण श्वास पर निर्भर करती है। श्वास के बिना प्राण नहीं होंगे। प्राणायाम क्रिया शरीर एवं मस्तिष्क के मध्य सेतु का कार्य करती है। शरीर एवं मस्तिष्क प्राण के माध्यम से एक-दूसरे से संचार करते हैं। प्राणायाम में वायु के प्रवाह में परिवर्तन के माध्यम से मस्तिष्क को प्रभावित करता है और मस्तिष्क भी ऐसा ही करता है। जैसा कि पहले कहा गया है, श्वास की गति एवं आवर्तन प्राण को प्रभावित करती है। इससे संकेत मिलता है कि प्राणायाम (प्राणमयकोश) को प्रभावित कर श्वास की गति एवं आवर्तन देह (अन्नमयकोश) तथा मस्तिष्क (मनोकयकोश) को प्रभावित करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्राण, शरीर एवं मस्तिष्क के अस्तित्व हेतु श्वास अत्यावश्यक है तथा प्राणायाम उसे उन्नत स्तर पर पहुँचाकर व्यक्ति को अधिक स्फूर्तिमान व स्वस्थ बनाता है।
[Meaning of Asana (Posture)]
आसन का अर्थ है शरीर को विशेष मुद्रा में रखना जिससे शरीर को स्थायित्व तथा मन को ठहराव मिले। आसन करने से नाड़ियों व आंतों में सफाई, शरीर में ठोसाकार तथा शरीर व मन को शक्ति मिलती है।
शरीर के आन्तरिक व बाहरी हिस्सों को तंदरुस्त रखने में योगासन सादी क्रियाएँ हैं। जब तक शरीर के आन्तरिक तथा बाह्य अंग अच्छी हालत में न हों तब तक कोई गतिविधि नहीं हो सकती। शरीर और मन में गहरा सम्बन्ध है । पुरातन ग्रीस के लोग इस सिद्धान्त में विश्वास करते थे, 'स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन होता है।' आसनों के अभ्यास से व्यक्ति की शारीरिक विकलांगताएँ तथा मानसिक कमियाँ दूर हो जाती हैं। यह शरीर, मन और आत्मा की सम्पूर्ण संतुलन वाली अवस्था है।
आसन का अर्थ है उस अवस्था का होना जहाँ ठीक, शांत, आरामदायक शरीर व मन रहे। योगासनों का अभ्यास इसलिए किया जाता है कि लम्बे समय तक जैसे ध्यान में जरूरत होती है। कष्ट के बिना बैठने की योग्यता प्राप्त की जा सके।
(Suraya-Namaskar)
परिचय - सूर्य नमस्कार का मानव शरीर पर शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव वैज्ञानिक दृष्टि से होने के कारण इसे पूरक अध्ययन सामग्री में सम्मिलित किया गया है। आज के भौतिकवादी यांत्रिक युग में जहाँ चारों और प्रतिस्पर्धा के चलते मानव तनाव ग्रस्त होने जा रहा है। असंतुलित दिनचर्या, प्रदूषित वातावरण, मिलावटी आहार एवं मिलावटी सौन्दर्य प्रसाधन की सामग्रियाँ, कीटनाशक रसायनों से उत्पादित आहार (फल - फ्रूट), जंकफूड, मैदा से निर्मित तले हुए तेज मिर्च मसालों से निर्मित भोजन सामग्री के सेवन, व्यसनों के सेवन से मनुष्य अस्वस्थ होता जा रहा है।
ऐसे में सूर्य नमस्कार पद्धति द्वारा सम्पूर्ण शरीर का पूर्ण व्यायाम होने के कारण इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, सकारात्मक भाव उत्पन्न होते हैं एवं शरीरस्थ अंग अवयवों का सूक्ष्म व्यायाम होने के कारण लाभ प्राप्त होता है।
(Necessary Rules and Precautions
in Surya Namaskar Method)
सूर्य नमस्कार पद्धति में स्थान, काल, परिधान, आयु सम्बन्धी आवश्यक नियमों का वर्णन किया जा रहा है।
अष्टांग योग में वर्णित 5 प्रकार के यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) का पालन करना चाहिए।
5 प्रकार के नियमों (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान) का पालन करना चाहिए।
प्रातः शौच के पश्चात् स्थानोपरान्त सूर्य नमस्कार करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार के समय ढीले कपड़े पहनने चाहिए।
चाय, कॉफी, तम्बाकू, शराबादि, मादक द्रव्य एवं मांसाहार तथा तामसिक आहार सेवन नहीं करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार खाली पेट करना चाहिए।
खुले स्थान पर शुद्ध सात्विक, निर्मल स्थान पर, प्राकृतिक वातावरण में (शुद्ध जलवायु ) सूर्य नमस्कार करना चाहिए।
ज्वर, तीव्र रोग या ऑपरेशन के बाद 4-5 दिन बाद तक सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार सदैव सूर्य की ओर मुँह करके करना चाहिए।
जहाँ तक सम्भव हो सूर्य नमस्कार प्रातः काल 6-7 बजे के बीच करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार विद्युत का कुचालक चटाई, कम्बल या दरी पर करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार प्रतिदिन नियमपूर्वक मंत्रोच्चारण सहित करना चाहिए।
(Benefits of Surya Namaskar Method)
सूर्य नमस्कार लाभ का मंत्र
"आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञाबलंवीर्यं तेजस्तेषां च जायते ।।
अकालकृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
सूर्यपादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम् ।।"
अर्थात् जो प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं उनकी आयु, बुद्धि, बल, वीर्य एवं तेज (ओज) बढ़ता है। अकाल मृत्यु नहीं होती है तथा सभी प्रकार की व्याधियों का नाश होता है। सूर्य नमस्कार' एक सम्पूर्ण व्यायाम है।
शरीर के समस्त अंग-प्रत्यंग बलिष्ठ एवं नीरोग होते हैं।
सूर्य नमस्कार से मेरुदण्ड एवं कमर लचीली बनती है।
उदर, आन्त्र, आमाशय, अग्नाशय, हृदय, फुफ्फुसरहित सम्पूर्ण शरीर को स्वस्थ बनाता है।
हाथ-पैर भुजा, जंघा - कंधा आदि सभी अंगों की मांसपेशियाँ पुष्ट एवं सुन्दर होती हैं।
मानसिक शांति एवं बल, ओज एवं तेज की वृद्धि करता है।
मधुमेह, मोटापा, थायराइड आदि रोगों में विशेष लाभदायक है। आत्म विश्वास में वृद्धि, व्यक्तित्व विकास में सहायक है।
चेहरा तेजस्वी, वाणी सुमधुर एवं ओजस्वी होती है।
गले के रोग मिटते हैं एवं स्वर अच्छा रहता है।
शरीर एवं मन दोनों स्वस्थ बनते हैं।
मोटी कमर को पतली एवं लचीली बनाता है।
धातुक्षीणता में लाभदायक है।
रज-वीर्य, दोषों को मिटाता है, महिलाओं में मासिक धर्म को नियमित करता है।
रक्त परिभ्रमण सम्यक् होता है, जिससे मुँह की कांति एवं शोभ बढ़ती है।
शरीर की अनावश्यक मेद (चर्बी कम होती है।
फुफ्फुसों की कार्य क्षमता बढ़ती है।
हृदय की मांसपेशियाँ एवं रक्तवाहिनियाँ स्वस्थ होती हैं।
रक्त संचार की गति तेज होने से विजातीय तत्व शरीर से बाहर निकलते हैं।
शरीर के सभी अंगों को पोषण प्राप्त होता है।
(Pranayama)
महर्षि पतंजलि के अनुसार - "प्राणायाम के द्वारा मनुष्य अपनी आत्मा के प्रकाश को ग्रहण कर सकता है।" प्राणायाम एक वैज्ञानिक विधि है, जिसका अर्थ है श्वास-प्रक्रिया को नियन्त्रित करके अपने जीवन या प्राणों की वृद्धि करना । प्राणायाम द्वारा जीवनशक्ति को बढ़ाया जाता है। प्राणायाम की प्रक्रिया श्वसन क्रिया पर आधारित है। प्रत्येक मनुष्य नाक के दोनों छिद्रों से साँस ग्रहण करने और निकालने की क्रिया करता है। इसमें दाहिना छिद्र सूर्य नाड़ी और बायाँ छिद्र चन्द्र नाड़ी का प्रवाह कहलाता है। इन दोनों प्रवाहों के मिलने से जो तीसरा प्रवाह बनता है, से सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं। जब इन दोनों नाड़ियों के प्रवाह में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है, तब मनुष्य अनेक रोगों का शिकार हो जाता है। प्राणायाम द्वारा इन दोनों नाड़ियों में सन्तुलन बनाए रखकर रोगों से बचा जा सकता है।
प्राणायाम करने की विधि - प्राणायाम करते समय पद्मासन या सिद्धासन की स्थिति में बैठना चाहिए। फिर मन को एकाग्रचित्त करके, आँखें बन्द करके, नाक के दाएँ छिद्र को बन्द करके बाएँ छिद्र से अन्दर साँस खींचनी चाहिए। जब फेफड़े प्राणवायु से भर जाएँ तब नाक के बनाए छिद्र को बन्द करके दाएँ छिद्र से वायु बाहर निकालनी चाहिए। यह प्रक्रिया 15-20 बार दोहरानी चाहिए।
प्राणायाम के पद - प्राणायाम के तीन पद हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1. पूरक - पद्मासन की स्थिति में नाक द्वारा वायु को धीरे-धीरे अन्दर खींचने की क्रिया 'पूरक' कहलाती है।
2. कुम्भक - वायु को फेफड़ों में देर तक रोके रखने की प्रक्रिया 'कुम्भक' कहलाती है।
3. रेचक - वायु को नाक के द्वारा धीरे-धीरे बाहर निकाल की क्रिया को रेचक कहते हैं। प्राणायाम के लाभ - प्राणायाम के निम्नलिखित लाभ हैं-
1. प्राणायाम करने से नाड़ियाँ शुद्ध होती हैं तथा मन स्थिर और एकाग्र रहता है।
2. प्राणायाम से फेफड़े स्वस्थ और सशक्त होते हैं।
3. प्राणायाम से शरीर में ऊर्जा की वृद्धि होती है और सभी अंग गतिशील रहते हैं।
4. प्राणायाम से जीवनशक्ति बढ़ती है तथा शरीर नीरोग रहता है।
5. प्राणायाम से स्नायुमण्डल सन्तुलित रूप से क्रियाशील रहता है और मस्तिष्क सम्बन्धी विकार दूर होते हैं।
6. प्राणायाम रक्त संचार को नियमित करता है।
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