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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2735
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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग - सरल प्रश्नोत्तर

इकाई-2
स्वास्थ्य और कल्याण की अवधारणा
(Concept of Fitness and Wellness)

अध्याय - 4
फिटनेस और वेलनेस का अर्थ, परिभाषा और
महत्व, फिटनेस के घटक और फिटनेस एवं
वेलनेस को प्रभावित करने वाले कारक
(Meaning, Definition and Importance of
Fitness and Wellness, Components of
Fitness and Factors Affecting
Fitness and Wellness)

स्वास्थ्य शब्द 'हेल्थ' से प्राप्त किया गया शब्द है, यह एक पुराना अंग्रेजी शब्द है जिसका अर्थ है 'पूरे होने की अवस्था'।

पिंडर के अनुसार - “अंगों के सामंजस्यपूर्ण काम-काज को ही स्वास्थ्य कहा जाता है।" यह परिभाषा मुख्यतया स्वास्थ्य के शारीरिक पहलू पर ध्यान केन्द्रित करती है जिसमें शारीरिक अंगों के कामकाज के साथ-साथ दर्द और आराम का अनुभव भी सम्मिलित है। हिप्पोक्रेट्स ने व्यक्ति की जीवन-शैली और पर्यावरणीय कारकों में जलवायु परिस्थितियों, वायु गुणवत्ता, जीवन शैली की आदतों, पानी और भोजन की गुणवत्ता के सम्बन्ध में स्वास्थ्य का वर्णन किया है। 'सकारात्मक स्वास्थ्य' शब्द उनके द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जो कि आहार के साथ-साथ व्यायाम पर भी ध्यान केन्द्रित करता है।

स्वास्थ्य पर्यावरणीय प्रभावों के साथ समायोजित करने की किसी व्यक्ति की क्षमता के बारे में भी बताता है। इस प्रकार, अगर वह अनुकूलन करने में सक्षम नहीं है, तो वह कुछ बीमारी का अनुभव कर सकता है/सकती है या एक बीमारी विकसित कर सकता/सकती है। स्वास्थ्य की अधिकांश आधुनिक परिभाषाएँ असंतुष्टों की अनुपस्थिति के रूप में नहीं है, बल्कि स्वयं की प्राप्ति और पूर्ति के लिए एक बढ़ी हुई क्षमता है। यह एक ऐसी स्थिति के रूप में समझाया गया है जिसमें व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्तर पर पर्याप्त रूप से कार्य करने में सक्षम होता है और वातावरण के सन्दर्भ में अपनी क्षमता को व्यक्त करने में सक्षम होता है, जिसके भीतर वह मौजूद है। 

वर्ष 1946 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार-  “स्वास्थ्य पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक भलाई की स्थिति और रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति को कम नहीं करता है ।" बाद में इसके 1998 विचार में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फिर से अपनी परिभाषा और स्वास्थ्य को 'पूर्ण शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक भलाई की एक गतिशील स्थिति के रूप में और केवल बीमारी की अनुपस्थिति' के रूप में संशोधित किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा दिए गए स्वास्थ्य परिभाषाओं के बिन्दु निम्नलिखित हैं-

(i) स्वास्थ्य बीमारी या लक्षणों की अनुपस्थिति के बराबर नहीं है,

(ii) स्वास्थ्य प्रकृति में गतिशील है,

(iii) न केवल आपका शारीरिक कल्याण बल्कि आपकी मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक भलाई भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, और,

(iv) हमारा स्वास्थ्य चार आयामों का संयोजन है; शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक। 

स्वास्थ्य और बीमारी की निरन्तरता
(Health and Illness Continuity)

स्वास्थ्य बीमारी की निरंतरता जॉन ट्रैविस द्वारा वर्ष 1972 में शुरू की गई थी और इसे स्वास्थ्य को चित्रमय प्रतिनिधित्व के रूप में समझाया जा सकता है। यहाँ स्वास्थ्य बीमारी का अभाव नहीं है बल्कि स्वस्थ मानसिक और संवेगात्मक स्थिति को दर्शाता है। जैसा कि निम्नांकित चित्र में देखा जा सकता है, चित्र में दो तीर हैं जो मध्य बिन्दु को इंगित करते हुए 'तटस्थ बिन्दु' के साथ विपरीत दिशा में चलते हैं। तटस्थ बिन्दु बीमारी की अनुपस्थिति तथा स्वास्थ्य की उपस्थिति को बताता है। जैसा कि हम चित्र के बाई ओर बढ़ते हैं, अर्थात्, समय से पहले मृत्यु की ओर, हम देख सकते हैं कि तीन चरण हैं, अर्थात्, संकेत, लक्षण और दिव्यांगता जो कि समय से पहले मृत्यु का कारण बनते हैं, इस प्रकार स्वास्थ्य के बिगड़ने वाले दिशा का संकेत देते हैं और अंत में समय से पहले मृत्यु हो जाती है। दूसरी ओर, जैसे-जैसे हम चित्र के दाहिने की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे कदम जागरूकता, शिक्षा, विकास के रूप में सामने आते हैं, जिससे भलाई होती है। इस प्रकार यह किसी व्यक्ति के बढ़ते कल्याण या स्वास्थ्य को दर्शाता है। यह चित्र उपचार प्रतिमान को भी दर्शाता है जो यह बताता है कि यदि पर्याप्त उपचार दिया जाता है तो व्यक्ति को तटस्थ बिन्दु पर वापस लाया जा सकता है।

स्वास्थ्य और बीमारी की निरंतरता के अनुसार, स्वास्थ्य गतिशील है। हमारा स्वास्थ्य एक निरंतरता के भीतर आगे और पीछे चलता है, एक छोर पर इष्टतम स्वास्थ्य या उच्चतम स्वास्थ्य और इसके दूसरे छोर पर अकाल मृत्यु या पूर्ण दिव्यांगता। एक दिन आप ऊर्जावान अनुभव कर सकते हैं, दूसरे को पूरे दिन सिरदर्द हो सकता है, जबकि तीसरे दिन आप फिर से ठीक अनुभव कर सकते हैं। ये स्थितियाँ बताती हैं कि हमारी लम्बाई कभी भी स्थिर नहीं रहती हैं और यह किसी के जीवन में परिवर्तन या उतार-चढ़ाव करती हैं। इस मॉडल के अनुसार, चूँकि हमारा स्वास्थ्य लगातार बदलता रहता है। इसलिए, हमारा अनुकूलन या प्रतिक्रिया सबसे अधिक मायने रखती है क्योंकि यह हमारे स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती है। उसी तनावपूर्ण स्थिति के लिए, एक व्यक्ति सकारात्मक प्रतिक्रिया दे सकता है जबकि दूसरा व्यक्ति चिंतित हो सकता है। जिस व्यक्ति ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी, उसका स्वास्थ्य दूसरे से बेहतर होगा।

मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण के बीच सह-सम्बन्ध
(The Correlation between Mental Health and Well being)

परम्परागत रूप से मनोविज्ञान मानवीय कमजोरी, पीड़ा और मानसिक बीमारी के अध्ययन तक ही सीमित रहा है। इसने ज्यादातर इस बारे में समाधान किया है कि व्यक्तियों के साथ क्या गलत है व्यक्ति में क्या समुचित रूप से काम नहीं कर रहा है। निश्चय ही इसने इस क्षेत्र की समझ में काफी योगदान दिया है। हालाँकि मनोविज्ञान का एक लक्ष्य यह भी है कि इस बात पर ध्यान दिया जाए कि व्यक्तियों के जीवन में क्या सही है, जीवन में क्या अच्छा है और जीवन को अधिक पूर्ण, सार्थक बनाने एवं ज्ञानातीत अवस्था तक पहुँचने के लिए मानव की क्षमता एवं प्रतिभा को कैसे बढ़ाया जाए। दुखों और विकृतियों के अध्ययन पर अत्यधिक बल देने की वजह से सकारात्मक मनोविज्ञान का क्षेत्र उभरा है। इस क्षेत्र ने इस बात को उजागर किया कि हमें मानसिक बीमारी से परे मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्ति में चरित्र की ताकत की ओर बढ़ने की जरूरत है। यह क्षेत्र इस बारे में स्पष्टीकरण देता है कि व्यक्तियों में क्या अच्छा है और मानवीय शक्तियों के निर्माण पर बल देता है। इस तरह ऐसा सुझाव लेकर सकारात्मक मनोविज्ञान पूर्ववर्ती कमजोरी-उन्मुख दृष्टिकोण को संतुलित करता है कि हमें लोगों की कमजोरियों के साथ-साथ उनकी ताकतों का भी अन्वेषण करना चाहिए। उनके कष्टों, अभावों, चुनौतियों के साथ-साथ उनकी मनोवैज्ञानिक शक्तियों, खूबियों और संसाधनों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए यह क्षेत्र मनुष्य के समग्र अध्ययन में सहायक है।

आध्यात्मिक और जीवन में अर्थ
(Spiritual and Meaning in Life)

अध्यात्म को 'पवित्रता की खोज' के रूप में वर्णित किया गया है। तदनुसार यह व्यक्ति के विचारों, भावनाओं और कार्यों को प्रभावित करती है ताकि आध्यात्मिक अनुभवों की ओर ले जाने वाले तौर-तरीकों और व्यवहारों में शामिल हुआ जा सके। व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य यह है कि ज्ञानातीत अनुभव प्राप्त किए जाए। यह अनुभव गहरे धार्मिक सम्बन्ध या प्रकृति से सम्बन्ध या समाज की निस्वार्थ सेवा के मध्यम से मिल सकता है। इसमें जीवन में व्यापक अर्थ खोजने के लिए भौतिकवादी और सांसारिक चिंताओं से परे जाना शामिल है। यह व्यक्ति के वर्तमान क्षण के अनुभवों और सर्वोत्कृष्ट तरीके से जीवन जीने पर इसके प्रभाव के सम्बन्ध का अन्वेषण करता है। आध्यात्मिकता में जीवन में अर्थ और उद्देश्य की खोज से आगे बढ़कर शक्ति से जुड़ना भी शामिल है।

आध्यात्मिक धर्म से इस अर्थ में भिन्न है कि धर्म में विभिन्न धर्मों द्वारा निर्दिष्ट व्यवहार, संस्कार और अनुष्ठान सन्दर्भित हैं। ये धार्मिक व्यवहार हालाँकि पवित्रता की खोज के लिए संगठित मार्ग प्रदान कर सकते हैं, परन्तु ये आध्यात्मिक व्यवहार की ओर ले जाने की गारंटी नहीं है। धर्म मुख्यतः अनुष्ठानों, तौर-तरीकों, जीवन जीने के सही तरीकों, मानक आचार संहिता पर केन्द्रित है; जबकि आध्यात्मिकता में जीवन में अर्थ खोजने, स्वयं से, दूसरों से, आसपास की दुनिया और दैवीय या पवित्र शक्ति से जुड़ने से सम्बन्धित प्रश्न शामिल हैं।

सभी धर्म अंतिम लक्ष्य के रूप में मानव जीवन में आध्यात्मिकता की प्राप्ति पर बल देते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म में आध्यात्मिकता की ओर बढ़ने के रूप में वर्णित मानव जीवन के चार चरणों में तीसरे और चौथे चरण में 'वानप्रस्थ' (सांसारिक कर्त्तव्यों से निवृत्त होना) और संन्यास (त्याग) पर प्रकाश डाला गया है। ये चरण स्वयं से परे जाने, स्वयंसेवा करने, सामुदायिक सेवा करने / उच्च शक्ति के अन्वेषण में निस्वार्थ सेवा करने और इस प्रक्रिया में 'मोक्ष' (मुक्ति) प्राप्त करने से सम्बन्धित हैं।

आध्यात्मिकता जीवन में अर्थ खोजने में सहायता कर सकती है और इसका मानसिक स्वास्थ्य और मनुष्य के कल्याण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे सकारात्मक संवेग, करुणा, कृतज्ञता और विस्मय और स्वीकृति का बोध उत्पन्न होता है। जीवन के अंत में मनोवैज्ञानिक संकट के मामले में आध्यात्मिकता और जीवन में अर्थ दोनों सुरक्षात्मक कारक हैं। जो व्यक्ति जीवन में चुनौतियों का सामनाकरने के लिए अपनी आध्यात्मिकता का उपयोग करते हैं, वे अपने स्वास्थ्य और कल्याण में विभिन्न लाभ प्राप्त करते हैं (अकबरी एवं होसैनी।

स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors affecting Health) 

हम सभी अच्छे स्वास्थ्य के महत्त्व के बारे में अक्सर बात करते हैं। पर यह केवल बात बनकर ही रह जाती है, और हममें से अधिकांश स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतते हैं। जब तक हम अस्वस्थ नहीं होते, हम अच्छे स्वास्थ्य के महत्त्व को पूर्णतया जान नहीं पाते। जब हम अपने आपको या अपने आसपास के लोगों को देखते हैं, तो हम पाते हैं कि धन, शक्ति, प्रतिष्ठा या ज्ञान पाने के लिए किए गए प्रयासों की तुलना में, अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने व उसे बनाए रखने के प्रयासों को काफी कम महत्त्व दिया जाता है। इस तथ्य से स्थिति और भी जटिल हो जाती है कि 'स्वास्थ्य' शब्द को परिभाषित करना कठिन है और इसकी सर्व स्वीकार्य परिभाषा नहीं है। इसके अतिरिक्त, व्यक्ति के स्वास्थ्य को जाँचने का कोई एक उपयुक्त मानदंड नहीं है। पिछले कुछ दशकों में स्वास्थ्य के महत्त्व को पहचाना जाने लगा है और यह महसूस किया जाने लगा है कि स्वास्थ्य की एक ऐसी परिभाषा प्रस्तुत की जाए, जिसमें जीवन स्तर (quality of life) के सभी पहलू शामिल हों।

बहुत से कारक व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इन कारकों को दो वर्गों - आनुवंशिक तथा पर्यावरणी (परिवेश सम्बन्धी) में विभाजित किया जा सकता है। विकास के लिए आनुवंशिक और पर्यावरणी कारक परस्पर निरंतर अंतः क्रिया करते हैं और ये अंतः क्रियाएँ व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक या लाभदायक कुछ भी सिद्ध हो सकती हैं। स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण निम्नलिखित है-

आनुवंशिकता
(Heredity)

व्यक्ति के स्वास्थ्य-स्तर पर आनुवांशिक कारक या आनुवंशिकता (heredity) का प्रभाव पड़ता है। आप जानते हैं कि व्यक्ति की बहुत-सी शारीरिक व मानसिक विशेषताएँ आनुवंशिकता से प्रभावित होती हैं।

आनुवांशिक गुण बच्चे में 'जीन्स' (genes) के द्वारा संचरित होते हैं। गर्भधारण के समय ही व्यक्ति के जीन्स की संरचना निर्धारित हो जाती है, जिसे बाद में बदला नहीं जा सकता। जीन्स व्यक्ति के विकास का जैविक आधार होते हैं, अर्थात् उनमें व्यक्ति के जैविक विकास से सम्बन्धित कोड (code) होते हैं। इससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर कैसे प्रभाव पड़ता है, आइए यह विस्तार से समझें ।

अब यह पता चल चुका है कि बहुत से रोग-जैसे डॉउन्स सिंड्रोम (Down's syndrome) व हीमोफीलिया, वंशानुगत होते हैं। डॉउन्स सिंड्रोम ऐसी स्थिति है जो जीन्स में हुई विसंगति के कारण होती है, जिससे मानसिक मंदता और शरीर में कुछ विशेष परिवर्तन - जैसे जीभ का बाहर की ओर निकलन, आँख के भीतरी कोनों की त्वचा में झुर्री पड़ना आदि-- दिखाई देते हैं। ऐसे बच्चों में क्रियात्मक (गतिशीलता सम्बन्धी) समस्याएँ, श्वसन सम्बन्धी संक्रमण तथा हृदय व रक्त धमनियों में विसंगतियाँ होने की सम्भावना भी अधिक पायी जाती हैं।

हीमोफिलिया से ग्रस्त व्यक्तियों के रक्त प्लाजमा में ऐसे पदार्थ की कमी होती है जोकि रक्त जमने के लिए आवश्यक होता है। ऐसे बच्चे में छोटे से घाव से भी घंटों तक रक्त बहता रहता है. जबकि सामान्य बच्चों में यदि ऐसा ही घाव हो, तो वहाँ से लगभग पाँच मिनट के अंदर रक्त बहना बंद हो जाता है।

मनुष्य में जीन्स द्वारा वंश से प्राप्त होने वली 1800 से भी अधिक आनुवांशिक विसंगतियाँ पाई गई हैं। यह विसंगतियाँ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष, दोनों ही प्रकार से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं। हम ऊपर डॉउन्स सिंड्रोम और हीमोफिलिया के प्रत्यक्ष प्रभाव के बारे में बता चुके हैं। आइए अब इसके अप्रत्यक्ष प्रभाव को समझें। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि हीमोफिलिया से ग्रस्त बच्चे के प्रति उसके माता-पिता बहुत अधिक सुरक्षात्मक रवैया अपनाएँ। हो सकता है वे बच्चे को उसकी उम्र के अन्य सामान्य बच्चों की भाँति न खेलने दें क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं बच्चे को चोट न लग जाए / चोट लगने से रक्तस्राव न हो जाए। सामाजिक अंतः क्रियाओं के अभाव के कारण हो सकता है उस बच्चे के आत्मविश्वास व स्व-मान्यता में कमी आ जाए और वह समूह के अन्य बच्चों की उससे अंतःक्रिया न करे और इस कारण उसके अन्य बच्चों व वयस्कों के साथ सम्बन्ध नकारात्मक रूप से प्रभावित हों। क्या आप सोच सकते हैं कि डॉउन्स सिंड्रोम से प्रभावित बच्चे के स्वास्थ्य के विभिन्न आयामों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

पर्यावरण तथा परिवेश
(Environment and Surroundings)

जन्मोपरांत के परिवेश को भौतिक (physical ) व सामाजिक (social)- दो प्रकार के परिवेश में विभाजित किया जा सकता है। 'भौतिक परिवेश' से तात्पर्य पारिस्थितिकी स्थितियों (ecological conditions) से है जबकि 'सामाजिक परिवेश' से तात्पर्य परिवार, संस्कृति, धर्म तथा व्यक्ति के सामाजिक वर्ग से है। परिवेश सम्बन्धी कोई भी एक या अनेक कारण व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। यह तो प्रमाणित तथ्य है कि परिवेश का व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। मनुष्य व उसके परिवेश के बीच सामंजस्य, व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए निर्णायक है। परिवेश सम्बन्धी कारकों के अन्तर्गत भोजन, आवास, जल आपूर्ति, स्वच्छता, उद्योग, स्वास्थ्य देखभाल तथा समाज कल्याण सेवाओं से लेकर मनो-सामाजिक तनाव, परिवार संरचना तथा सांस्कृतिक नियम — ये सभी आते हैं। आइए, अब विस्तार से पढ़ें कि सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ, व्यक्ति की जीवन शैली तथा उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाएँ किस प्रकार व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।

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