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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2735
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बीए बीएससी बीकाम सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा और योग - सरल प्रश्नोत्तर

इकाई-1
शारीरिक शिक्षा  (Physical Education)

 

अध्याय - 1
शारीरिक शिक्षा : अर्थ, परिभाषा,
लक्ष्य एवं उद्देश्य, शारीरिक शिक्षा
के बारे में भ्रम
(Physical Education : Meaning, Fast Definition,
Aim and Objective, Misconception About
Physical Education) (Physical Education)

शारीरिक शिक्षा का अर्थ
(Meaning of Physical Education)

शारीरिक शिक्षा की अवधारणा से अभिप्राय है, अच्छे स्वास्थ्य की कामना से शारीरिक श्रम को महत्त्व देना। शरीर को स्वस्थ और सबल रखने की चाह मानव मन में प्रारम्भिक काल से ही रही है। प्रारम्भ में हिंसक पशुओं से स्वयं की रक्षा के लिए मनुष्य ने अपनी शारीरिक शक्ति की आवश्यकता और महत्त्व को समझा। अपने पूर्व के अनुभवों से उसने यह भी जाना कि निरन्तर व नियमित श्रम करने से शरीर बलवान व सक्षम होता है तथा सबल शरीर से स्वयं की रक्षा व अन्य, कार्य सहज सम्भव हैं तो उसने काम और व्यायाम का समन्वय किया और उसके अनुसार अपनी दिनचर्या का निर्धारण किया। प्रातः सूर्योदय से पूर्व जागकर शौचादि से निवृत्ति के लिए पैदल चलकर दूर जंगल में जाना। फिर वहाँ से लकड़ियाँ बीन कर लाना। गाय-भैंसों को दुहना, कुएँ से खींचकर पानी भरना, घट्टी से धान पीसना इत्यादि क्रियाएँ काम और व्यायाम के अन्तर्गत मानव मन में छुपी शारीरिक शिक्षा की अवधारणा को ही प्रकट करती है।

शारीरिक शिक्षा की परिभाषाएँ
(Definitions of Physical Education)

'शारीरिक शिक्षा, शिक्षा के कार्यक्रम का वह भाग है, जिसमें शारीरिक कार्यक्रमों द्वारा बच्चों को विकसित तथा सुशिक्षित किया जाता है। शारीरिक कार्यक्रम साधन है, और उन्हें इस प्रकार चुन कर कराया जाता है कि इनका प्रभाव बच्चे के सम्पूर्ण जीवन पर पड़े, जिसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक तथा नैतिक सभी अंग सम्मिलित है।'  -एच०सी० बक

'शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के उन शारीरिक कार्यक्रमों को कहते हैं, जिनका चुनाव उनके प्रभाव की दृष्टि से किया जाता है।'  -जे०एफ० विलियम्स

'शारीरिक शिक्षा उन अनुभवों का कुल जोड़ है, जो व्यक्ति विशेष को प्रक्रिया से प्राप्त होते हैं।' -आबरिट्यूफर

शारीरिक शिक्षा के ध्येय
(Goals of Physical Education)

उपर्युक्त परिभाषाएँ शारीरिक शिक्षा के अधिकारी विद्वानों द्वारा व्यक्त की गई है, जिनके अध्ययन मनन के पश्चात् शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य, लक्ष्य एवं ध्येय की वास्तविक स्थिति एक सीमा तक स्पष्ट हो जाती है। इन समस्त परिभाषाओं की विभिन्न शब्दावली प्रायः एक ही अर्थ-ध्वनि एक ही ध्येय को हमारे सामने प्रकट करती है। अब यह बात तो ज्ञातव्य है कि शारीरिक शिक्षा के ध्येय तीन भागों में विभाजित किये जा सकते हैं,

1. शरीर का विकास - बहुत स्पष्ट है कि शारीरिक शिक्षा के ध्येय के अन्तर्गत शरीर का विकास भी सम्मिलित है। इस ध्येय की प्राप्ति हेतु शारीरिक शिक्षा के अन्तर्गत कुछ इस प्रकार का कार्यक्रम निर्मित करना अभिप्रेत है, जिसमें भाग लेने वालों को उनकी वृद्धि एवं विकास के इस कार्यक्रम से पर्याप्त सहायता तथा सहयोग प्राप्त हो। लेकिन यह भी यहीं तक सीमित होकर न रह जाय। इस प्रकार के कार्यक्रमों में भाग लेने के परिणामस्वरूप भाग लेने वाले में ऐसे शारीरिक गुण अर्जित हों कि क्षमता, शक्ति, साहस, सहन-शक्ति, थकान न होने तथा यदि हो तो थकान शीघ्र दूर होने की योग्यता उत्तम स्वास्थ्य, सीधा व आकर्षक शरीर या डील-डौल प्राप्त हो।

2. संवेगात्मक सामाजिक व्यक्ति का विकास - व्यक्ति जीवन और व्यक्तित्त्व तभी सार्थक है, जब वह अपने समाज में अपना उचित स्थान प्राप्त करने की क्षमता रखता हो, इस हेतु यह आवश्यक है कि व्यक्ति की शिक्षा कुछ इस रीति व पद्धति से हो कि वह प्रजातांत्रिक जीवन प्रणाली में अपना उचित स्थान ग्रहण कर सके तथा उसके प्रति अपने नैतिक कर्त्तव्य व उत्तरदायित्व को समझ के शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम एवं प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न परिस्थितियों से प्राप्त अनुभवों के आधार पर व्यक्ति वातावरण को उसके अर्थमय रूप से समझें, तथा उसकी उपयोगिता को आंक सके। व्यक्ति इस बात का अनुभव करे कि वह अपना नैतिक एवं सामाजिक उत्थान शारीरिक शिक्षा के उपलब्ध साधनों के माध्यम से अधिक अच्छी तरह कर सकता है।

3. शरीर द्वारा व्यक्ति का विकास - यह परीक्षित तथ्य है कि शारीरिक शिक्षा की प्रक्रियाओं से व्यक्ति का विकास होता है। इन्द्रियों से अनुभूति होती है, ज्ञान प्राप्त होता है। इन्द्रियों को व्यक्त करने के लिए ज्ञान का द्वार समझना चाहिए। तो, ज्ञान के इन द्वारों की अनुभूति क्षमता बनी रहे, इस हेतु इनका उद्देश्य रहना आवश्यक है। यह सत्य है कि इन्हें शारीरिक शिक्षा की प्रक्रियाओं द्वारा उद्देश्य स्वस्थ रखा जा सकता है। इस प्रकार का विकास तभी सम्भव है, जब अंगों में परस्पर समन्वय हो । शारीरिक शिक्षा की प्रक्रियाओं के द्वारा परिस्थितियों की कुछ ऐसी दशा उपस्थित हो कि मानसिक दृष्टि से प्रेरणास्पद हो तथा संतोष की अनुभूति हो। यह सत्य है कि शारीरिक शिक्षा की प्रक्रियाओं में ऐसी परिस्थितियाँ तथा दशाएँ उत्पन्न होती हैं कि जिनकी क्रियान्विति से संतोषप्रद अनुभूति होती है।

शारीरिक शिक्षा के प्रति कुछ मिथ्या/भ्रांतिपूर्ण धारणाएँ
(Some Misconceptions about Physical Education)


1. शारीरिक शिक्षा केवल खेलकूद की शिक्षा है।
2. खेलकूद से केवल शारीरिक विकास होता है।
3. खेलकूद से बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।
4. खिलाड़ी अच्छा विद्यार्थी नहीं हो सकता।
5. शारीरिक शिक्षा के लिए पढ़ाई की आवश्यकता नहीं।
6. शारीरिक शिक्षा के लिए नियमित अभ्यास की आवश्यकता नहीं।
7. शारीरिक शिक्षा ड्रिल की कवायद का नाम है।
8. शारीरिक शिक्षा सैन्य उद्देश्यों के लिए आवश्यक हो सकती है।
9. तुलनात्मक रूप से शारीरिक शिक्षा महत्त्वपूर्ण नहीं है।
10. शारीरिक शिक्षा केवल पीटी ड्रिल का नाम है।

महत्त्वपूर्ण बिन्दु : ध्यान देने योग्य तथ्य
(Importance Points: Facts to Note)


1. शारीरिक शिक्षा और सामान्य शिक्षा परस्पर एक-दूसरे की पूरक हैं।
2. अच्छा स्वास्थ्य ही स्वस्थ मानसिकता का आधार है।
3. स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।
4. शारीरिक शिक्षा और सामान्य शिक्षा के लक्ष्य, उद्देश्य और ध्येय समान हैं।
5. आज के भाग-दौड़ भरे जीवन में शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता निर्विवाद है।

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