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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2733
आईएसबीएन :0

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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

महत्वपूर्ण तथ्य

एक उद्यमी या साहसी को जोखिम उठाने का जो प्रतिफल मिलता है उसे लाभ कहा जाता है। दूसरे शब्दों में राष्ट्रीय आय का वह भाग जो वितरण की प्रक्रिया में साहसियों को प्राप्त होता है। लाभ स्वभाव से अवशेष (residual in nature) होता है अर्थात् अन्य सभी साधनों को पुरस्कार देने के बाद जो भाग शेष बचे वही लाभ है।

• किसी साहसी की उत्पादन लागत के ऊपर जो अधिक आय प्राप्त होती है, उसे कुल लाभ (Gross profit) कहा जाता है।

• कुल लाभ को निम्नलिखित सूत्र द्वारा भी प्रदर्शित किया जाता है :

  कुल लाभ = कुल आय - स्पष्ट लागत

• साहसी स्वयं मालिक होता है, इसलिए उसका पुरस्कार अर्थात् लाभ ऋणात्मक हो सकता है, परन्तु मज़दूरी ब्याज तथा लगान ऋणात्मक नहीं होते हैं।

• लाभ की दर में अपेक्षित उतार-चढ़ाव आता है जबकि लगान मज़दूरी, व ब्याज में उतने अधिक उतार-चढ़ाव नहीं आते हैं।

• लाभ में सम्भावित उतार-चढ़ाव का प्रमुख कारण व्यापारिक दशाओं का परिवर्तन होता है।

• लाभ का गतिशील सिद्धान्त का प्रतिपादन अमेरिकी अर्थशास्त्री जे.बी. क्लार्क ने 1900 में किया।

• क्लार्क ने अर्थव्यवस्था को दो भागों में बाँटा (i) स्थैतिक तथा (ii) प्रवैगतिक।

• क्लार्क का गतिशील सिद्धान्त के अनुसार, लाभ परिवर्तन का परिणाम है, जो केवल प्रवैगिक अर्थव्यवस्था में प्राप्त होता है।

• लाभ के साम्यवादि सिद्धान्त को साम्यवादि विचारक कार्ल मार्क्स (Karl Marx) के द्वारा प्रतिपादित किया गया है।

• साम्यवादियों का मत है कि लाभ का जन्म इसलिए होता है कि श्रमिकों को उनके श्रम का उचित पुरस्कार नहीं दिया जाता है।

• साम्यवाद में लाभ को 'श्रमिकों का शोषण' कहा है।

• लाभ का जोखिम सिद्धान्त का प्रतिपादन अमेरिकी अर्थशास्त्री प्रो. हाले (Hawley) ने 1907 में किया है।

• लाभ का जोखिम सिद्धान्त के अनुसार एक साहसी भविष्य की मांग को ध्यान में रखते हुए चार प्रकार के जोखिम उठाता है :

  (1) प्रतिस्थापन सम्बन्धी जोखिम (Replacement Risk)

  (2) उत्पाद के विपणन सम्बन्धी जोखिम (Risk of Marketability of the product)

  (3) अप्रचलन जोखिम (Obsolescence Risk)

  (4) अनिश्चितता सम्बन्धी जोखिम (Risk of uncertainty)

• लाभ के अनिश्चितता-सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो. नाइट (Knight) के द्वारा किया गया।

• प्रो. नाइट के अनुसार लाभ साहसी की जोखिम उठाने के कारण प्राप्त नहीं होता बल्कि यह उसे अनिश्चितता सहन करने के बदले में मिलता है।

• प्रो. नाइट ने जोखिम को दो भागों में बाँटा है (i) ज्ञात जोखिम तथा (ii) अज्ञात जोखिम।

• लाभ के नव-प्रवर्तन सिद्धान्त के जन्मदाता शुम्पेटर (Schumpeter) हैं। उनका यह सिद्धान्त क्लार्क (Clark) के गतिशील सिद्धान्त से भिन्न-गुलता है।

• शुम्पेटर के अनुसार “गतिशील अर्थव्यवस्था में नये-नये अनुसंधानों एवं आविष्कारों के कारण ही लाभ होता है।”

• किसी व्यवसाय में साहसी तभी प्रवेश करता है, जबकि उसे कम-से-कम सामान्य लाभ की प्राप्ति होती है।

• साहसियों की मांग निम्न तत्वों पर निर्भर करती है :
  1. उत्पादन का पैमाना।
  2. औद्योगिक विकास का स्तर
  3. उद्योग की अप्रत्याशिता
  4. साहसी की सीमांत आयात उत्पादकता।

• पूंजी की प्राप्ति, प्रक्रमकीय एवं तकनीकी सेवाओं का पाया जाना, जनसंख्या का आकार, साहसियों की संख्या, उद्योगों में अनिश्चितता का अंश, समाज की स्थिति, औद्योगिक अनुभव एवं आय का वितरण साहसियों की पूर्ति को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व हैं।

• लाभ का सम्भाव्य अथवा अनिश्चितता का प्रतिपादन जी.एस.एल. शैकल (G.S.L. Shackle) द्वारा प्रस्तुत किया गया।

• प्रो. जे.के. मेहता के अनुसार, “इस प्रवैगिक संसार में मानव का उत्पादक कार्यों में अनिश्चितता तत्व हेतु चौथे प्रकार का त्याग करना पड़ता है। यह त्याग जोखिम उठाने का है एवं अनिश्चितता सहन करना है। इसको लाभ द्वारा पुरस्कार किया जाता है।”

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