बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
अर्थशास्त्र में मौद्रिक पूँजी के उपयोग के लिए दिया जाने वाला भुगतान ब्याज है। ब्याज राष्ट्रीय आय का वह भाग है जो पूँजी की सेवाओं के बदले पूँजीपति को दिया जाता है।
मार्शल के अनुसार, "ब्याज किसी बाजार में पूँजी के प्रयोग की कीमत है।"
मेक्स के अनुसार, "ब्याज वह मूल्य है जो उधार देने योग्य कोष के प्रयोग के लिए दिया जाता है।"
विकसेल के अनुसार, "ब्याज उस भुगतान को कहते हैं जो पूँजी उधार लेने वाला पूँजी की उत्पादक शक्ति के कारण पूँजी को उसे प्रयोग के पुरस्कार स्वरूप मिलता है।"
कीन्स के अनुसार, "ब्याज एक निश्चित अवधि के लिए तरलता के परित्याग का पुरस्कार है।"
कुल ब्याज वह ब्याज है जो वास्तविक जीवन में ऋणदाता द्वारा बसूल किया जाता है।
शुद्ध ब्याज (Net Interest) उधार दी गई राशि के प्रयोग के बदले पुरस्कार है।
शुद्ध ब्याज को निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है –
कुल ब्याज = शुद्ध ब्याज + जोखिम का पुरस्कार + असुविधा का भुगतान + प्रबन्ध की लगात
ब्याज का प्रतिफल सिद्धान्त का प्रतिपादन मार्शल, वाल्रास, पिगू, मिल आदि अर्थशास्त्रियों ने किया। इस सिद्धान्त को व्यय-नियमन सिद्धान्त भी कहा जाता है।
ब्याज के प्रतिफल सिद्धान्त के अनुसार ब्याज की दर का निर्धारण पूँजी की माँग एवं पूर्ति द्वारा होता है। इसलिए इस सिद्धान्त को 'ब्याज का माँग-पूर्ति सिद्धान्त' कहा जाता है।
प्रतिफल अर्थशास्त्रियों का सिद्धान्त पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित है।
प्रतिफल अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बचत और विनियोग दोनों ही ब्याज दर पर निर्भर करते हैं।
वास्तविक सिद्धान्त में ब्याज दर को निर्धारित करने वाले केवल वास्तविक तत्वों को ही शामिल किया गया है, जैसे—उपादकता, त्याग, प्रतिफल, समय आदि।
नव प्रतिफल सिद्धान्त को उद्धार देने वाले सिद्धान्त भी कहा जाता है।
नव प्रतिफल सिद्धान्त के प्रतिपादक का श्रेय स्वीडन के अर्थशास्त्री विकसेल, ओहेलिन तथा मिडल को जाता है।
नव प्रतिफल सिद्धान्त के अनुसार “ब्याज दर वह कीमत है जो ऋण योग्य कोष की मांग व पूर्ति को संतुलित करती है।”
आय और उपभोग व्यय का अन्तर बचत कहलाता है अर्थात् उपभोग करने के बाद जो आय रह जाती है वहीं बचत है।
बचत आर्थिक क्षेत्र, व्यवसायिक क्षेत्र तथा सरकारी क्षेत्र तीनों द्वारा की जाती है।
संचित व अधिशेष सम्पत्ति के उस भाग से है जिसे लोग मुद्रा के रूप में रखना चाहते हैं।
प्रो. कीन्स का कहना है कि अर्थव्यवस्था में मुद्रा की कुल पूर्ति स्थिर है अतः यदि एक व्यक्ति मुद्रा का संचय अधिक करता है तो दूसरे व्यक्ति को यह कष्ट करना होगा।
ब्याज का तरलता पसन्दगी सिद्धान्त का प्रतिपादन जे.एम. कीन्स ने किया।
कीन्स के अनुसार, मुद्रा विभिन्न माध्यम के साथ-साथ मूल्य स्तर का भी कार्य करती है। मुद्रा में तरलता का गुण होने के कारण व्यक्ति मुद्रा का संचय करना चाहता है।
इस अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्ति, परिवार और फर्में दैनिक खर्चे के लिए जो मुद्रा को मांग करते हैं उन्हें लेन-देन उद्देश्य वाली मांग कहा जाता है।
देश में आय, उत्पादन एवं रोजगार का स्तर जितना अधिक होगा उतनी ही क्रय-विक्रय के निमित्त मुद्रा की मांग अधिक होगी।
नकदी की मांग आय के परिणाम पर ही निर्भर नहीं करती बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि आय कितने अन्तराल के बाद प्राप्त हो रहा है।
व्यय की अवधि भी नकदी की मांग को प्रभावित करती है। खर्चों का भुगतान जितनी लम्बी अवधि तक किया जाएगा उतनी ही दैनिक क्रय-विक्रय के लिए धन की मांग को होगी।
प्रो. कीन्स के अनुसार, “भविष्य के सम्बन्ध में बाजार की तुलना में अधिक जानकारी द्वारा लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य को सट्टा उद्देश्य कहा जाता है।”
सट्टा उद्देश्य के लिए रखी जाने वाली नकद मुद्रा की मात्रा ब्याज की दर पर निर्भर करती है।
बाण्ड की कीमतों तथा ब्याज की दर में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है।
तरलता पसन्दगी रेखा की आकृति एवं ढाल ब्याज की दर तथा सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग द्वारा निर्धारित होता है।
तरलता पसन्दगी वक्र के पूर्ण लोचदार होने की दशा में लोगों का नकदी अभिमान पूर्ण रूप तक पहुँच जाता है। इसे पूर्ण नकदी अधिमान अवस्था या तरल जाल कहा जाता है।
कीन्स का सिद्धान्त इस बात को स्पष्ट नहीं करता कि अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन ब्याज दरों में अन्तर क्यों होता है।
कीन्स के सिद्धान्त की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह 'पूर्ण से कम रोजगार' की वास्तविकता की मान्यता पर आधारित है।
कीन्स द्वारा प्रतिपादित ब्याज दर के सिद्धान्त की हेन्सन (Hansen), हैज़लिट (Hazilitt), बाउमोल (Baumol) आदि अर्थशास्त्रियों ने कटु आलोचना की।
केन्सीय विश्लेषण में तरलता अधिमान के निर्धारण में सट्टा उद्देश्य हेतु मुद्रा की मांग का विशेष महत्त्व है।
बचत-निवेश वक्र–बचत अनुसूचियाँ (Saving Schedules) तथा निवेश अनुसूचियाँ (Investment Schedule) के परस्पर सम्बन्ध की व्याख्या करता है।
हिक्स ने ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त का प्रस्तुतिकरण इस ढंग से किया कि इसमें उपादकता, सन्तुल्यता, तरलता अधिमान और मुद्रा की पूर्ति आदि सभी तत्वों का समावेश हो गया।
कीन्स के अनुसार, रोजगार की मात्रा निवेश पर आधारित होती है, निवेश स्वयं ब्याज दर पर निर्भर करता है।
बचत-निवेश वक्र बाएं से दाएं नीचे की ओर झुकता होता है, जो यह व्यक्त करता है कि ब्याज दर गिरने से निवेश में वृद्धि होती और साथ ही आय में भी।
तरलता अधिमान एवं मुद्रा पूर्ति वक्र, मौद्रिक क्षेत्र के सन्तुलन को व्यक्त करता है। अर्थात् LM वक्र पर स्थित प्रत्येक बिन्दु पर मुद्रा की मांग एवं मुद्रा की पूर्ति सन्तुलन में होती है।
तरलता अधिमान एवं मुद्रा पूर्ति वक्र बाएं से ऊपर की ओर चढ़ता हुआ होता है, जो यह दिखाता है कि मुद्रा की मात्रा में हुई वृद्धि पर तरलता अधिमान बढ़ने पर ब्याज की दर बढ़ती है।
बचत-निवेश वक्र तथा तरलता अधिमान एवं मुद्रा पूर्ति वक्र ब्याज की दर व आय के स्तर के सम्बन्ध को व्यक्त करते हैं।
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