बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय 20 - व्याज
(Interest)
ऋण लिए हुए धन के प्रयोग के बदले जो प्रतिफल ऋणदाता को मिलता है उसे सामान्यतः ब्याज कहते हैं। ऋण उपभोग तथा उत्पादन के कार्यों को सम्पन्न करने के लिए लिया जा सकता है तथा यद्यपि यह सत्य है कि उपभोग के कार्यों के लिए लिए गए ऋण का भी प्रभाव ब्याज के ऊपर निश्चित रूप से पड़ता है तथापि हम ब्याज को अशध्यक्ष उत्पादन की क्रिया को सम्पन्न करने के लिए गए ऋणों के सन्दर्भ में करते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि उत्पादन की क्रिया में पूँजी के प्रयोग के बदले जो प्रतिफल पूँजीपति को मिलता है वहीं ब्याज कहलाता है। मेक्स के अनुसार "ब्याज वह कीमत है जो कि उधार दिए गये कोष (Fund) के प्रयोग के लिए दिया जाता है।" मार्शल के मत में "ब्याज किसी बाजार में पूँजी के प्रयोग की कीमत है। कीन्स तो ब्याज को तरलता (Liquidity) के परित्याग का पुरस्कार बताते हैं।
कीन्स का ब्याज सिद्धान्त
(Keynesion theory of Interest)
ब्याज की तरलता पसन्दगी सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे.एम. कीन्स (J.M. Keynes) ने 1936 में प्रकाशित अपनी पुस्तक General theory of Employment, Interest and Money में किया। कीन्स के अनुसार, "ब्याज वह कीमत है जो कि धन को नगद रूप में रखने की इच्छा एवं प्रवृत्ति की मात्र में समानता स्थापित करती है।" कीन्स मुद्रा की माँग को तरलता पसन्दगी (Liquidity preference) के सन्दर्भ में विवेचित करते हैं। नकद मुद्रा की माँग को तरलता पसन्दगी कहा जाता है। मुद्रा को कई रूपों में रखा जा सकता है। किन्तु रूपों में सबसे तरल रूप नकद मुद्रा है क्योंकि नकद मुद्रा को ही जब हम चाहें इच्छानुसार प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार नकदी (Cash) को कीन्स ने तरलता का नाम दिया।
कीन्स के अनुसार, मुद्रा की माँग तथा मुद्रा की पूर्ति की सापेक्ष शक्तियों द्वारा ब्याज का निर्धारण होता है।
A. मुद्रा की माँग (Demand of Money)— कीन्स के अनुसार मुद्रा की माँग का अभिप्राय मुद्रा की उस राशि से है जो लोग अपने पास तरल (अर्थात् नकद) रूप में रखना चाहते हैं। कीन्स के अनुसार, लोग मुद्रा को नकद या तरल रूप में रखने की माँग तीन उद्देश्यों से करते हैं : (i) सौदा उद्देश्य (ii) आत्म तथा रोजगार का स्तर तथा (iii) सट्टा उद्देश्य।
B. मुद्रा की पूर्ति (Supply of Money)—कीन्स के अनुसार मुद्रा की पूर्ति देश में परिवर्तन योग्य तथा जमा धन पर निर्भर करती है। ब्याज दर मुद्रा की पूर्ति के निर्धारण नहीं करती। मुद्रा की पूर्ति अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर मौद्रिक अधिकारियों द्वारा निर्धारित की जाती है और इसी कारण यह ब्याज के सापेक्ष पूरी: बेलोच होती है।
ब्याज दर निर्धारण (Determination of Interest Rate)—ब्याज दर का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ तरलता पसन्दगी वक्र (LP curve), मुद्रा की पूर्ति रेखा को काटता है।
संतुलन का यह बिन्दु ब्याज की उस दर को बताता है जहाँ तरलता पसन्दगी नकद मुद्रा के वास्तविक मात्रा के बराबर होती है।
उपरोक्त चित्र में खड़ी अक्ष पर मुद्रा की माँग/पूर्ति को तथा लम्बवत अक्ष पर ब्याज की दर को रखा गया है। बिन्दु E पर तरलता पसन्दगी तथा नकद मुद्रा की पूर्ति संतुलित अवस्था में है जहाँ पर ब्याज दर r निर्धारित होती है। इस प्रकार संतुलन बिन्दु E ब्याज की संतुलित दर को प्रदर्शित करता है।
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