बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
• वितरण के अन्तर्गत उत्पादक के विभिन्न उत्पादनों के सहयोग से उत्पादित राष्ट्रीय आय के बंटवारे से सम्बन्धित नियमों, सिद्धान्तों एवं समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
• राष्ट्रीय आय अथवा देश का कुल उत्पादन, उत्पाद के विभिन्न साधनों के सहयोग से होता है।
• जिस प्रकार वस्तु की कीमत निर्धारित की जाती है, उसी प्रकार उत्पाद के साधनों की कीमत भी निर्धारित की जाती है।
• वैज्ञानिक दृष्टि से वस्तु के कीमत निर्धारण (Commodity Pricing) व साधन कीमत निर्धारण (Factor Pricing) में काफी अन्तर है।
• वस्तु की मांग प्रखर रूप से उसकी उपयोगिता के आधार पर की जाती है, जबकि साधनों की मांग व्युत्पन्न मांग (Derived Demand) है।
• वस्तु की पूर्ति उत्पादन लागत से बढ़ती-घटती है, जबकि साधन की पूर्ति अवसर लागत (opportunity cost) पर निर्भर करती है।
• साधनों की कीमत निर्धारण करते समय सामाजिक तत्वों को भी ध्यान में रखा जाता है। विशेषकर श्रम के सन्दर्भ में तो इस तथ्य को सर्वोत्तम महत्व दिया जाता है।
• वितरण के सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त के अन्तर्गत साधनों के पारिश्रमिक का निर्धारण किया जाता है।
• वितरण के सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त को प्रतिपादित करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्री जे0बी0 क्लार्क, विक्सटीड, वाल्रास, जोन रॉबिन्सन तथा हिक्स हैं।
• सीमांत उत्पादकता के सिद्धान्त को सामान्य सिद्धान्त भी कहा जाता है।
• सीमांत उत्पादकता का सिद्धान्त हमें बताता है कि साधन की कीमत का निर्धारण साधन की उत्पादकता (Productivity) से निर्धारित होता है और यह उत्पादकता साधन की सीमांत उत्पादकता से तय होती है।
• वस्तु की मांग प्रखर रूप से, उस वस्तु से मिलने वाली उपयोगिता के आधार पर की जाती है।
• साधन की मांग इस बात पर निर्भर करती है कि उत्पादन करने की क्षमता कितनी है अर्थात् साधन की मांग साधन की उत्पादकता पर करती है।
• अन्य साधनों को स्थिर रखकर परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से कुल उत्पादन में जो वृद्धि होती है, उसे साधन की सीमांत उत्पादकता कहते हैं।
• सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता की धारणा को मानकर कार्य करता है।
• सीमांत उत्पादकता को तीन प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है (i) सीमांत भौतिक उत्पादकता, (ii) सीमांत आगम उत्पादकता तथा (iii) सीमांत मूल्य उत्पाद।
• वितरण का सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त, उत्पादन के उत्पाद ह्रास नियम के क्रियाशील पर कार्य करता है।
• वितरण के सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त में फर्म (Firm) का एक मात्र उद्देश्य लाभ को अधिकतम करना होता है।
• जब उत्पादन के क्षेत्र में अन्य साधनों को स्थिर रखकर किसी एक साधन की एक अतिरिक्त इकाई की उपस्थिति बढ़ायी जाती है, तब इस साधन के प्रयोग के परिणामस्वरूप कुल भौतिक उत्पादन में जो वृद्धि होती है उस अतिरिक्त वृद्धि को उस साधन की ‘सीमांत भौतिक उत्पादकता’ कहा जाता है।
• सीमांत भौतिक उत्पादकता वक्र का आकार उल्टे U आकार (Inverted U-shape) होता है। उसका एक आकार या (Bell Shaped) भी कहते हैं।
• अन्य साधनों को स्थिर रखने के बाद परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से कुल आय में जो वृद्धि होती है, उसे साधन की सीमांत आगम उत्पादकता कहते हैं।
• सीमांत उत्पाद का मूल्य (Value of Marginal Product or VMP) सीमांत मूल्य आगम अथवा सीमांत मूल्य उत्पादकता को दर्शा किया जा सकता है, जबकि सीमांत भौतिक उत्पादकता (MPP) को उत्पाद (product) की कीमत से गुणा कर दिया जाये।
• VMP = MPP × Price
• AR = MR
• VMP = MPP × MR = MRP
• साधन की औसत सम्पूर्ण आगम उत्पादकता को निम्नांकित सूत्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है –
• AGRP = कुल या सम्पूर्ण आगम (Total or Gross Revenue)/साधन की कुल इकाइयाँ (Total Units of the Factor)
• औसत विशुद्ध आगम उत्पादकता (Average Net Revenue Productivity or ANRP) को निम्नांकित सूत्र के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है
• ANRP = साधन विशेष के कारण कुल विशुद्ध आगम Total Net Revenue Attributable of Factor/साधन विशेष की कुल इकाइयाँ Total Units of the factor
• पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में निष्पक्ष स्थिति पाई जाती है। प्रचलित मजदूरी = सीमांत मजदूरी = औसत मजदूरी।
• Prevailing wage = marginal wage = average wage
• यदि यह संतुलन नहीं बनता जहाँ MRP व MW = AW वक्र के ऊपर से नीचे को घटता है।
• किसी भी साधन की कीमत उस बिन्दु पर तय होती है जहाँ पर MRP = MFC होगी। अर्थात् सीमांत आय उत्पादकता = सीमांत साधन लागत है। उपरोक्त स्थिति अधिश्रम में होती है।
• विश्लेषण में सामान लाभ के निर्धारण स्थिति पाई जाती है AFC = ANRP
• श्रम बाजार में अपूर्ण प्रतियोगिता स्थिति पाई जाती है, वैसे श्रम बाजार में श्रम का एक ही क्रेता होता है। इस स्थिति को ‘एक क्रेताधिकार’ (monopsony) कहा जाता है।
• एकाधिकरी क्रेता मजदूरी की दर को प्रभावित कर सकता है।
• एकाधिकरी की स्थिति में यदि श्रम की मांग बढ़ जाती है, तो उसे अधिक मजदूरी देनी पड़ सकती है। ऐसी स्थिति में औसत मजदूरी वक्र (AW - Curve) और सीमांत मजदूरी वक्र (MW - Curve) बायें से दायें को ऊपर की चढ़ते हुए होंगे।
• एकाधिकरी एवं एकाधिकर का लाभ उठाते हुए श्रमिकों (या साधनों) को उनकी उत्पादकता से कम मजदूरी देकर उनका शोषण करता है। इस स्थिति को ‘क्रय एकाधिकरी शोषण’ कहा जाता है।
• वितरण, अर्थशास्त्र के अध्याय का वह भाग है, जिसके अन्तर्गत उत्पाद के विभिन्न उत्पादनों के सहयोग से उत्पादित राष्ट्रीय आय के बंटवारे से सम्बन्धित नियमों, सिद्धांतों एवं समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
• वितरण के सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त के अन्तर्गत साधनों के पारिश्रमिक का निर्धारण किया जाता है। यह सिद्धान्त इस समस्या का समाधान आसान से करता है कि साधनों का पारिश्रमिक किस प्रकार से निर्धारित किया जाये?
• इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्री जे०बी० क्लार्क (J.B. Clark), विक्सटीड (Wicksteed), वालरस (Walras), श्रीमती जोन रॉबिन्सन (Mrs. Joan Robinson) तथा जे०आर० हिक्स (J. R. Hicks) हैं।
• सीमांत उत्पादकता के सिद्धान्त को सामान्य सिद्धान्त भी कहा गया है, क्योंकि उसकी सहायता से उत्पाद के सभी साधनों की कीमत-निर्धारण समस्या का अध्ययन किया जाता है।
|