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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2733
आईएसबीएन :0

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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय 17 - वितरण का सिद्धान्त अथवा साधन कीमत निर्धारण : सीमांत उत्पादकता का सिद्धान्त तथा आधुनिक सिद्धान्त

(Theory of Distribution or Factor Pricing : Theory of Marginal Productivity and Modern Theory)

वितरण, अर्थशास्त्र के अध्ययन का वह भाग है, जिसमें अन्तर्ग्त उत्पादन के विभिन्न उत्पादनों के सहयोग से उत्पादित राष्ट्रीय आय के बँटवारे से सम्बन्धित नियमों, सिद्धान्तों एवं समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। वितरण के सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त के अन्तर्गत साधनों के पारिश्रमिक का निर्धारण किया जाता है। यह सिद्धान्त इस समस्या का समाधान जानने के क़ाबिल है कि साधनों का पारिश्रमिक किस प्रकार से निर्धारित किया जाये? इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्री जे.बी. क्लार्क (J.B. Clark), विक्सटीड (Wicksteed), वाल्रास (Walras), श्रीमती जोन रॉबिन्सन (Mrs. Joan Robinson) तथा जे.आर. हिक्स (J. R., Hicks) हैं। सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त को सामान्य सिद्धान्त भी कहा गया है, क्योंकि उसकी सहायता से उत्पाद के सभी साधनों की कीमत-निर्धारण समस्या का अध्ययन किया जाता है। सीमांत उत्पादकता का सिद्धान्त हमें बताता है कि साधन की कीमत का निर्धारण साधन की उत्पादकता (Productivity) से निर्धारित होता है और यह उत्पादकता साधन की सीमांत उत्पादकता (Marginal Productivity) के रूप होती है।

 

सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त की मान्यताएँ (Assumptions of the Marginal Productivity Theory) – सीमांत उत्पादकता सिद्धान्त की प्रमुख मान्यताएँ निम्नलिखित हैं –

 

पूर्ण प्रतियोगिता – यह मान लिया गया है कि बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता की दशा पायी जाती है। क्रेता और विक्रेता आपस में प्रतियोगिता के आधार पर साधनों के क्रय विक्रय करते तो हैं, परंतु वे अपने को एक-दूसरे से प्रभावित नहीं करते हैं।

 

साधनों का प्रतियोगी बाजार – उत्पादक साधनों के द्वारा उत्पादित वस्तु का बाजार भी प्रतियोगी बाजार मान लिया जाता है।

 

उत्पत्ति के साधनों में समानता – उत्पाद के साधन विशेष की इकाई समान गुणों, समान उत्पादक क्षमता तथा समान आकार-प्रकार की होती हैं और साधन की विभिन्न इकाइयाँ एक-दूसरे की पूर्ण प्रतिस्थापन (perfect substitutes) भी होती हैं।

 

लाभ को अधिकतम करना – प्रत्येक उत्पादक तथा फर्म का अंतिम उद्देश्य यह होता है कि वह अपने लाभ में अधिकतम वृद्धि कर लेता है।

 

उत्पत्ति ह्रास नियम की मान्यता – यह मान लिया गया है कि उत्पाद में उत्पाद ह्रास नियम (Law of Diminishing Returns) लागू होता है।

 

वितरण का आधुनिक सिद्धान्त – वितरण के आधुनिक सिद्धान्त को माँग एवं पूर्ति का सिद्धान्त भी कहा जाता है। जिसमें वस्तु के माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के क्रियाशील होने के कारण उत्पादक के साधन का मूल्य निर्धारित होता है।

 

माँग पक्ष – किसी वस्तु की माँग इसलिए होती है क्योंकि उसके प्रत्यक्ष उपयोगिता उपभोक्ता को मिलती है। साधन की भी एक उपयोगिता होती है वह परोक्ष उपयोगी (Derived) होती है।

 

पूर्ति पक्ष – पूर्ति-पक्ष अर्थात् लगात पक्ष वह न्यूनतम सीमा है जिससे कम पर कोई उत्पादक के साधन को देने के लिए तैयार नहीं होता है। वह न्यूनतम सीमा साधन के त्याग पर निर्भर करती है जैसे-जैसे किसी वस्तु की माँग बढ़ती जाती है वैसे-वैसे उसे परिस्थितियों के समान रहते हुए, त्याग बढ़ाना पड़ता है। सीमांत त्याग की माँग अवसर लागत (Opportunity Cost) के आधार पर करते हैं।

 

इस प्रकार किसी भी साधन का मूल्य या पारिश्रमिक सीमांत उत्पादकता पर आधारित माँग तथा मूल्य उस बिन्दु पर निर्धारित होगा जहाँ साधन की सीमांत उत्पादकता उसके सीमांत त्याग के बराबर हो जाये। इस स्थिति का प्रदर्शन निम्न रेखा के माध्यम से किया जा सकता है।

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उपरोक्त रेखा चित्र में सीमांत उत्पादकता पर आधारित मांग वक्र (D) तथा सीमांत त्याग पर आधारित पूर्ति वक्र (S) एक दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं। उत्पादक OL श्रमिकों को लगायेगा तथा OW पारिश्रमिक देगा।

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