बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
व्यापार चक्र किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की समस्त आर्थिक क्रियाओं में विस्तार तथा संकुचन का प्रतिफल होता है।
“सामान्य अर्थ में व्यापार चक्र को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि यह अच्छे तथा बुरे व्यापार की समृद्धि तथा मंदी की अवस्थाओं का अदल बदल है।” – प्रो. हेवरलर
• "व्यापार चक्रों से अभिप्राय संगठित समुदायों की आर्थिक क्रियाओं में होने वाले उतार-चढ़ावों की श्रृंख्ला से होता है।" – प्रो. मिचेल
• किसी एक अवस्था में व्यापार में तेजी आती है तथा ठीक उसके पश्चात् के समय में मंदी आ जाती है, यह व्यापार चक्र की प्रमुख विशेषता है।
• व्यावसायिक निर्णय बहुत अधिक व्यापार चक्र को प्रभावित करते हैं।
• व्यापार चक्र के आर्थिक उत्थानक्रम क्रियाशील होते हैं अर्थात् यदि अवस्था के बाद समूही उपस्थित होती है तो क्रियात्मक रूप से प्रत्येक चक्र की प्रकृति अनिवार्य उपस्थित होगी।
• व्यापार चक्र पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है।
• प्रो. जेम्स आर्थर के द्वारा व्यापार चक्र को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है -
(i) प्रमुख एवं दीर्घ चक्र, (ii) दीर्घ लहर, (iii) निर्माण चक्र चक्र।
• व्यापार चक्र को आर्थिक प्रवृत्तियों के पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है -
(i) मंदी अवस्था, (ii) पुनरुत्थान अवस्था, (iii) समृद्धि अवस्था, (iv) तेजी अवस्था,
(v) प्रतिसार अवस्था।
• मौसमी परिवर्तनों के कारण फसलों पर प्रभाव पड़ता है जिसके कारण व्यापार चक्रों का जन्म होता है।
• बचत और निवेश के मध्य सन्तुलन न बन पाने के कारण अति निवेश या न्यून निवेश व्यापार चक्रों को जन्म देते हैं।
• व्यापार चक्र पर नियन्त्रण के निम्नलिखित दो उपाय हैं -
(I) प्रतिवचक उपाय, (II) औपचारिक उपाय
• जलवायु अथवा सूर्य बिन्दु सिद्धान्त का प्रतिपादन 1857 में प्रो. जेवन्स द्वारा किया गया।
• सूर्य-बिन्दु सिद्धान्त के प्रतिपादक विलियम स्टेनले जेवन्स हैं। जेवन्स का मत है कि व्यापार चक्र सूर्य के धब्बों के कारण उत्पन्न होते हैं प्रत्येक दस-ग्यारह वर्षों में सूर्य में धब्बे होते हैं।
• अति उत्पादन सिद्धान्त को व्यापार चक्र के प्रतिवर्ती सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है।
• अति उत्पादन सिद्धान्त का मानना है कि व्यापार चक्र की उत्पत्ति अति-उत्पादन के कारण होती है।
• अति-उत्पादन सिद्धान्त अल्प-उपभोग या न्यून उपभोग सिद्धान्त भी कहलाता है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जे.ए. हाब्सन एवं वाइल्स द्वारा किया गया। हाब्सन के अनुसार, अमीरों द्वारा अधिक बचत से व्यापार में मंदी उत्पन्न होती है।
• हाल ही का विचार है कि मुद्रा स्फीति तथा मुद्रा-संकोचन के कारण व्यावसायिक क्रियाओं में उतार-चढ़ाव होते हैं। मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने के कारण व्यापार चक्रों का उदय होता है।
• हिक्स द्वारा प्रतिपादित किया गया व्यापार चक्र की व्याख्या करने का सिद्धान्त आधुनिक सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है।
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