बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
“किसी वस्तु की माँग की लोच अधिक या कम कही जायेगी जब मूल्य में दी हुई कमी होने पर उसकी माँग में अधिक या कम वृद्धि होती है।” – मार्शल
श्रीमती जोन रॉबिन्सन के अनुसार माँग की लोच अथवा मूल्य में थोड़े परिवर्तन के परिणामस्वरूप खरीदी गयी वस्तु की मात्रा के आनुपातिक परिवर्तन को मूल्य के आनुपातिक परिवर्तन से भाग देने पर प्राप्त होता है।
पूर्णतया लोचदार माँग (ep = ∞) — किसी वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार तब होगी जब उसके मूल्य में अल्पवृद्धि होती ही उस वस्तु की माँग शून्य हो जाये और अन्य कोई उसकी माँग में अनन्त वृद्धि ला दे।
पूर्णतया अलोचदार माँग (ep = 0) — यदि किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के बाद भी उसकी माँग जैसी की तैसी रहे उससे किसी प्रकार का परिवर्तन न हो तो उसकी माँग को पूर्णतया अलोच कहते हैं।
इकाई माँग की लोच (ep =1) — जब किसी वस्तु की माँग में सामंजस्यपूर्ण परिवर्तन उसके मूल्य के सामंजस्यिक परिवर्तन के बराबर हो तो उस वस्तु की माँग को इकाई लोच कहते हैं।
अधिक लोचदार माँग (e > 1) — जब किसी वस्तु की माँग में होने वाला सामंजस्य परिवर्तन उसके मूल्य के सामंजस्य परिवर्तन से अधिक हो तो उस वस्तु की माँग अधिक लोचदार कही जायेगी।
जब किसी वस्तु की माँग में होने वाले भौतिक परिवर्तन उसके मूल्य के सामंजस्य परिवर्तन से कम हों तो उस वस्तु की माँग अल्प लोचदार होगी।
मार्शल ने मूल्य में परिवर्तन के कारण किसी वस्तु पर होने वाले कुल व्यय के आधार पर माँग की लोच का मापक की, जिसे व्यय विधि कहा जाता है।
मार्शल ने यह प्रतिपादन किया कि यदि मूल्य में कमी के बाद व्यय बढ़े तो माँग की लोच इकाई से अधिक (ep >1), यदि स्थिर रहे तो माँग की लोच इकाई के बराबर (ep =1) तथा यदि कम हो जाये तो माँग की लोच इकाई से कम (ep < 1) होगी।
किसी वस्तु पर होने वाला कुल व्यय = वस्तु की माँगी गई मात्रा × प्रति इकाई मूल्य
माँग की लोच ज्ञात करने का प्रयोग माँग वक्र पर दो बिन्दुओं के बीच चलन की स्थिति में माँग की लोच ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
दो बिन्दुओं के मध्य माँग वक्र के भाग को चाप कहा जाता है।
बिन्दु की लोच का गणना को चित्र की सहायता से दर्शाया गया है। चित्र में PL माँग रेखा है।
यदि माँग वक्र के किसी बिन्दु या चाप के सन्दर्भ में माँग की लोच ज्ञात करनी हो तो सूत्र का प्रयोग करते हैं।
यदि माँग फलन सतत हो या माँग वक्र सतत हो तो dqdp⋅pq\frac{dq}{dp} \cdot \frac{p}{q} dpdq⋅qp सूत्र का प्रयोग करते हैं।
अनिवार्य आवश्यकता की वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनके बिना आदमी का काम नहीं चलता इसलिए इनकी माँग बेलोच होती है। जैसे—नमक।
विलासिता की वस्तुओं की माँग अधिक लोचदार होती है।
मार्शल के अनुसार—यदि कोई वस्तु ऐसी है जिसके अनेक प्रयोग होते हैं तो उसकी माँग लोचदार होगी।
यदि कोई वस्तु ऐसी है जिसके उपयोग को स्थानापन्न किया जा सकता है तो उसकी माँग की लोच अधिक होगी पर यदि वस्तुएँ ऐसी हैं जिनका प्रयोग स्थानापन्न नहीं किया जा सके तो उसकी माँग अल्प लोच वाली होगी।
यदि कोई वस्तुएँ ऐसी हैं जिनकी अनेक स्थानापन्न वस्तुएँ हैं तो उसकी माँग की लोच अधिक होगी। जैसे—कॉफी तथा चाय
टैक्सीग का मत है कि समाज में धन के असमान वितरण होने पर माँग विलोच होती है तथा आय समान रूप से वितरण होने पर माँग की लोच अधिक होती है।
किसी उपयोग की आय में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु की माँग में होने वाले स्पष्ट परिवर्तन को माप तथा क्षमता ही माँग की आय लोच है, यदि वस्तु का मूल्य अपरिवर्तित रहे।
किसी वस्तु की माँग की आय लोच (ey) =
वस्तु की माँग में अनुपातिक परिवर्तन
――――――――――――――――――――――
उपभोक्ता की आय में अनुपातिक परिवर्तन
Or ey = Δq/q ÷ Δy/y
सामान्यतः किसी वस्तु की माँग की आय लोच धनात्मक होती है।
माँग की आय लोच शून्य तब होती है जब किसी उपयोगी की मौद्रिक आय में वृद्धि होने के बाद भी किसी वस्तु की क्रय की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता।
माँग की आय लोच ऋणात्मक होगी जब उपयोगी की मौद्रिक आय में वृद्धि होने के बाद किसी वस्तु की माँग में कमी आये।
यदि आय में वृद्धि होने पर किसी वस्तु पर खर्च किये जाने वाले व्यय का अनुपात यदि वही रहे तो माँग की आय लोच शून्य के बराबर होगी।
निश्चित-कोटि तथा निम्न कोटि वस्तुओं के सम्बन्ध में आय लोच ऋणात्मक होती है।
विलासिता की वस्तुओं की आय लोच इकाई से अधिक होती है।
सामान्य वस्तुओं की आय लोच धनात्मक होती है।
ऐसी-ऐसी आय बढ़ती जाती है, वह वस्तु उसी रूप में उस कोटि की होती है, सामान्य हो जाती है, और आय के बढ़ने पर निम्न कोटि में परिवर्तित हो जाती है।
किसी सामान्य वस्तु के मूल्य में होने वाले परिवर्तन के परिणामस्वरूप किसी दूसरी वस्तु की माँग में मात्रा में जो सापेक्ष परिवर्तन होता है, उसकी मात्रा ही माँग की आड़ी लोच है।
आड़ी लोच का विचार सबसे पहले थम्पसन ने अपनी पुस्तक Synthetic Economics में किया।
राबर्ट गिफिन ने इसका प्रयोग मूल्य सिद्धान्त में किया।
माँग की आड़ी लोच (eAB) =
A वस्तु की माँग में अनुपातिक परिवर्तन
―――――――――――――――
B वस्तु के मूल्य में अनुपातिक परिवर्तन
यदि A तथा B दोनों परस्पर स्थानापन्न हैं तो माँग की आड़ी लोच धनात्मक होगी।
A तथा B एक-दूसरे की पूरक वस्तुएँ हैं तो माँग की आड़ी लोच ऋणात्मक होगी।
|