बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
5 पाठक हैं |
बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय 5 - माँग की लोच : अवधारणा, माप, प्रकार, निर्धारक तत्व एवं महत्व
(Elasticity of Demand : Concept, Measurement, Kinds, Determinants and Importance)
जब किसी वस्तु की कीमत घटती है तो इसकी माँग-मात्रा बढ़ती है। और जब उसकी कीमत बढ़ती है तो उसकी माँग मात्रा घटती है। इसे सामान्यतः माँग का नियम कहा जाता है। यह माँग का नियम कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग-मात्रा में परिवर्तन की केवल दिशा को ही दर्शाता है। यह नहीं बताता है कि कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप वस्तु की माँग-मात्रा में कितनी वृद्धि या कमी होती है। वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग मात्रा कितनी बदलती है, यह ज्ञात हमें माँग की मूल्य लोच से होता है। माँग की लोच की धारणा से अभिप्राय किसी वस्तु की माँग-मात्रा का उसकी अपनी कीमत में परिवर्तन, लोगों की आयों तथा सम्बंधित वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन के फलस्वरूप बदलता है।
माँग की मूल्य लोच से अभिप्राय कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप वस्तु की माँग-मात्रा में सामंजस्यपूर्ण वृद्धि व ह्रास है। किसी की आय लोच से अभिप्राय आय में परिवर्तन होने से माँग मात्रा में सामंजस्यपूर्ण ह्रास-वृद्धि है। वस्तु की माँग की लोच से तात्पर्य किसी वस्तु विशेष की माँग, जो चाहे स्थानान्तरण हो अथवा पूरक, की कीमत बदलने से वस्तु की माँग में सामंजस्यपूर्ण परिवर्तन होता है। प्रतिलोचिता लोच का अर्थ व्यक्ति की वास्तविक आय समान रहने पर केवल वस्तु की मौद्रिक कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप वस्तु की माँग मात्रा का परिवर्तित होना है।
कीमत में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन के कारण माँगी गयी मात्रा में आनुपातिक परिवर्तन के अनुपात को ही माँग की लोच कहते हैं।
|