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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2732
आईएसबीएन :0

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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर

महत्त्वपूर्ण तथ्य

American Accounting Association के अनुसार - “किसी उपक्रम की उपार्जित शुद्ध आय एक कार्यशील इकाई के रूप में उसकी प्रभावपूर्णता को मापती है; तथा (a) तत्सम्बन्धी लगी हुई लागतों की तुलना में आगम का आधिक्य या न्यूनता तथा (b) विक्रय, विनिमय तथा अन्य सम्पत्तियों के परिवर्तनों द्वारा संस्था को हुए लाभों अथवा हानियों के माध्यम से शुद्ध सम्पत्तियों में हुआ परिवर्तन व्यक्त करती हैं।"

लेखांकन आय के लक्षण

आगम कमाने के लिए लगे व्ययों को उपक्रम के प्रति ऐतिहासिक लागत के रूप में मापा जाता है। व्ययों का निर्धारण लागत विचारधारा पर आधारित है।

लेखांकन आय सम्बद्ध लागत या व्ययों के साथ आगम के मिलान का मामला है। अतः लेखांकन आय मिलान की विचारधारा पर आधारित है।

सही लेखांकन आय की गणना हेतु पूँजी तथा आगम मदों के बीच उचित अन्तर करना चाहिए। लेखांकन आय की गणना हेतु केवल आगम मदों पर ही विचार किया जाता है।

लेखांकन आय आगम सिद्धान्त पर आधारित होती है। माल के विक्रय या सेवाओं की आपूर्ति से आय उत्पन्न होती है। आगम केवल तभी कमाया जाता है जब वह वसूल हो तथा जरूरी नहीं कि जब यह प्राप्त की जाये।

लेखांकन आय को एक लेखांकन अवधि के सन्दर्भ में मापा जाता है तथा लेखांकन अवधि के लिए व्यावसायिक उपक्रम की परिचालन निष्पत्ति का एक दृष्टिकोण देता है जिसके लिए आय ज्ञात की जाती है। अतः लेखांकन आय लेखांकन अवधि संकल्पना पर आधारित है।

कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं जहाँ आय की जानकारी व्यावहारिक रूप से उपयोगी है-

प्रबन्धकीय दक्षता के माप के रूप में आय-आय प्रबन्धन की नीति बनाने, निर्णय लेने और गतिविधियों को नियंत्रित करने की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने का एक उपाय है।

भविष्यवाणियों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में आय-वर्तमान आय भविष्य की अपेक्षाओं को प्रभावित करने के लिए कार्य करती है। यह निवेश निर्णय लेते समय भविष्य के निवेश के मूल्य का मूल्यांकन करने में मदद करता है।

लाभांश और प्रतिधारण नीति के लिए एक गाइड के रूप में आय-आय की जानकारी यह निर्धारित करती है कि किसी व्यावसायिक उद्यम की आवधिक आय का कितना हिस्सा उसके मालिकों को वितरित किया जा सकता है और उसकी गतिविधियों को बनाए रखने या विस्तार करने के लिए कितना रखा जाएगा।

साख और अन्य आर्थिक निर्णयों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में आय-क्रेडिट अनुदानकर्ताओं-व्यक्तियों और संस्थागत दोनों को व्यावसायिक उद्यमों को ऋण देने से पहले मजबूत वित्तीय स्थिति के प्रमाण की आवश्यकता होती है।

कर निर्धारण के साधान के रूप में आय-आय का आंकड़ा एक व्यावसायिक उद्यम की कर देयता को निर्धारित करता है। कराधान अधिकारी आमतौर पर कर के आंकलन के आधार के रूप में लेखांकन आय को स्वीकार करते हैं।

आय मापन की विभिन्न अवधारणाएँ

चिटठा उपगमन - वह राशि जिसमें शुद्ध सम्पत्तियों की अन्तिम राशि (अर्थात् लेखांकन अवधि के अन्त में सम्पत्तियाँ घटाये बाहरी दायित्व) लेखांकन अवधि की प्रारम्भिक शुद्ध सम्पत्ति राशियों की तुलना में बढ़ती या घटती है, बशर्ते कि लेखांकन अवधि के दौरान कोई पूँजी न लगाई जाये या न निकाली जाये। इस प्रकार निकाली गई राशि को पूँजी की वृद्धि से कम करते हैं यदि कोई हो तथा आहरण से जोड़ते हैं यदि लेखांकन अवधि में कोई आहरण हुए हैं लेखांकन अवधि की व्यावसायिक आय की गणना हेतु। इस विधि को पूँजी अनुरक्षण विधि या शुद्ध सामर्थ्य विधि भी कहा जाता है। इसे चिट्ठा विधि इसलिए कहा जाता है क्योंकि आय को लेखांकन अवधि के प्रारम्भिक तथा अन्तिम चिट्ठे की सहायता से निकाला जाता है। आय की गणना की यह विधि ठीक वैसी ही है जैसे एकल लेखा प्रणाली में लाभ की गणना हेतु किया जाता है।

लेन-देन उपागम - अधिकांश उपक्रम जो दोहरा लेखा प्रणाली अपनाते हैं इस विधि का पालन करते हैं। इस विधि में प्रत्येक वित्तीय लेन-देन का प्रभाव व्यावसायिक आय की गणना हेतु ध्यान में रखा जाता है। अतः इस विधि को आय मापन की लेन-देन विधि कहा जाता है। लेन-देन मुख्यतः माल के उत्पादन या क्रय तथा विक्रय से सम्बन्ध रखते हैं। सभी लेन-देन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर से आगम या लागत से सम्बन्ध रखते हैं तथा माल के उत्पादन हेतु व्यय की गई राशि पर माल के विक्रय द्वारा वसूल राशि का आधिक्य आय का माप होता है।

व्यावसायिक आय की गणना हेतु, लागत तथा आगम

बिके माल की लागत - वह लागत है जो विक्रय हेतु माल की प्राप्ति पर लगी है अर्थात् उसका क्रय मूल्य + माल के प्रारम्भिक तथा अन्तिम स्टॉक का उचित समायोजन करते हुए माल को दुकान तक लाने में किया गया व्यय ।

सकल लाभ - बिके माल की लागत पर विक्रय का वर्चस्व दर्शाता है।

सकल हानि - विक्रय पर बिके माल की लागत का आधिक्य होती है।

परिचालनात्मक व्यय - ये वे व्यय हैं जो रोजमर्रा के व्यापार को चलाने तथा कार्यशील कार्यक्षमता को बनाये रखने के लिए किये जाते हैं।

शुद्ध लाभ - यह कार्यशील व्ययों पर सकल लाभ का आधिक्य होता है। यदि व्यवसाय की कोई अन्य आय है तो वह भी कार्यशील व्ययों को घटाने से पूर्व सकल लाभ में जोड़ी जाती है। इसे 'व्यवसायिक आय' (business income) भी कहा जाता है।

शुद्ध हानि - यह 'सकल लाभ' तथा अन्य आयों के परिचालन व्ययों पर आधिक्य है।

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