बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 वित्तीय लेखांकन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 10 आय की अवधारणा एवं इसका मापन
(Concept of Income and its Measurement)
आय की अवधारणा
"शुद्ध आय" की गणना वित्तीय लेखांकन का केन्द्रीय प्रकरण रही है तभी से जब से उन्नीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में सर्वमान्य स्वीकृत लेखांकन सिद्धान्तों का विकास हुआ। लेखाकारों के विभिन्न अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है व्यावसायिक आयों का मापांकन । असलीयत में, कोई व्यापारी स्वयं में कोई आय नहीं कर सकता। रिपोर्ट की गई व्यावसायिक आय वास्तव में व्यवसाय के मालिकों की आय है। पैटन के अनुसार, “शुद्ध आय या लाभ वह राशि है जो मालिकों को उपार्जित होता है।" यही कारण है कि लेखांकन में, लाभ एक क्रैडिट मद है जो स्वामित्व के पक्ष में व्यापार की वचनबद्धता को व्यक्त करता है। अतः व्यवसाय उसके मालिकों के लिए आय का पूर्त्तिदाता है न कि उसका एक दावेदार।"
आय की लेखांकन अवधारणा
लेखाकारों ने अर्थशास्त्रियों की 'वास्तविक आय' (Real income) की विचारधारा को स्वीकृत नहीं किया है जिसका कारण है समय के दो विभिन्न अन्तरालों पर सम्पत्तियों के स्थापन मूल्यों के बारे में बरती गई व्यापक मात्रा में व्यक्तिनिष्ठता (Subjectivity)। इसके बजार, वित्तीय लेखांकन की प्रविधियों को कुछ ऐसे व्यवस्थित करते हैं कि मौद्रिक आय का मापांकन मिल सके जिसको लेखाकार उस अवधि की 'शुद्ध आय' बताते हैं।
अवधि की शुद्ध आय को किसी विशिष्ट लेखांकन इकाई द्वारा एक अवधि में लगाई गई लागतों (हानियो सहित) पर उसी अवधि में वसूल किए गए आगमों के अतिरेक के रूप में परिभाषित किया जाता है।
आय की अवधारणा किस सीमा तक लेखांकन परम्पराओं का अनुसरण करती है?
(1) निरन्तरता की परम्परा - आय की अवधारणा निरन्तरता की परम्परा का पक्के तौर पर अनुसरण नहीं करती। अतः निरन्तरता की अवधारणा इस विचारधारा द्वारा लागू नहीं की जाती ।
(2) पूर्ण प्रकटन की परम्परा - आय की अवधारणा द्वारा पूर्ण प्रकटन की परम्परा का अनुसरण किया जाता है, लेकिन पूर्ण स्तर तक नहीं। बहुत बार लेखाकारों की ओर से परिवर्तन की अपेक्षा की जाती है।
(3) यथार्थ शुद्धता की परम्परा - आय की विचारधारा इस परम्परा का अनुसरण करती है, यही कारण है कि प्रकाशित लेखों में शून्यात्मक संख्याएँ अपनायी जाती हैं। जब अनुपात या प्रतिशतों के आधार पर तुलना की जाती है, तो सरलता के लिए, शुद्धता एवं पूर्ण सत्यता को छोड़ दिया जाता है। आय या लाभ के सही निर्धारण हेतु पूर्णता या शुद्धता बिल्कुल नहीं छोड़ी जाती।
(4) रूढ़िवादिता की परम्परा - आय की अवधारणा लेखाकारों को इस बात की आज्ञा नहीं देती कि पक्के तौर पर रूढ़िवादिता की परम्परा का अनुसरण करे। यह अवधारणा अनेक बार रूढ़िवादिता की परम्परा से परे हट जाती है।
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