बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पर्यवेक्षण की प्रमुख विधियों का विवेचन कीजिये।
उत्तर -
(Methods of Supervision )
पर्यवेक्षण के दौरान प्रयोग होने वाली कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) प्रदर्शन विधि - पर्यवेक्षक आवश्यकतानुसार पर्यवेक्षण कार्य के दौरान इस विधि का प्रयोग समय-समय पर करता है। इस प्रदर्शन विधि का प्रयोग सभी लोगों द्वारा किया जाता है। उदाहरण के लिए, छात्र - अध्यापक के शंका का समाधान करने के लिए कभी-कभी प्रदर्शन विधि प्रयोग स्वयं पर्यवेक्षक द्वारा किया जाता है। किसी विशेष उत्सव के अवसर पर विद्यालय के बालकों द्वारा खेल-कूद एवं शारीरिक शिक्षा से सम्बन्धित कार्यक्रमों को भी इसी विधि द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। आदि इसी प्रकार के अनेक परिस्थितियों में प्रदर्शन विधि का प्रयोग किया जाता है। पर्यवेक्षक के दौरान इस विधि का सबसे अधिक महत्व इसलिए है कि इस विधि के माध्यम से सबसे पहले नये कौशल्य का प्रदर्शन किया जाता है और इस क्रिया को सही ढंग से सम्पन्न करने के लिए छात्रों के दिमाग में एक आकार तैयार किया जाता है। जिसके कारण कोई भी छात्र किसी भी नये कार्य को बड़े सहज ढंग से सीख सकता. है और साथ ही साथ बालक से अभ्यास कराया जाता ह ै एवं जिसके कारण छात्रों द्वारा कौशल सम्बन्धी की जाने वाले गलतियों में सुधार करने का जब प्रयास किया जाता है तो इस क्रिया-कलाप से सम्बन्धित उपकरण का भी प्रयोग किया जाता है लेकिन यदि सुविधायें उपलब्ध न हों तो बगैर उपकरण के भी प्रदर्शन विधि का प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, क्रिकेट खेल में स्ट्रेट ड्राईव लगाते समय शरीर की क्या अवस्था होती है, बॉल मारते समय बल्ले की क्या स्थिति होती है, इन सभी स्थितियों के प्रदर्शन के दौरान पर्यवेक्षक बल्ले का प्रयोग करता है लेकिन यदि सुविधा उपलब्ध नहीं है तो किसी लकड़ी के फट्टे से भी कार्य को सम्पन्न कर सकता है।
(2) बुलेटिन विधि - पर्यवेक्षण के दौरान बुलेटिन विधि का काफी प्रयोग किया जाता है। कभी - कभी किसी विशेष परिस्थिति में बुलेटिन विधि अत्यधिक लाभदायक सिद्ध हो जाती है। दूसरी तरफ इस विधि को अत्यधिक उपयुक्त माना जाता है। क्योंकि इस विधि के द्वारा बिना हॉलों (सभा स्थल) एवं कर्मचारियों को एकत्र किए कोई भी आवश्यक सन्देश सभी लोगों के पास सही-सही एवं बहुत ही कम समय में पहुँच जाता है। लेकिन बुलेटिन विधि का प्रयोग करते समय सदैव इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि बुलेटिन संक्षिप्त एवं साफ-साफ होना चाहिए। साफ-साफ से अभिप्राय यह है कि बुलेटिन के अन्दर के शब्द अत्यधिक कठिन नहीं होने चाहिएं बल्कि सरल होने चाहिए जिससे कि सभी लोग इसको आसानी से समझ सकें। बुलेटिन धारावाहिक होना चाहिए एवं उसमें किसी भी प्रकार की गलती नहीं होनी चाहिए। साथ ही बुलेटिन विधि का प्रयोग करते समय सदैव इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि बुलेटिन पूर्ण रूप से समस्या पर ही केन्द्रित हो क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति इस प्रकार के बुलेटिन का प्रयोग पर्यवेक्षण की आवश्यकतानुसार करता है; वह हफ्ते में एक बार से लेकर प्रतिदिन एक बार प्रयोग कर सकता है। भाषा की सरलता के कारण सभी लोग इसका लाभ उठाते हैं। पर्यवेक्षण के दौरान पर्यवेक्षक बुलेटिन विधि का मुख्यतः दो प्रकार से प्रयोग करता है। इन दोनों प्रकारों का उल्लेख निम्न प्रकार है-
(i) व्यक्तिगत बुलेटिन - पर्यवेक्षक इस प्रकार के बुलेटिन के माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष को किसी विशेष समस्या के सन्दर्भ में सही समय पर सूचित करता है। कभी-कभी इस प्रकार के व्यक्तिगत बुलेटिन के माध्यम से अलग-अलग हॉल अध्यापकों, अन्य पर्यवेक्षकों को भी किसी विशेष सूचना से अवगत कराया जाता है। उदाहरण के लिए, कभी कोई पर्यवेक्षक न आ सका तो एक-एक व्यक्तिगत बुलेटिन के माध्यम से यह सूचित किया जाता है कि अमुक ग्रुप का पर्यवेक्षक आज उपस्थित नहीं है इसलिए आप दोनों ग्रुपों का पर्यवेक्षण कार्य सम्पन्न करने का प्रयास कीजिएगा और इस प्रकार से छात्र विशेष की समस्या के सन्दर्भ में पर्यवेक्षक द्वारा सूचित किया जाता है।
(ii) सुझावात्मक बुलेटिन - पर्यवेक्षक पर्यवेक्षण के दौरान इस प्रकार के सुझावात्मक बुलेटिन के माध्यम से किसी विशेष समस्या के सन्दर्भ में एक सुझाव का स्वरूप प्रस्तुत करने का प्रयास करता है जिसका लाभ मुख्यतः विद्यार्थियों एवं शिक्षकों दोनों को प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, पर्यवेक्षण कार्य के निर्धारित समय पर एकाएक तेज वर्षा प्रारम्भ हो जाती है जिससे कि पर्यवेक्षण का कार्य रुक जाता है और उसी समय पर्यवेक्षक सुझावात्मक बुलेटिन के माध्यम से एक सूचना प्रसारित करता है कि आज जो कार्य होने वाला था उस कार्य को अमुक छुट्टी के दिन पूरा किया जा सकता है बशर्ते किसी विद्यार्थी एवं शिक्षक को कोई परेशानी न हो। इस प्रकार के सुझावात्मक बुलेटिन पूर्ण तथा आपसी ताल-मेल पर निर्भर करते हैं।
( 3 ) सम्मेलन विधि - पर्यवेक्षण के दौरान पर्यवेक्षक कभी-कभी सम्मेलन विधि का प्रयोग करता है। इस विधि के अन्दर पर्यवेक्षक प्रत्येक पर्यवेक्षकों, छात्रों एवं छात्र अध्यापकों को एक स्थान पर एकत्र करता है और इसके पश्चात् पर्यवेक्षण कार्य से सम्बन्धित एक ऐसा प्रारूप प्रस्तुत करता है जिसमें पर्यवेक्षण से सम्बन्धित तमाम बातों का स्पष्ट रूप से उल्लेख रहता है। उदाहरण के लिए, शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षण विद्यालय के अन्दर पाठ योजना से सम्बन्धित पर्यवेक्षण कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व मुख्य पर्यवेक्षक सम्मेलन विधि का ही प्रयोग करता है और इस विधि के माध्यम से सभी लोगों को एक स्थान पर एकत्र करता है एवं सभी लोगों को पर्यवेक्षण से सम्बन्धित कई प्रमुख बातों से अवगत कराता है, जैसे- पाठ योजना का प्रारूप क्या होगा, सम्मेलन कितने समय तक चलता रहेगा, छात्र अध्यापकों की पोशाक क्या होगा, छात्रों का पोशाक क्या होगी, एक ग्रुप में कितने छात्र रहेंगें, कितने ग्रुप बनेंगे, कक्षा का प्रारम्भ प्रातः एवं सायंकालीन सत्र कब से प्रारम्भ किया जायेगा आदि। इस प्रकार की सूचना पर्यवेक्षक सम्मेलन विधि के माध्यम से प्रसारित करता है लेकिन पर्यवेक्षक को इस विधि का प्रयोग करने से पूर्व कई बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है। जैसे- विद्यालय के अन्दर सम्मेलन का स्थान कहाँ होगा, क्या इस स्थान पर सभी लोग बैठ सकते हैं, सम्मेलन ऐसे समय रखा जाये जिसमें सभी लोग सही समय से उपस्थित हो सकें आदि और इन बातों पर बगैर ध्यान दिये पर्यवेक्षक सम्मेलन विधि का प्रयोग करते हैं तो भविष्य में विभिन्न प्रकार की समस्याओं के पैदा होने की पूर्ण सम्भावना बनी रहती है।
(4) अभ्यागमन विधि - अभ्यागमन विधि से अभिप्राय पूर्णतया निरीक्षण अथवा जाँच कार्य से है क्योंकि पर्यवेक्षण कार्य के दौरान पर्यवेक्षक प्रत्येक समय छात्रों खिलाड़ियों एवं छात्र अध्यापकों की कमियों का अवलोकन करता है। वह केवल अवलोकन के माध्यम से विद्यार्थियों की गलतियों को पकड़ता है एवं उसके बाद कार्य पद्धति में थोड़ा परिवर्तन करता है। वास्तव में इस प्रकार की विधि के प्रयोग के कारण पर्यवेक्षक विद्यार्थियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है और दूसरी बात यह है किं इस अभ्यागमन विधि के माध्यम से छात्र, छात्र अध्यापक, एवं स्वयं पर्यवेक्षक सभी के माध्यम से आपसी सम्बन्ध और अधिक घनिष्ठ बनाया जा सकता है। इस विधि के माध्यम से पर्यवेक्षक की वास्तविक स्थिति का पता लगता है कि छात्रों को समझने का क्या स्तर है एवं छात्र अध्यापक को समझाने का क्या स्तर है। पर्यवेक्षण के दौरान पर्यवेक्षक अभ्यागमन विधि को दो प्रकार से प्रयोग करता है जिनका उल्लेख निम्न प्रकार है-
(i) प्रार्थित विधि - आवश्यक आवश्यकताओं को दिखाने एवं सुविधाओं की माँग के लिए पर्यवेक्षक पर्यवेक्षण के दौरान इस विधि का प्रयोग करता है क्योंकि किसी भी प्रकार के कौशल्य प्रदर्शित करने के लिए अथवा अभ्यास करने के लिए पर्याप्त मात्रा में खेल उपकरणों की आवश्यकता होती है और उन उपकरणों को छात्र अध्यापक कौशल के अभ्यास से पूर्व एकत्र करता है और सामान न मिलने पर छात्र अध्यापक उपस्थित पर्यवेक्षक को सूचित करता है और जब पर्यवेक्षक को यह पता लगता है कि अमुक खेल उपकरण विद्यालय में उपलब्ध नहीं है तो वह प्रार्थित विधि के माध्यम से ही इसकी सही-सही सूचना पर्यवेक्षक, शारीरिक शिक्षा के प्रशासक अथवा अन्य प्रमुख सम्बन्धित व्यक्ति को देता है। इस प्रकार से कह सकते हैं कि छात्र, अध्यापक, शारीरिक शिक्षा का शिक्षक, शारीरिक शिक्षा का प्रशासक, पर्यवेक्षक एवं सम्बन्धित व्यक्तियों के लिए एक आदर्श विधि है जिसके माध्यम से लोग अपनी समस्या के सन्दर्भ में एक-दूसरे को सही समय पर सूचित करते हैं।
(ii) स्वनियोजित विधि - इस प्रकार की विधि के माध्यम से स्वयं पर्यवेक्षक पर्यवेक्षण से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों से सम्बन्धित एक योजना की रूपरेखा तैयार करता है और उसके पश्चात् उस रूपरेखा के सन्दर्भ में सभी लोगों को सूचित करता है। पर्यवेक्षक पर्यवेक्षण के दौरान जब इस प्रकार का कार्य करता है तो सभी व्यक्तियों को (छात्रों, अध्यापकों, अन्य पर्यवेक्षकों) सम्पूर्ण कार्यक्रम के सन्दर्भ में पहले से पूर्ण जानकारी रहती है जिसके कारण प्रत्येक को तैयारी का पर्याप्त अवसर भी मिल जाता है। लेकिन इस प्रकार की विधि का प्रयोग करने से पूर्व पर्यवेक्षक को चाहिए कि पहले वह पर्यवेक्षण के सम्पूर्ण क्रिया-कलापों का गहनता से अध्ययन एवं अवलोकन करे एवं उसके बाद पर्यवेक्षक से सम्बन्धित योजना की रूपरेखा का निर्माण करे क्योंकि यदि वह सब लोगों से सम्पर्क स्थापित किये बगैर योजना तैयार करता है तो भविष्य में विभिन्न प्रकार की समस्याओं के पैदा होने की सम्भावना बनी रहती है।
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