बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शारीरिक शिक्षा - खेल संगठन एवं प्रबन्धन - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पर्यवेक्षण के सिद्धान्त एवं प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
(Principle and Process of Supervision)
आजकल का पर्यवेक्षण छात्र - समुदाय की शारीरिक और सामाजिक कुशलता तथा संस्था के विकास से जुड़ा हुआ है। इस दृष्टि से पर्यवेक्षण के सिद्धान्त एवं प्रक्रिया निम्न प्रकार हैं-
(1) बाह्य आडम्बरों से बचना चाहिए - प्राय: निरीक्षक अथवा पर्यवेक्षक के आने के पूर्व विद्यालय को कृत्रिम वस्तुओं से सजा दिया जाता है, जिससे वास्तविकता का परिचय नहीं मिलता। वास्तव में यह कार्य विद्यालयों की कमियों को छिपने के लिए
(2) रचनात्मक दृष्टिकोण - पर्यवेक्षक को अपना दृष्टिकोण सदा आलोचनात्मक नहीं रखना चाहिये। शिक्षकों के कार्य की आलोचना करके उन्हें कार्य को उचित ढंग से करने के लिए उचित सलाह भी देनी चाहिए। उसे अपने विचार रचनात्मक रखने चाहियें, न कि ध्वंसात्मक एवं प्रतिशोधात्मक। उनकी आलोचना प्रधानात्मक तथा अध्यापकों को प्रेरणा देने वाली हो, न कि निराशा उत्पन्न करने वाली।
(3) अध्यापक को सलाह देना - अध्यापकों की भूलों और दोषों को कक्षा में न बताया जाय। यदि पर्यवेक्षक किसी अध्यापक के शिक्षण में कोई दोष पाता है तो अपनी राय लिखकर उस अध्यापक के पास भेज दे। वर्ग में समस्त छात्रों के सामने अध्यापकों को डाँटना अनुचित है।
(4) कक्षा - निरीक्षण - शिक्षक का शिक्षण स्तर कैसा है, पाठ्य-वस्तु के प्रतिपादन में वे कितने दक्ष हैं, यह जानने के लिए कक्षा - निरिक्षण अत्यन्त सावधानी तथा चतुरता के साथ किया जाये। वर्ग में शिक्षण करते समय शिक्षक को इस बात का आभास न हो कि कोई उसके कार्य का निरीक्षण कर रहा है। उसे चाहिए कि वह अध्यापक की शिक्षण विधियों को ध्यान से देखे तथा भूलों को लेखबद्ध करता जाये। कुछ शिक्षक निरीक्षक की उपस्थिति में धैर्य खो बैठते हैं, उस समय निरीक्षक को अपने चेहरे से स्नेह का भाव प्रदर्शित करते रहना चाहिए। यदि अध्यापक के शिक्षण का तरीका विधिवत् नहीं है अथवा अमनोवैज्ञानिक है, ऐसी स्थिति में निरीक्षक को स्वयं उस कक्षा को पढ़ाकर दिखाना चाहिये।
(5) प्रयोगशालाओं का पर्यवेक्षण करना - कृषि, चित्रकला तथा विज्ञान आदि व्यावहारिक विषयों का निरीक्षण तब किया जाय. जबकि छात्र प्रयोगशालाओं में प्रयोग कर रहे हों। विज्ञान की प्रयोगशालाओं का निरीक्षण सावधानी से करना चाहिये। प्रयोगशाला पर जितना व्यय दिखाया जाता है, क्या उसमें उतना सामान है, क्या कक्षा के प्रत्येक छात्र को प्रयोग करने का अवसर प्राप्त होता है आदि बातों को विशेष ध्यान में रखा जाय।
(6) सहयोग की भावना - पर्यवेक्षक को सदा इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि उसका व्यवहार संस्था के प्रधान एवं सहायक शिक्षक, छात्र- सुमदाय एवं अभिभावकों के साथ मित्र जैसा हो। पर्यवेक्षक को कभी भी इस तथ्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि पर्यवेक्षण का तात्पर्य केवल आलोचना करना ही नहीं है, उसे समस्त शिक्षकों को अपना छोटा भाई मानना चाहिये। बाह्य पर्यवेक्षक को निरीक्षण करते समय सहयोगात्मक भाव रखना चाहिये।
(7) निरीक्षण विस्तारपूर्वक किया जाय - पर्यवेक्षक को चाहिये कि निरीक्षण करते समय केवल शिक्षकों की अनुपस्थिति पर ही ध्यान न दे, बल्कि शिक्षण - पाठ्यक्रम सहगामी खेल- -कूद, छात्रावास, पुस्तकालय आदि का भी सम्यक् रूप से निरीक्षण करे।
(8) लिखित कार्य का निरीक्षण करना - कक्षा में जाकर छात्रों के लिखित कार्यों का अवलोकन करना आवश्यक है। अनेक विद्यालयों में वर्ष भर मौखिक शिक्षण चलता रहता है, किन्तु अध्यापक छात्रों को कुछ भी लिखवाने का कष्ट नहीं करते। अतः पर्यवेक्षक को लिखित कार्य की जाँच सावधानी से करनी चाहिए। उन्हें निम्न बातों पर अवश्य ही ध्यान देना चाहिए - क्या छात्र की अभ्यास-पुस्तिकाओं में शिक्षक ठीक प्रकार से हस्ताक्षर करता है, क्या वे ठीक प्रकार से जाँची गई हैं; क्या छात्र शिक्षक द्वारा बताये गये सुझावों को व्यवहार में लाते हैं आदि इन बातों को ध्यान में रखकर अभ्यास-पुस्तिकाओं का निरीक्षण किया जाये।
(9) अपने मूल्यांकन कार्य का मूल्यांकन करना - अन्त में पर्यवेक्षक को अपने द्वारा किये गये निरीक्षणों के प्रभावों का मूल्यांकन करना चाहिए। उसे देखना चाहिये कि निरीक्षण द्वारा उसे अपने कार्य में सफलता प्राप्त हुई अथवा नहीं। शिक्षकों को जो उसने सुझाव दिये हैं क्या उनका पालन होता है, क्या उसके द्वारा दिये गये सुझाव रचनात्मक हैं आदि का उसे स्वयं आत्म-निरीक्षण करना चाहिये।
(10) अच्छे कार्य की प्रशंसा - पर्यवेक्षक चाहे वह बाह्य पर्यवेक्षक हो अथवा आन्तरिक ( प्रधानात्मक) पर्यवेक्षक हो, को अच्छे कार्य की प्रशंसा करनी चाहिए। इससे कार्यकर्त्ताओं का मनोबल ऊँचा रहता है और उनमें कार्य के प्रति सच्ची निष्ठा उत्पन्न होती है।
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